
FDI-FPI दोनों नकारात्मक, क्या निवेशकों के लिए महंगा हो गया भारत?
2025 में भारत से एफडीआई-एफपीआई की निकासी, कमजोर रुपया और सुस्त विकास विदेशी निवेशकों के भरोसे को कमजोर कर रहे हैं।
FDI-FPI Investment: साल 2025 में भारत की पहचान एक पसंदीदा विदेशी निवेश गंतव्य के तौर पर कमजोर पड़ती दिख रही है। इसकी एक वजह अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50 प्रतिशत तक के टैरिफ हैं, जिससे भारत के उस देश को होने वाले निर्यात पर असर पड़ा है जहां से उसे सबसे ज्यादा व्यापार लाभ मिलता था। लेकिन यह अकेला कारण नहीं है। रुपये की लगातार कमजोरी और आर्थिक विकास की धीमी होती रफ्तार ने भी विदेशी निवेशकों की चिंता बढ़ाई है।
इस हालात को समझने के लिए विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) और विदेशी पोर्टफोलियो निवेश (FPI) के आंकड़ों को देखना जरूरी है। एफडीआई वह निवेश होता है जो फैक्ट्रियों, कंपनियों और बुनियादी ढांचे में लंबे समय के लिए किया जाता है। वहीं एफपीआई शेयर बाजार में पैसा लगाकर जल्दी मुनाफा कमाने से जुड़ा होता है।
शुद्ध एफडीआई में लगातार गिरावट
पिछले कुछ सालों से भारत में आने वाला शुद्ध एफडीआई लगातार घट रहा है। मौजूदा वित्त वर्ष में थोड़ी सुधार के बाद यह फिर से नकारात्मक हो गया है। इसका मतलब यह नहीं कि विदेशी कंपनियां भारत में पैसा नहीं ला रहीं, बल्कि ज्यादा पैसा मुनाफे के तौर पर वापस जा रहा है। इसके साथ ही विनिवेश, मुनाफे की विदेश वापसी और भारतीय कंपनियों का विदेशों में निवेश भी बढ़ा है।
वित्त वर्ष 2025 में शुद्ध एफडीआई घटकर सिर्फ 0.96 अरब डॉलर रह गया, जबकि कुल एफडीआई 80.6 अरब डॉलर था। इससे पहले FY24 में यह 10.9 अरब डॉलर और FY21 में 43.9 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर था। FY26 के अप्रैल से अक्टूबर के बीच भी यही रुझान दिखा। इस दौरान शुद्ध एफडीआई 6.2 अरब डॉलर रहा, जबकि कुल निवेश 58 अरब डॉलर था। सितंबर और अक्टूबर में तो हालात ऐसे रहे कि भारत से बाहर जाने वाला पैसा, आने वाले निवेश से ज्यादा हो गया।
अमेरिका की नई व्यापार नीति के बाद अप्रैल से ही विदेशी कंपनियों ने मुनाफा निकालना शुरू कर दिया। अमेरिका ने भारत पर पहले 25 प्रतिशत और फिर उस पर 25 प्रतिशत अतिरिक्त टैरिफ लगाया, जो अगस्त से लागू होगा। वहीं भारतीय कंपनियां विदेशों में निवेश करती रहीं, लेकिन देश के अंदर निवेश की रफ्तार धीमी रही।
एफपीआई भी भारत से निकाल रहे हैं पैसा
शेयर बाजार से जुड़े विदेशी निवेशकों यानी एफपीआई का रुख भी बदला है। FY25 में जहां 2.7 अरब डॉलर का शुद्ध निवेश आया था, वहीं अप्रैल से दिसंबर 2025 के बीच करीब 2.9 अरब डॉलर की निकासी हो गई। यानी विदेशी निवेशकों ने भारतीय शेयर बाजार से पैसा निकालना शुरू कर दिया। एफडीआई और एफपीआई दोनों के आंकड़े यह बताते हैं कि विदेशी निवेशकों का भरोसा भारत से कमजोर हुआ है।
शेयर बाजार में भी दिखा असर
इसका असर शेयर बाजार में भी साफ नजर आता है। 2025 में निफ्टी 50 और बीएसई सेंसेक्स दोनों का प्रदर्शन कमजोर रहा। पूरे साल में इनका रिटर्न करीब 8 प्रतिशत रहा, जबकि पिछले कई सालों में यह औसतन कहीं ज्यादा रहा है।
कमजोर रुपया भी बना चिंता की वजह
रुपये की गिरावट ने भी हालात मुश्किल बना दिए हैं। दिसंबर में रुपया कई बार एक डॉलर के मुकाबले 90 के पार चला गया। भारतीय रिजर्व बैंक ने निर्यातकों को राहत देने के लिए रुपये को संभालने में सख्ती कम की है, लेकिन इससे विदेशी निवेशकों के लिए जोखिम बढ़ गया है। कमजोर रुपये का मतलब है कि विदेशी निवेशकों को अपने निवेश पर कम रिटर्न मिलेगा।
महंगे शेयर और सीमित मुनाफा
भारतीय शेयर पहले से ही महंगे माने जा रहे हैं। जब बाजार तेजी में होता है, तब इस पर ज्यादा चर्चा नहीं होती लेकिन गिरावट के समय यह मुद्दा फिर सामने आता है। पीई रेशियो के हिसाब से भारतीय शेयर उभरते और विकसित देशों के मुकाबले ज्यादा महंगे हैं। एमएससीआई इंडिया इंडेक्स के अनुसार, भारत का पीई रेशियो 25.6 है, जबकि उभरते बाजारों का 16.4 और विकसित देशों का 24.4 है। ज्यादा कीमत का मतलब है कि आगे तेज बढ़त और ज्यादा मुनाफे की संभावना कम हो जाती है।
विकास की धीमी रफ्तार भी चिंता
विदेशी निवेशकों के लिए सबसे अहम चीज किसी देश की आर्थिक विकास क्षमता होती है। इस मामले में भी भारत को लेकर चिंता बढ़ रही है। FY26 की पहली छमाही में विकास दर 8 प्रतिशत से ज्यादा रही, लेकिन RBI का मानना है कि दूसरी छमाही और FY27 में यह रफ्तार धीमी हो सकती है।
RBI गवर्नर संजय मल्होत्रा और मौद्रिक नीति समिति के अन्य सदस्यों ने भी संकेत दिए हैं कि आगे चलकर विकास की गति में सुस्ती आ सकती है।अगर आर्थिक रफ्तार को फिर से तेज नहीं किया गया, तो आने वाले समय में भारत से विदेशी निवेश का बाहर जाना और बढ़ सकता है।

