2017 से अब तक GST : जिसे कहा गया सबसे बड़ा सुधार, उसकी अभी भी ‘मरम्मत जारी’
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GST 2.0 बिल्कुल वैसे ही है जैसे किसी टूटी-फूटी हाईवे पर जल्दबाजी में रातों-रात पैचवर्क करना—राहत से ज्यादा नई मुश्किलें

2017 से अब तक GST : जिसे कहा गया सबसे बड़ा सुधार, उसकी अभी भी ‘मरम्मत जारी’

वर्तमान में ध्यान संक्रमण की मुश्किलों से निपटने पर है, लेकिन कर व्यवस्था की जटिल संरचना को सरल बनाने के लिए कई वर्षों तक फैला एक समग्र दृष्टिकोण आवश्यक होगा।


GST काउंसिल ने हाल ही में 391 वस्तुओं पर टैक्स घटाने (20 वस्तुओं पर 18% टैक्स पूरी तरह हटाने सहित) की मंजूरी दी, लेकिन साथ ही कई सेवाओं पर टैक्स बढ़ा दिया। अगले कुछ हफ्तों में इसका असर सामने आएगा। वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन आपस में जुड़ा हुआ है, इसलिए टैक्स घटाने के बाद भी कुल लाभ कमजोर पड़ सकता है।

बढ़े हुए टैक्स वाली सेवाएं

वर्क कॉन्ट्रैक्ट्स और ट्रांसपोर्ट सेवाएं (12% से 18%) – इसमें सड़क निर्माण से लेकर ऑयल और गैस खोज तक शामिल।

ट्रांसपोर्ट सेवाएं – एयर ट्रांसपोर्ट, रेलवे, पेट्रोलियम, डीज़ल, नैचुरल गैस का परिवहन, मोटर व्हीकल किराए पर देना आदि।

ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म्स – जैसे Swiggy, Zomato, Uber, Zepto अब लोकल डिलीवरी पर 18% टैक्स देंगे (पहले शून्य)। इससे लाखों गिग वर्कर्स की आमदनी पर दबाव बढ़ेगा।

जल्दबाजी में GST 2.0 का रोलआउट

नोटबंदी के बाद GST को बिना तैयारी के लागू किया गया। टैक्स डिजाइन राज्यों के दबाव में बदला गया। GST 2.0 भी उद्योग या राज्यों से सलाह लिए बिना लागू किया गया।

अगस्त 2025 में अमेरिका द्वारा अचानक 25% टैरिफ लगाने के बाद इसे और तेजी से लागू किया गया। महज़ एक दिन की काउंसिल मीटिंग में बड़े बदलाव पास कर दिए गए।

टैक्स घटे कहां?

ईंट, दवाइयाँ, लेदर, ब्यूटी प्रोडक्ट्स जैसी कुछ वस्तुएँ।

जीवन और स्वास्थ्य बीमा पर GST हटाया गया (लेकिन अब कंपनियाँ इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ नहीं ले पाएँगी, जिससे प्रीमियम बढ़ सकता है)।

ट्रांजिशन की मुश्किलें

ऑटो सेक्टर – पहले ही ₹2,500 करोड़ का सेस भर चुके डीलर अब रिफंड को लेकर परेशान हैं।

कृषि, उर्वरक और टेक्सटाइल सेक्टर – इनपुट टैक्स घटा है लेकिन अंतिम उत्पाद पर टैक्स वही है।

बीमा क्षेत्र – टैक्स हटने से इनपुट टैक्स का नुकसान होगा।

इन मामलों में रिफंड या टैक्स एडजस्टमेंट ज़रूरी होगा, जिसके लिए GST कानून में संशोधन करना पड़ेगा।

अब भी अधूरी सुधार प्रक्रिया

कई “स्पेशल रेट्स” बने हुए हैं (जैसे सोना 3%, कीमती पत्थर 0.25%, अफोर्डेबल हाउसिंग 1.5%)।

मुख्य दरें—5%, 18%, 40% और तंबाकू पर 40%+सेस।

अमेरिका टैरिफ झटके से निपटने के लिए त्योहारों से पहले उपभोग बढ़ाने की कोशिश की गई।

राजस्व पर संकट

सरकार का अनुमान: ₹48,000 करोड़ का घाटा।

विशेषज्ञों का अनुमान: ₹93,000 करोड़ (सिर्फ FY26 के 6 महीने), सालाना ₹1.5-2.1 लाख करोड़।

इसका बोझ आधा राज्यों पर पड़ेगा।

इससे या तो सरकारी खर्च कटेगा या कर्ज बढ़ेगा—दोनों ही अर्थव्यवस्था के लिए हानिकारक।

सबसे अहम अपवाद

अब भी पेट्रोलियम उत्पाद, शराब, बिजली और रियल एस्टेट GST से बाहर हैं। इसका मतलब है कि “वन नेशन, वन टैक्स” का सपना अधूरा ही है।

क्यों इतना जटिल?

GST की जटिलता उसकी डिज़ाइन में ही है। 2017 में जल्दबाजी में लागू करने के कारण कई खामियां रह गईं। एक समय पर 45 अलग-अलग टैक्स दरें थीं। अब कुछ कम हुई हैं, लेकिन फिर भी दर्जन भर से ज्यादा स्लैब हैं।

GST को “स्वतंत्र भारत का सबसे बड़ा सुधार” बताकर पेश किया जा रहा है। लेकिन यह सुधार अधूरा है। जल्दबाजी में लागू की गई संरचना अब भी राज्यों और उद्योगों के दबाव में उलझी हुई है। अमेरिका के टैरिफ शॉक ने इसे और जल्दबाजी में धकेला।

यानी, GST अब भी रिपेयर-इन-प्रोग्रेस” है।

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