65 प्लस वालों के हेल्थ कवर में मुश्किल, क्लेम रेशियो तो जिम्मेदार नहीं
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65 प्लस वालों के हेल्थ कवर में मुश्किल, क्लेम रेशियो तो जिम्मेदार नहीं

अगर आप 65 साल के हो चुके हैं तो स्वास्थ्य पर खर्च बढ़ जाता है. आपको हर मुश्किल के लिए तैयार रहना चाहिए. स्वास्थ्य बीमा उनमें से एक है.


Health Insurance Policy: 65 प्लस के हेल्थ कवर में आ रही मुश्किल, कहीं क्लेम रेशियो तो जिम्मेदार नहींहेल्थ इंश्योरेंस कंपनियां आमतौर पर सीनियर सिटिजन को बीमा देने कतराती रही हैं. हालांकि रेगुलेटर इरडा ने साफ कर दिया है कि 65 प्लस लोगों की भी स्वास्थ्य बीमा देना होगा. यह बात सच है कि सीनियर सिटिजन के बीमार होने की दर अधिक होने से क्लेम रेशियो बढ़ेगा और उसकी वजह से बीमा का प्रीमियम भी अधिक होगा जिसे ज्यादा लोग अफोर्ड नहीं कर सकते और उसकी वजह से व्यवहारिक तौर पर इस तरह की पॉलिसी का मतलब कम ही रहेगा.

65 पार वालों के लिए खास जानकारी

2016 के एक नोटिफिकेशन के मुताबिक स्वास्थ्य बीमा के लिए अधिकतम एज 65 रखी गयी थी. यानी कि 65 पार के लोग हेल्थ बीमा के लिए अप्लाई नहीं कर सकते थे. हालांकि 65 पार में भी हेल्थ इंश्योरेंस पॉलिसी की बिक्री के लिए रोक नहीं थी. लेकिन फर्स्ट टाइम यूजर की संख्या में कमी थी जिनकी उम्र 65 प्लस थी. अगर बेनिफिट बेस्ड पॉलिसी नहीं है तो बीमा कंपनी रिन्यू करने से इनकार नहीं कर सकती.

हालांकि सबसे बड़ी समस्या 65 पार के लोगों द्वारा प्रीमियम को चुकाए जाने की है. हाल ही में दो रेगुलेटर सेबी और इरडा की कार्य प्रणाली पर सर्वे हुआ था. उस सर्वे में पाया गया कि नीतियों के क्रियान्वयन के मुद्दे पर सेबी से इरडा पीछे है. ऐसा माना जाता है कि सेबी का कामकाज बेहतर है, स्टॉक मार्केट में किसी तरह की दिक्कत आने पर सेबी तेजी से एक्शन में आ जाती है. लेकिन इरडा की तरफ से इंश्योरेंस कंपनियों के विस्तार में कोई बहुत फायदा नहीं मिला है. अगर मौजूदा व्यवस्था को देखें को इरडा ने 65 प्लस वालों के लिए आधे अधूरे मन से काम किया है.

कहां है समस्या

अप्रैल के महीने में बीमा मंथन नाम की कार्यशाला हुई थी, उस कार्यशाला में इस बात पर विचार किया गया कि बीमा,ग्राहकों के साथ साथ कंपनियों के लिए फायदे का सौदा होना चाहिए. कोई भी स्वास्थ्य बीमा यदि अधिक लोगों तक नहीं पहुंच पाएगी तो उसका फायदा किसी को भी नहीं मिलेगा. हेल्थ बीमा में प्रीमियम की दर इस तरह हो कि सामान्य आर्थिक पृष्ठभूमि वाले भी उसका फायदा ले सकें.

उदाहरण के लिए कुछ बैंकिंग पीएसयू मे अपने रिटायर्ड कर्मचारियों के लिए हेल्थ बीमा की व्यवस्था की. 2015 में एक स्कीम के तहत चार लाख के बीमा के लिए टैक्स समेत प्रीमियम की राशि 6,573 रुपये रखी गयी. लेकिन जिस कंपनी ने यह सुविधा दी उसे 100 फीसद क्लेम देना पड़ा. उसका असर यह हुआ कि साल दर साल प्रीमियम की राशि बढ़ती गई. इसका असर यह हुआ कि ना सिर्फ इंश्योरेंस कराने वालों में कमी आई बल्कि इंश्योरेंस कंपनी भी पीछे हट गई.

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