
कम टैरिफ में भारत के निर्यात में गिरावट, उच्च टैरिफ में आंशिक सुधार; जानें वजह
India exports to US: नवंबर में हुए कुल निर्यात का करीब 85 प्रतिशत हिस्सा उन क्षेत्रों से आया, जिनमें पहले गिरावट आई और बाद में सुधार देखा गया।
India-US exports: भारत से अमेरिका को किए जाने वाले निर्यात में मई से नवंबर 2025 के बीच दो चरणों का रुझान देखने को मिला। इस अवधि में पहले सितंबर तक तेज गिरावट दर्ज की गई, जिसके बाद नवंबर तक आंशिक सुधार हुआ। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, भारत का अमेरिका को निर्यात मई में 8.8 अरब डॉलर से घटकर नवंबर में 7.0 अरब डॉलर रह गया। यानी कुल 20.7 प्रतिशत की गिरावट। हालांकि, साल के शुरुआती महीनों में गिरावट कहीं अधिक तेज रही। मई से सितंबर के बीच निर्यात 37.7 प्रतिशत गिरकर 5.5 अरब डॉलर के निचले स्तर पर पहुंच गया। इसके बाद सितंबर से नवंबर के बीच निर्यात में 27.3 प्रतिशत की आंशिक रिकवरी दर्ज की गई, जो साल के बीच की भारी गिरावट के बाद सुधार का संकेत देती है।
रिपोर्ट्स के अनुसार, नवंबर में हुए कुल निर्यात का करीब 85 प्रतिशत हिस्सा उन क्षेत्रों से आया, जिनमें पहले गिरावट आई और बाद में सुधार देखा गया। उदाहरण के तौर पर, रत्न एवं आभूषण (जेम्स एंड ज्वेलरी) का निर्यात मई में 500.2 मिलियन डॉलर से घटकर सितंबर में 202.8 मिलियन डॉलर रह गया था, लेकिन नवंबर में यह बढ़कर 406.2 मिलियन डॉलर तक पहुंच गया। यही पैटर्न इलेक्ट्रॉनिक्स (स्मार्टफोन), मशीनरी, वाहन और ऑटो कंपोनेंट्स, फार्मास्यूटिकल्स, टेक्सटाइल और गारमेंट्स, कालीन, खनिज ईंधन, ऑर्गेनिक केमिकल्स, प्लास्टिक, रबर उत्पाद, मछली, डेयरी उत्पाद और खाद्य फल व मेवों जैसे कई अन्य क्षेत्रों में भी देखने को मिला।
रिपोर्ट के अनुसार, मई से सितंबर के बीच निर्यात में गिरावट उस समय आई, जब टैरिफ अपेक्षाकृत कम थे—मई, जून और जुलाई में 10 प्रतिशत, 1 से 6 अगस्त के बीच 10 प्रतिशत, 7 से 27 अगस्त के बीच 25 प्रतिशत और 28 से 31 अगस्त के बीच 50 प्रतिशत टैरिफ लागू था। सितंबर, जो 50 प्रतिशत टैरिफ के तहत पहला पूरा महीना था, निर्यात के लिहाज से सबसे निचला स्तर साबित हुआ। इसके बावजूद सितंबर से नवंबर के बीच निर्यात में आंशिक सुधार देखा गया, जबकि इस पूरी अवधि में 50 प्रतिशत टैरिफ लागू रहा।
रिपोर्ट के मुताबिक, मई से सितंबर के बीच आई गिरावट का मुख्य कारण संभावित टैरिफ बढ़ोतरी से पैदा हुआ झटका और अनिश्चितता थी, जिसके चलते खरीदारों ने ऑर्डर टाल दिए और मौजूदा स्टॉक का इस्तेमाल किया। जब उच्च टैरिफ की स्थिति स्पष्ट हो गई तो भारतीय निर्यातकों और अमेरिकी खरीदारों ने खुद को इसके अनुसार ढालना शुरू किया—कुछ लागत खुद वहन की, कीमतों पर फिर से बातचीत की और ऐसे उत्पादों की ओर रुख किया, जिन पर टैरिफ का असर कम था या जिनका विकल्प आसानी से उपलब्ध नहीं था।
इलेक्ट्रॉनिक्स और मशीनरी जैसे क्षेत्रों में आपूर्ति श्रृंखला के पुनर्संयोजन और अमेरिकी छुट्टियों के मौसम से पहले इन्वेंट्री की दोबारा भरपाई ने भी निर्यात को सहारा दिया। हालांकि, सितंबर के बाद दिखा सुधार किसी राहत का संकेत नहीं है। यह कठिन टैरिफ व्यवस्था के अनुरूप ढलने का परिणाम है और अब भी नाजुक बना हुआ है। यह दीर्घकालिक सुधार के बजाय अल्पकालिक रणनीतियों पर आधारित है।

