महंगाई और बढ़ती कीमतें: आखिर मोदी सरकार क्यों है चुप? देखें VIDEO
भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय लगातार बढ़ती महंगाई का सामना कर रही है. अक्टूबर 2023 में महंगाई दर पिछले 14 महीनों के उच्चतम स्तर पर थी.
India inflation: भारतीय अर्थव्यवस्था इस समय लगातार बढ़ती महंगाई का सामना कर रही है. अक्टूबर 2023 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index - CPI) आधारित महंगाई दर 6.21% पर पहुंच गई, जो पिछले 14 महीनों का उच्चतम स्तर है. सितंबर में यह 5.49% थी. खाद्य महंगाई (Food Inflation) 10.87% तक बढ़ गई है, जो सब्जियों, फलों और खाद्य तेलों की कीमतों में उछाल के कारण है. यह वृद्धि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक प्रभाव डाल रही है, जहां महंगाई दर 6.68% है. जबकि शहरी क्षेत्रों में यह 5.62% है.
द फेडरल के विशेष कार्यक्रम 'कैपिटल बीट' में प्रसिद्ध अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा ने इन बढ़ती कीमतों के मौसमी और संरचनात्मक (structural - related to the fundamental framework or system) कारणों पर चर्चा की. उन्होंने सरकार की नीतियों और उनके नकारात्मक प्रभावों पर प्रकाश डाला.
महंगाई का कारण
मेहरोत्रा के अनुसार, महंगाई का मुख्य कारण खाद्य वस्तुओं की बढ़ती कीमतें हैं, जो उपभोक्ता मूल्य सूचकांक की टोकरी (basket - a representative collection of goods and services used for calculating inflation) का लगभग आधा हिस्सा बनाती हैं. उन्होंने सरकार की नीतियों पर सवाल उठाते हुए कहा कि अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में गिरावट के बावजूद सरकार ने ईंधन (fuel) की कीमतें ऊंची रखीं. डीजल और पेट्रोल पर लगाए गए उच्च उत्पाद शुल्क (excise duties - taxes imposed on specific goods) के कारण परिवहन लागत बढ़ी, जिससे खाद्य वस्तुओं की कीमतों पर सीधा प्रभाव पड़ा. उन्होंने उर्वरक (fertilizer) सब्सिडी में कटौती और अनियमित (erratic) मानसून को भी कृषि उत्पादन और खाद्य कीमतों में वृद्धि के लिए जिम्मेदार ठहराया. ये समस्याएं भारत की आर्थिक संरचना में गहरे बैठी चुनौतियों को उजागर करती हैं.
वैश्विक और घरेलू परिप्रेक्ष्य
मजबूत अमेरिकी डॉलर और कमजोर रुपये (₹84 प्रति डॉलर) ने महंगाई को और बढ़ावा दिया है. चूंकि भारत एक बड़ा तेल आयातक है. इसलिए रुपये की गिरावट से आयात महंगा हो जाता है. मेहरोत्रा ने बताया कि 2014 से 2021 के बीच सरकार को अंतरराष्ट्रीय तेल कीमतों में गिरावट से बड़ा लाभ हुआ. लेकिन इसका फायदा आम जनता तक नहीं पहुंचा.
नौकरी और उपभोक्ता विश्वास पर प्रभाव
महंगाई का प्रभाव इसलिए अधिक महसूस हो रहा है. क्योंकि वास्तविक मजदूरी (real wages - income adjusted for inflation) स्थिर है और गैर-कृषि क्षेत्र (non-farm sector) में रोजगार सृजन नहीं हो रहा. पिछले चार वर्षों में लगभग 8 करोड़ लोग फिर से कृषि क्षेत्र में लौटे हैं, जो ग्रामीण क्षेत्रों की कठिन स्थिति को दर्शाता है. सीमित आय और बढ़ती कीमतों के कारण ग्रामीण परिवार बमुश्किल गुजर-बसर कर पा रहे हैं. शहरी क्षेत्रों में भी मध्यम वर्गीय उपभोक्ता अपनी खर्च करने की क्षमता कम कर रहे हैं. इस मांग में कमी के चलते विनिर्माण (manufacturing) क्षेत्र में क्षमता उपयोग (capacity utilization - the extent to which an enterprise or nation uses its installed production capacity) कम है, जिससे निजी निवेश प्रभावित हो रहा है.
नीतिगत सुझाव और भविष्य की संभावनाएं
मेहरोत्रा ने सुझाव दिया कि महंगाई को कम करने के लिए सरकार को ईंधन पर लगने वाले करों में कटौती करनी चाहिए. इससे विभिन्न क्षेत्रों में कीमतों में कमी आएगी. हालांकि, उन्होंने इस कदम को लेकर सरकार की मंशा पर सवाल उठाए. क्योंकि सरकार इन करों से मिलने वाले राजस्व (revenue) का उपयोग कल्याणकारी योजनाओं और नकद हस्तांतरण (cash transfers - direct transfer of money to beneficiaries) के लिए कर रही है. उन्होंने औद्योगिक नीति (industrial policy - government strategies to encourage specific industries) के तहत रोजगार सृजन की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने कहा कि यदि आप गैर-कृषि रोजगार का निर्माण करेंगे तो लोगों की आय बढ़ेगी और साथ ही उपभोक्ता विश्वास भी. उन्होंने शिक्षा और कौशल विकास में दीर्घकालिक निवेश की भी आवश्यकता बताई.
निष्कर्ष
जैसे-जैसे महंगाई आम आदमी पर भारी पड़ रही है, मेहरोत्रा ने चेतावनी दी कि निकट भविष्य में राहत की कोई संभावना नहीं है. उन्होंने भविष्यवाणी की कि सरकार राजकोषीय घाटे (fiscal deficit - the difference between the government's revenue and its expenditure) को नियंत्रित करने और चुनावी खर्च पर ध्यान केंद्रित करेगी. इस समय दाल, सब्जियों और ईंधन जैसी आवश्यक वस्तुओं की बढ़ती कीमतें भारतीय परिवारों के लिए एक गंभीर समस्या बनी हुई हैं. जहां सरकार इसे दूर करने के उपाय करने का दावा कर रही है. वहीं आलोचकों का मानना है कि ये कदम समस्या की जड़ों तक नहीं पहुंचते. आने वाले महीनों में यह देखना होगा कि सरकार आम जनता की इस वित्तीय समस्या को हल करने के लिए क्या कदम उठाती है.
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