FDI, निर्यात, वेतन सब नीचे, क्या ‘वर्चुअस साइकिल’ सिर्फ मिथक?
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FDI, निर्यात, वेतन सब नीचे, क्या ‘वर्चुअस साइकिल’ सिर्फ मिथक?

अमेरिकी टैरिफ, गिरते निर्यात, कमजोर FDI, घटती मजदूरी, सुस्त बैंक क्रेडिट और धीमी कोर सेक्टर वृद्धि दिखाते हैं कि जीडीपी उम्मीदों के बावजूद अर्थव्यवस्था दबाव में है।


जीडीपी के दूसरी तिमाही (Q2 FY26) के आंकड़े 28 नवंबर तक जारी होने वाले हैं। इससे पहले देश में एक तरह की आशावादिता देखी जा रही है कि विकास दर RBI के अनुमानित 7 प्रतिशत से भी आगे निकल सकती है भले ही अमेरिका द्वारा लगाए गए 50 प्रतिशत आयात शुल्क ने भारत के निर्यात को नुकसान पहुंचाया हो।

RBI के नवीनतम बुलेटिन में भी विकास को लेकर उत्साह बरकरार है, जबकि अक्टूबर में उसने अनुमान लगाया था कि Q1 के 7.8 प्रतिशत के बाद आने वाली तीन तिमाहियों में जीडीपी 7, 6.4 और 6.2 प्रतिशत पर आ सकती है। लेकिन जमीनी स्तर के कई महत्वपूर्ण संकेतक कुछ और ही कहानी बताते हैं।

निर्यात, एफडीआई और कोर सेक्टर—तीनों में गिरावट

अमेरिकी टैरिफ का असर: निर्यात में गिरावट

अमेरिकी शुल्क का वास्तविक प्रभाव सितंबर और अक्टूबर में साफ दिखा। सितंबर में अमेरिका को भारतीय वस्तुओं का निर्यात -11.9% गिरा (Q2 का अंतिम महीना) अक्टूबर में यह गिरावट -8.6% रही। इन दो महीनों में कुल नुकसान लगभग 1.3 अरब डॉलर का हुआ। हालांकि अप्रैल–सितंबर में H1 FY26 के दौरान अमेरिका को कुल निर्यात 13.4% बढ़ा, लेकिन अप्रैल–अक्टूबर में यह वृद्धि कम होकर 9.7% रह गई। इसमें भी एक हिस्सा उन 'तेज़ी से भेजे गए निर्यात' का है जो अमेरिकी टैरिफ की समय सीमा (27 अगस्त) से पहले भेजे गए।

कोर सेक्टर और IIP में तेज गिरावट

आठ प्रमुख अवसंरचना उद्योगों का कोर IIP FY26 की पहली छमाही में सिर्फ 2.9% रहा—FY25 के 4.5% की तुलना में काफी कम।अक्टूबर में तो यह 0% रहा, जिससे अप्रैल–अक्टूबर की औसत वृद्धि गिरकर 2.5% रह गई। यह लगातार गिरावट दर्शाता है कि वित्त वर्ष 22 में 10.4% वित्त वर्ष 25 में 4.5% वित्त वर्ष 26 (अप्रैल–अक्टूबर): 2.5%। इसी तरह औद्योगिक IIP (खनन, विनिर्माण और बिजली) भी FY26 H1 में गिरकर 3% पर आ गया—FY25 में यह 4% था।

HSBC इंडिया PMI के अनुसार नवंबर 2025 में निजी क्षेत्र की गतिविधियां छह महीनों में सबसे धीमे स्तर पर रहीं। विनिर्माण नौ महीने के निचले स्तर पर गिरा, जबकि सेवाएं थोड़ा बेहतर रहीं।

एफडीआई में भारी गिरावट

सितंबर में नेट FDI -622 मिलियन डॉलर और अक्टूबर में -2.4 बिलियन डॉलर रहा, जो तेज़ी से हुई निकासी और डिसइन्वेस्टमेंट का परिणाम है हालांकि H1 वित्त वर्ष26 में इसमें साल-दर-साल बढ़ोतरी हुई, फिर भी स्थिति चिंताजनक है क्योंकि वित्त वर्ष 21: 43.9 बिलियन डॉलर, वित्त वर्ष 25: सिर्फ 959 मिलियन डॉलरयह संकेत है कि वैश्विक निवेशकों की नजर में भारत प्राथमिक पसंद नहीं रहा। एक राष्ट्रीय अखबार ने रिपोर्ट किया कि अमेरिकी शुल्क की अनिश्चितताओं के चलते विदेशी कंपनियों ने FY26 Q1 में 2 लाख करोड़ रुपये मूल्य की परियोजनाएं वापस ले लीं—पिछले साल की तुलना में 1,200% ज्यादा।

बैंक क्रेडिट और प्राइवेट कैपेक्स भी कमजोर

बैंक ऋण वृद्धि में भारी गिरावट

गैर-खाद्य क्षेत्र को बैंक क्रेडिट FY26 H1 में सिर्फ 3.6% बढ़ा—FY24 के 20.2% और FY25 के 10.2% से बहुत कम। उद्योग को दिए जाने वाले ऋण में भी गिरावट वित्त वर्ष 25: 7.3%,वित्त वर्ष 26 H1: 3.7%। बड़ी उद्योग इकाइयों को ऋण तो -0.1% तक गिर गया।प्राइवेट कॉर्पोरेट कैपेक्स कई वर्षों से सुस्त है; FY24 में इसकी वास्तविक वृद्धि सिर्फ 0.5% रही।

घरेलू निजी निवेश में ऐतिहासिक गिरावट

एक बिजनेस डेली की रिपोर्ट के अनुसार वित्त वर्ष 26 Q2 में घरेलू निजी क्षेत्र ने 14.3 लाख करोड़ रुपये की निवेश योजनाएं वापस ले लीं। यह लगातार चौथी तिमाही है जब निवेश योजनाओं का 'ड्रॉपआउट' बढ़ा है—और यह वित्त वर्ष19 Q4 के पिछले रिकॉर्ड 13.4 लाख करोड़ से भी अधिक है।

RBI और वित्त मंत्रालय की ‘विंडो ड्रेसिंग’?

RBI हर बार “प्राइवेट कैपेक्स” डेटा का ज़िक्र करता है ताकि यह दिखाया जा सके कि निवेश की रफ्तार अच्छी है। नवीनतम बुलेटिन में कहा गया। तिमाही 2 में बैंकों द्वारा स्वीकृत परियोजनाओं की लागत बढ़ी

ECB और IPO के माध्यम से जुटाई राशि बढ़ी।लेकिन RBI और वित्त मंत्रालय इन तथ्यों से परहेज़ कर रहे हैं। विदेशी कंपनियों द्वारा रिकॉर्ड निवेश वापसी। घरेलू कंपनियों द्वारा निवेश योजनाओं का लगातार गिरना। इसलिए “वर्चुअस साइकिल” की बातें वास्तविक स्थिति को ढँकने की कोशिश ज्यादा लगती हैं।

मजदूरी और रुपये में भी गिरावट

मजदूरी में तेज गिरावट

SBI रिसर्च की नवंबर रिपोर्ट के अनुसार:वित्त वर्ष 25 में 6% रही नाममात्र मजदूरी वित्त वर्ष 26 में गिरकर 2%। वास्तविक मजदूरी 1% से गिरकर 0% के आसपास।

रुपया एशिया की सबसे कमजोर मुद्रा

रुपया इस वर्ष USD के मुकाबले 4.2% गिरा—यह एशिया की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा रही।पिछले हफ्ते यह 89.5 प्रति डॉलर पर पहुंच गया था—RBI हस्तक्षेप के बाद भी यह 89 के ऊपर बना हुआ है।

इन सभी संकेतों का मतलब क्या है?

ऊपर के सभी आंकड़े भारतीय अर्थव्यवस्था की कुछ मूलभूत कमजोरियों को उजागर करते हैं:

(i) मांग की कमी

GST कटौती के बावजूद मांग कमजोर है—जिससे औद्योगिक उत्पादन, बैंक क्रेडिट, निजी निवेश सब प्रभावित हैं।

(ii) निवेशकों का घटता भरोसा

FDI का पलायन, घरेलू और विदेशी कंपनियों का निवेश योजनाएं वापस लेना, और रुपये का गिरना दर्शाता है कि भविष्य को लेकर विश्वास कम है।

(iii) अमेरिकी शुल्क का सीधा नुकसान

अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है—इसलिए 50% टैरिफ से विकास दर को बड़ा झटका लग रहा है।

क्या वाकई ‘वर्चुअस साइकिल’ आएगी?

RBI बुलेटिन कहता है कि भारत जल्द ही “उच्च निजी निवेश, उत्पादकता और विकास की वर्चुअस साइकिल” में प्रवेश करेगा। लेकिन जमीनी हकीकत बताती है कि निर्यात कमजोर है, निवेश गिर रहा है,बैंक क्रेडिट सिकुड़ रहा है, रुपये का मूल्य गिर रहा है,मजदूरी ठहर गई है कुल मिलाकर संकेत यह हैं कि विकास की गति रुक रही है—और जीडीपी आंकड़े चाहे जो कहें, अर्थव्यवस्था की बुनियादी सेहत चिंता का विषय बनी हुई है।

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