इन परेशानियों ने भारत के एविएशन सेक्टर को ऐसी स्थिति में पहुंचा दिया है, जहां यह साफ दिखता है कि एयरलाइन, रेगुलेटर और नीति-निर्माता, तीनों मिलकर भी यात्रियों को भरोसेमंद अनुभव देने में चूक रहे हैं।
कैपिटल बीट के एक विस्तृत एपिसोड में एयर मार्शल एम. मथेश्वरन (रिटायर्ड) और एविएशन सेफ्टी विशेषज्ञ कैप्टन अमित सिंह ने इस गहराते संकट के हर पहलू की पड़ताल की; क्यों इंडिगो लड़खड़ा गई, DGCA क्यों पीछे हट गया, और किस तरह एयरलाइन का बढ़ता दबदबा यात्रियों के लिए बड़ा खतरा बन चुका है।
चार दिनों में 1,000+ फ्लाइट बाधित, देशभर में हज़ारों यात्री फँसे
इंडिगो द्वारा पायलटों के नए फ्लाइट-ड्यूटी नियमों को लेकर सही प्लानिंग न करने की वजह से चार दिनों के भीतर करीब 1,000 उड़ानें बाधित हुईं। यह संख्या अपने आप में बताती है कि संकट कितना गहरा था।
देश के हर बड़े एयरपोर्ट पर गंभीर हालात बने:
अंतहीन कतारें
बोर्डिंग गेट्स पर भ्रम
उड़ानें बार-बार लेट
कई यात्रियों के कनेक्टिंग फ्लाइट छूटे
परिवार रात भर एयरपोर्ट पर फंसे रहे
कई लोगों को इमरजेंसी यात्रा करनी थी, लेकिन टिकट ही नहीं मिला
अन्य एयरलाइनों ने थोड़ी क्षमता बढ़ाई, रेलवे ने अतिरिक्त व्यवस्था करने की कोशिश की, लेकिन स्थिति फिर भी काबू में नहीं आई। यात्रियों ने इसे “एविएशन का ब्लैकआउट” जैसा बताया।
सरकार ने जांच का आदेश दे दिया है, और इंडिगो व DGCA दोनों की ओर उंगलियां उठ रही हैं।
मथेश्वरन खुद इस संकट से प्रभावित हुए। पटना से चेन्नई उनकी फ्लाइट रद्द हुई, और उन्होंने कहा कि
“मैं प्रभावित यात्रियों में से एक हूं, और इस गड़बड़ी ने दिखा दिया कि एक अकेली एयरलाइन की गलती पूरे देश को कैसे पंगु बना देती है।”
क्या इंडिगो भारत की ‘मोनोपॉली एयरलाइन’ बन चुकी है?
यह पूरा मामला इंडिगो के बाजार पर अत्यधिक नियंत्रण पर नई बहस छेड़ता है। एयरलाइन भारत के घरेलू मार्केट का लगभग दो तिहाई हिस्सा अपने हाथ में रखती है, जो कई विशेषज्ञों की नजर में “व्यवहारिक मोनोपॉली” है।
मथेश्वरन खुलकर कहते हैं कि “इंडिगो अत्यधिक लालची और अनैतिक तरीके से अपना नेटवर्क चला रही है। मुनाफे की भूख में यह एयरलाइन अपने कर्मचारियों की सीमाओं, यात्रियों की सुरक्षा और संभावित जोखिमों की अनदेखी कर रही है।”
उनका आरोप है कि
कॉम्पिटिशन कमीशन ऑफ इंडिया (CCI)
सिविल एविएशन मंत्रालय
DGCA
इन सभी ने इंडिगो की बढ़ती ताकत को नियंत्रित करने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया। नतीजा यह कि एयरलाइन “अपने संसाधनों को हर हद तक निचोड़ती चली गई”, जिसका असर पूरे देश को झेलना पड़ा।
DGCA सबसे बड़े सवालों के घेरे में - रेगुलेटर है कहाँ?
इस संकट ने DGCA की भूमिका पर गंभीर सवाल खड़े किए हैं।
नए पायलट फटीग रूल्स, जो जनवरी 2024 में लागू किए जाने थे, एयरलाइंस के दबाव में बार-बार टाले गए।
मथेश्वरन का आरोप बेहद गंभीर है, उनका कहना है कि “DGCA में प्रोफेशनलिज्म की कमी है, सिस्टम में हितों का टकराव है, और कई मामलों में करप्शन की भी परतें दिखती हैं।”
उन्होंने आरोप लगाया कि इंडिगो का एक वाइस-प्रेसिडेंट DGCA के सिस्टम पर प्रभाव रखता है, जो सीधा कॉन्फ्लिक्ट ऑफ इंटरेस्ट है।
DGCA द्वारा अचानक अपना ही सर्कुलर वापस लेना पैनल के अनुसार इस बात का संकेत है कि :
या तो DGCA एयरलाइंस की पकड़ में है
या किसी उच्च स्तर से दबाव बनाया गया
दोनों में से कोई भी स्थिति यात्रियों के लिए अच्छी नहीं है।
मथेश्वरन ने किराए में बेतहाशा उछाल का उदाहरण देते हुए कहा कि “पटना–चेन्नई रूट पर एयर इंडिया का टिकट 8,000 रुपये से उछलकर 75,000 रुपये तक चला गया। यह डायनामिक प्राइसिंग नहीं, पागलपन है।”
DGCA सिर्फ म्याऊं करता रहा और इंडिगो दहाड़ती रही - कैप्टन अमित सिंह
कैप्टन अमित सिंह ने DGCA की कमजोरी को तीखे शब्दों में बयान किया। उन्होंने कहा कि चार दिनों तक DGCA चुप बैठा रहा। हालत यह हो गई कि DGCA म्याऊं कर रहा था और इंडिगो पूरे सिस्टम पर दहाड़ रही थी।
उन्होंने नए ड्यूटी-टाइम नियमों की पूरी टाइमलाइन समझाते हुए बताया कि DGCA इन नियमों को लागू करने को लेकर गंभीर था, लेकिन एयरलाइंस ने कहा कि उन्हें 25% ज्यादा पायलटों की जरूरत पड़ेगी, जिससे DGCA पीछे हट गया।
यहाँ एक अहम बात सामने आती है:
शुरू में DGCA चीफ बेहद सख्त थे। उन्होंने कहा था कि “1 जून से नियम लागू होंगे, इसमें बदलाव नहीं होगा।” लेकिन अब अचानक पीछे हटना बताता है कि दबाव DGCA के टॉप लेवल पर था।
FRMS सिस्टम और DGCA के शॉर्टकट
सिंह ने बताया कि नए थकान नियमों को:
जुलाई में पहला चरण
सितंबर में FRMS का ड्राफ्ट
दिसंबर तक लागू करने की कोशिश
इन सबमें परंपरागत रेगुलेटरी प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया।
सिंह कहते हैं कि
“FRMS के लिए ट्रेनिंग चाहिए।”
“टेक्निकल तैयारी चाहिए।”
“डेटा सिस्टम चाहिए।”
पर DGCA के पास इनमें से कुछ भी तैयार नहीं था।
उन्होंने कहा कि “न तो ट्रेनिंग हुई, न तैयारी। फिर अचानक इसे लागू करने का फैसला कैसे ले लिया गया?”
यात्री सबसे बड़े स्टेकहोल्डर, पर उनकी आवाज़ सबसे कमजोर
सिंह ने कहा कि भारत में सुरक्षा को वैज्ञानिक तरीके से समझने की जगह लोग अपनी “आदत” के आधार पर स्वीकार कर लेते हैं, जैसे सड़कें पार करते समय जोखिम उठा लेते हैं।
उनके अनुसार
यात्रियों का कोई राष्ट्रीय मंच नहीं
न उनके प्रतिनिधि
न सार्वजनिक सुनवाई का सिस्टम
इसलिए जब भी एयरलाइन गड़बड़ी करती है, सुधार की मांग संगठित रूप से नहीं उठती।
उन्होंने कहा कि “हर यात्री जानता है कौन सी एयरलाइन भरोसेमंद है और कौन नहीं। लेकिन उनकी आवाज़ एक जगह इकट्ठी होकर दबाव नहीं बनाती, और सुधार वहीं अटक जाता है।”
इंडिगो को तीन हिस्सों में बांटने की मांग
आगे के रास्ते पर मथेश्वरन ने एक बड़ा सुझाव दिया। उनके अनुसार “अगर सिंगापुर में यह संकट आता तो एक बड़ी एयरलाइन पर कानून मिट्टी की तरह गिरता। भारत में भी ऐसा होना चाहिए।”
उन्होंने कहा कि
इंडिगो को तीन संस्थाओं में बांटा जाए
ताकि बाजार में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा आ सके
और एक ही कंपनी पूरे सेक्टर पर नियंत्रण न रख सके
उन्होंने IBM जैसी कंपनियों के उदाहरण दिए जिन्हें मोनोपॉली तोड़ने के लिए विभाजित किया गया।
उनका कहना है कि
“ग्राउंड हैंडलिंग और एयर सर्विसेज दोनों पर इंटरग्लोब का कंट्रोल गलत है। इससे सुरक्षा और पारदर्शिता प्रभावित होती है।”
अडानी ग्रुप, पायलट ट्रेनिंग और बढ़ती केंद्रीकरण की चिंता
चर्चा अडानी डिफेंस द्वारा फ्लाइट सिमुलेशन ट्रेनिंग सेंटर में बड़ी हिस्सेदारी खरीदने पर भी पहुंची।
मथेश्वरन का तर्क है कि “अडानी ग्रुप पहले ही कई एयरपोर्ट और पोर्ट्स नियंत्रित करता है। अब ट्रेनिंग पर भी उनका नियंत्रण होगा तो यह ‘अत्यधिक केंद्रीकरण’ बनेगा, जो सुरक्षा के लिए अच्छा संकेत नहीं।”
हालांकि कैप्टन अमित सिंह ने कहा कि
यह एक बढ़ता हुआ सेक्टर है
भारत अपनी 60% ट्रेनिंग विदेश में कराता है
इससे बहुत विदेशी मुद्रा खर्च होती है
इसलिए घरेलू ट्रेनिंग इंडस्ट्री जरूरी है
लेकिन इसके लिए मानक और इन्फ्रास्ट्रक्चर मजबूत होना चाहिए।
भारत में नियम बनते हैं लेकिन लागू नहीं होते
सिंह ने कहा कि भारत में नियमों का मसौदा बनाना और उन्हें बार-बार टालते रहना एक “सिस्टमेटिक बीमारी” बन चुका है।
उन्होंने उदाहरण दिया कि 10 से अधिक विमानों वाली एयरलाइंस को देश में ट्रेनिंग इंफ्रास्ट्रक्चर बनाना जरूरी है, लेकिन यह नियम लगातार 6–7 साल से टाला जा रहा है।
उन्होंने पूछा “जब हर बार छूट देनी है तो नियम क्यों बनाते हैं? यह पूरी रेगुलेटरी संरचना को खोखला कर देता है।”
उनका निष्कर्ष था “सिस्टम दबाव सह ही नहीं पाता, क्योंकि इसकी नींव बहुत कमजोर है।”
(ऊपर दिया गया कंटेंट एक फाइन-ट्यून्ड AI मॉडल का इस्तेमाल करके वीडियो से ट्रांसक्राइब किया गया है। एक्यूरेसी, क्वालिटी और एडिटोरियल इंटीग्रिटी पक्का करने के लिए, हम ह्यूमन-इन-द-लूप (HITL) प्रोसेस का इस्तेमाल करते हैं। AI शुरुआती ड्राफ्ट बनाने में मदद करता है, जबकि हमारी अनुभवी एडिटोरियल टीम पब्लिकेशन से पहले कंटेंट को ध्यान से रिव्यू, एडिट और बेहतर बनाती है। द फेडरल में, हम भरोसेमंद और इनसाइटफुल जर्नलिज़्म देने के लिए AI की एफिशिएंसी को ह्यूमन एडिटर्स की एक्सपर्टीज़ के साथ मिलाते हैं।)