
इनकम टैक्स में छूट से बढ़ेगी खपत? IMF के पूर्व भारतीय प्रतिनिधि ने कही ये बात, देखें VIDEO
Union Budget 2025: फेलमैन ने कहा कि यह बजट वास्तव में मध्यम वर्ग के लिए बनाया गया है. हालांकि, इसे व्यापक मानकों पर परखना जरूरी है.
India fiscal strategy: केंद्र सरकार द्वारा पेश किया गया 2025-26 का बजट मिडिल क्लास के लिए टैक्स कटौती की सौगात के रूप में प्रचारित किया गया है. हालांकि, यह आर्थिक विशेषज्ञों की आलोचना के दायरे में है. उनका मानना है कि क्या यह सतत विकास को बढ़ावा दे पाएगा. द फेडरल के साथ एक इंटरव्यू में पूर्व आईएमएफ इंडिया प्रतिनिधि जोश फेलमैन ने भारत की वित्तीय रणनीति, इनकम टैक्स कटौती के संभावित प्रभाव और सरकार के विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा की.
फेलमैन व्यापक आर्थिक दृष्टिकोण पर चिंता व्यक्त करते हुए सवाल उठाया कि क्या वर्तमान उपाय भारत के लिए जरूरी मजबूत वृद्धि के लिए पर्याप्त हैं. हालांकि, वह यह भी मानते हैं कि अमेरिका पर निर्भरता कम करने से टैरिफ जोखिमों को कम किया जा सकता है.
प्रश्न: भारतीय बजट 2025 में इनकम टैक्स में महत्वपूर्ण कटौती की गई है और इसे मिडिल क्लास वर्ग के लिए फायदेमंद बताया जा रहा है. इसको आप किस रूप में देखते हैं?
फेलमैन: मैं सहमत हूं कि यह बजट वास्तव में मध्यम वर्ग के लिए बनाया गया है. हालांकि, इसे व्यापक मानकों पर परखना आवश्यक है. सबसे पहले, क्या यह बजट मैक्रोइकोनॉमिक स्थिरता सुनिश्चित करता है? दूसरा, क्या यह आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करता है? ये दोनों ही कारक महत्वपूर्ण हैं— जहां स्थिरता आवश्यक है. वहीं दीर्घकालिक आर्थिक स्वास्थ्य के लिए विकास भी उतना ही जरूरी है. इसलिए, इसे केवल ‘मध्यम वर्ग के लिए बजट’ कहकर आंकने के बजाय, इन दो प्रमुख पहलुओं के आधार पर मूल्यांकन करना उचित होगा.
प्रश्न: सरकार ने 1 करोड़ करदाताओं को 1 लाख करोड़ रुपये की टैक्स छूट दी है. सवाल यह है कि क्या यह तुरंत खपत को बढ़ावा देगा या इसका प्रभाव समय के साथ दिखेगा? साथ ही, इससे किस प्रकार का मल्टीप्लायर इफेक्ट उत्पन्न होगा?
फेलमैन: वास्तविक उत्तर यह है कि हमें यकीन नहीं है. मेरा अनुमान है कि इस टैक्स कटौती का अधिकांश भाग बचत में चला जाएगा, न कि खर्च में.उदाहरण के लिए, एक मध्यम वर्गीय परिवार, जो अब टैक्स कटौती के कारण हर महीने 10,000 रुपये अतिरिक्त प्राप्त कर रहा है, वह इस पैसे को खर्च करने की योजना कैसे बनाएगा? पिछले कुछ वर्षों में, उन्होंने शेयर बाजार से हुए लाभ के कारण खर्च बढ़ाया था. लेकिन अब जब शेयर बाजार में अस्थिरता है तो भविष्य को लेकर अनिश्चितता बनी हुई है. इसके अलावा, वे यह भी सुन रहे हैं कि अर्थव्यवस्था की गति धीमी हो रही है. जिससे उनकी चिंताएं बढ़ जाती हैं. नौकरी सुरक्षा को लेकर भी डर बना हुआ है. क्योंकि बेरोजगारी और छंटनी की खबरें लगातार सामने आ रही हैं. इन सभी पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, कई मध्यम वर्गीय परिवार यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि खर्च बढ़ाने का यह सही समय नहीं है.
प्रश्न: सरकार ने बजट घाटे को 4.8% पर बनाए रखा है और अगले वर्ष के लिए इसे 4.4% तक लाने की योजना बनाई गई है. जो कि फिस्कल कंसॉलिडेशन की दिशा में एक सकारात्मक संकेत है. इसके अलावा सरकार ने 14.8 ट्रिलियन रुपये के उधारी कार्यक्रम की घोषणा की है. जिससे लोन देने के लिए पर्याप्त तरलता उपलब्ध हो सके.
फेलमैन: सरकार का राजकोषीय घाटा कम करने का प्रयास सराहनीय है. हालांकि, इस बार मैंने देखा कि राजस्व लक्ष्य, विशेष रूप से व्यक्तिगत आयकर के लिए, पहले की तुलना में अधिक महत्वाकांक्षी रखे गए हैं. व्यक्तिगत इनकम टैक्स का अनुमानित विकास दर 14.4% रखी गई है. जबकि नाममात्र जीडीपी वृद्धि 10% है. पिछले वर्षों में, पूंजीगत लाभ कर (कैपिटल गेंस टैक्स) ने आयकर वृद्धि में योगदान दिया था. लेकिन वर्तमान में शेयर बाजार की अनिश्चितता के कारण इसे दोहराना कठिन हो सकता है. इसके अलावा बजट में टैक्स कटौती भी की गई है. जिससे व्यक्तिगत इनकम टैक्स कलेक्शन बढ़ने की संभावना और भी जटिल हो जाती है. यदि राजस्व लक्ष्यों को प्राप्त करना मुश्किल हुआ तो सरकार पूंजीगत व्यय (कैपेक्स) को कम कर सकती है. जिससे आर्थिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है.
प्रश्न: भारत की संभावित वृद्धि दर- 4.8%
फेलमैन: पिछले पांच वर्षों में भारत की औसत आर्थिक वृद्धि दर 4.8% रही है. यह हमें यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या भारत की वास्तविक संभावित विकास दर 8-10% है या क्या यह वास्तव में 5% के करीब ही सीमित है? मोदी सरकार ने पहली अवधि में संरचनात्मक सुधारों और भ्रष्टाचार विरोधी अभियानों पर ध्यान केंद्रित किया. लेकिन यह रणनीति सफल नहीं रही. मोदी 2.0 के तहत सरकार ने बुनियादी ढांचे और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI) जैसी नीतियों पर ध्यान दिया. इसके बावजूद पिछले पांच वर्षों में आर्थिक वृद्धि 5% के आसपास बनी रही. अब मोदी 3.0 के तहत, यह स्पष्ट नहीं है कि सरकार किस रणनीति को अपनाने वाली है. बजट में कोई बड़ी बुनियादी ढांचा परियोजना नहीं है, न ही PLI को लेकर कोई विशेष घोषणा की गई है. यह लगता है कि सरकार 'वेट एंड वॉच' नीति अपना रही है.
प्रश्न: क्या भारत को मैन्युफैक्चरिंग के बजाय सर्विस पर ध्यान देना चाहिए?
फेलमैन: भारत को एक वैश्विक सेवा केंद्र बनने की क्षमता है. लेकिन इसके लिए पर्याप्त योग्य वर्क फोर्स की जरूरत होगी. इसके लिए शिक्षा प्रणाली में बड़े बदलाव जरूरत हैं. पिछले कुछ वर्षों में वैश्विक क्षमता केंद्र (GCC) क्षेत्र में उछाल आया है. जिससे उच्च वेतन वाली नौकरियों का सृजन हुआ है. लेकिन जिन लोगों के पास आवश्यक शिक्षा नहीं है, वे इस विकास से पीछे छूट गए हैं. जब तक इस शिक्षा असमानता को दूर नहीं किया जाता, तब तक अधिक लोगों को अच्छी नौकरियों में शामिल करना कठिन होगा.
प्रश्न: क्या आरबीआई ब्याज दरों में कटौती करेगा?
फेलमैन: आरबीआई का पहला मकसद रुपये की स्थिरता बनाए रखना है. मौद्रिक नीति अभी तीन-तरफा संतुलन में है. ऐसे में अस्थिर वैश्विक माहौल, घरेलू महंगाई और आर्थिक वृद्धि की जरूरतों के बीच सामंजस्य बनाना जरूरी है.