ITR Filing 2023-24: पुरानी या नई, किस व्यवस्थान से दाखिल करें रिटर्न; यहां जानें
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ITR Filing 2023-24: पुरानी या नई, किस व्यवस्थान से दाखिल करें रिटर्न; यहां जानें

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2023 की घोषणाओं के तहत नई टैक्स व्यवस्था में कई बदलावों की घोषणा की थी. उन्होंने सबसे पहले न्यूनतम छूट वाली टैक्स व्यवस्था को और अधिक आकर्षक बनाया है.


Income Tax Return Filing: वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2023 की घोषणाओं के तहत नई कर व्यवस्था में कई बदलावों की घोषणा की थी. उन्होंने सबसे पहले न्यूनतम छूट वाली टैक्स व्यवस्था को और अधिक आकर्षक बनाया है. खासतौर पर कम आय वालों के लिए छूट सीमा को बढ़ाकर 7 लाख रुपये कर दिया. उन्होंने वित्त वर्ष 2023-24 के लिए मैक्सिमस सरचार्ज को घटाकर 39 प्रतिशत करके अल्ट्रा हाई नेटवर्थ वाले लोगों के लिए भी राह आसान कर दी है.

वहीं, वेतनभोगी लोगों के पास हर साल पुरानी और नई कर व्यवस्थाओं के बीच स्विच करने की सुविधा है. भले ही आपने अपने नियोक्ता को अपना निवेश घोषणापत्र जमा करते समय नई टैक्स व्यवस्था (वित्त वर्ष 2023-24 से डिफ़ॉल्ट) चुनी हो. आप अपने आयकर रिटर्न दाखिल करते समय पुरानी कर व्यवस्था चुन सकते हैं. अगर आपको पता चलता है कि आप कई कटौतियों के लिए पात्र हैं, जो आपके टैक्स को कम कर सकती हैं. ऐसे में यहां आपके लिए सबसे उपयुक्त टैक्स व्यवस्था चुनने के लिए एक आसान गाइड दी गई है, जिससे कि टैक्स रिटर्न दाखिल करते समय आसानी हो.

कौन चुने नई टैक्स व्यवस्था?

कम से कम टैक्स देने वाली व्यवस्था की पहचान आपके द्वारा दावा की जाने वाली कटौती या छूट की राशि पर निर्भर करता है. एक वेतनभोगी जो कम कटौती का दावा करता है और प्रति वर्ष 7 लाख रुपये से कम कमाता है, उसके लिए नई टैक्स व्यवस्था बेहतर होगी.

डेलॉयट इंडिया की गणना के अनुसार, अधिकांश आयकर स्लैब के लिए दावा की गई कुल कटौतियों (धारा 80सी, 80डी, 24बी के तहत होम लोन ब्याज भुगतान, आदि) की संख्या जितनी अधिक होगी, नई व्यवस्था उतनी ही कम आकर्षक होगी. ऐसा इसलिए है, क्योंकि टैक्स छूट पुरानी व्यवस्था के तहत टैक्स योग्य आय और देय कर को कम करती है. उदाहरण के लिए अगर आप 11 लाख रुपये की आय वाले वेतनभोगी व्यक्ति हैं और आपकी कुल कटौती राशि 3.25 लाख रुपये से कम है तो नई व्यवस्था आपके लिए बेहतर होगी, जिससे कम कर व्यय सुनिश्चित होगा. वहीं, अगर आपकी कुल कटौती इस राशि से अधिक है तो पुरानी व्यवस्था अधिक लाभकारी होगी.

इस ब्रेक-ईवन पॉइंट को तालिका को 'इक्वलाइज़र' कहा जाता है. यह टैक्स स्लैब के अनुसार अलग-अलग होगा. उदाहरण के लिए 15 लाख रुपये से 5.5 करोड़ रुपये के बीच की आय के लिए यह ब्रेक-ईवन पॉइंट 4.25 लाख रुपये है. यह वह प्वाइंट है, जिस पर दोनों व्यवस्थाओं के तहत देय कर समान है. यह मानते हुए कि आप कर्मचारी भविष्य निधि (EPF), आवास लोन मूलधन पुनर्भुगतान या अन्य कर-बचत निवेशों के माध्यम से धारा 80C के तहत 1.5 लाख रुपये की कर कटौती सीमा समाप्त कर देते हैं, आपकी कटौती आसानी से 4.25 लाख रुपये को पार कर सकती है. इसके अलावा आप धारा 80D (गैर-वरिष्ठ नागरिकों के लिए अधिकतम सीमा 25,000 रुपये है) के तहत स्वास्थ्य बीमा प्रीमियम और धारा 24b (2 लाख रुपये) के तहत भुगतान किए गए आवास ऋण ब्याज पर कटौती का दावा कर सकते हैं. फिर, 50,000 रुपये की एक फ्लैट मानक कटौती है. हाई इनकम वालों के लिए नई व्यवस्था बेहतर है.

जिन व्यक्तियों पर सबसे अधिक टैक्स स्लैब दर और सरचार्ज (प्रभावी कर दर) लागू होता है, उनके लिए मुख्य रूप से नई कर व्यवस्था ही अधिक बचत का कारण बनेगी, जब तक कि आप काफी अधिक हाउस रेंट अलाउंस (HRA) का लाभ नहीं उठाते हैं.उदाहरण के लिए अगर 6 करोड़ रुपये से अधिक की आय वाला कोई वेतनभोगी व्यक्ति मेट्रो शहर में एक आलीशान अपार्टमेंट में रहता है और 5 लाख रुपये प्रति माह किराया देता है तो उसका HRA पुरानी व्यवस्था के तहत पर्याप्त कर बचत का कारण बन सकता है.

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