सोशल मीडिया की देसी चिड़िया की उड़ान होने जा रही है बंद, जानें कारण
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सोशल मीडिया की देसी चिड़िया की उड़ान होने जा रही है बंद, जानें कारण

सोशल मीडिया की देसी चिड़िया की उड़ान अब बंद होने की कगार पर है. यहाँ बात हो रही है भारतीय सोशल मीडिया साईट Koo की, जिसके संस्थापकों ने जल्द ही इसके बंद होने की घोषणा की है.


Koo shutdown: सोशल मीडिया की देसी चिड़िया की उड़ान अब बंद होने की कगार पर है. यहाँ बात हो रही है भारतीय सोशल मीडिया साईट Koo की, जिसके संस्थापकों ने जल्द ही इसके बंद होने की घोषणा की है. एक समय ऐसा भी आया था जब देश में Koo ने लगभग ट्विटर 'X' की बराबरी कर ली थी और देश के कैन वीवीआईपी जैसे केन्द्रीय मंत्री आदि ने भी इस देसी साईट पर अपने प्रोफाइल बना लिए थे, लेकिन इस देसी चिड़िया की सफलता की उड़ान ज्यादा ऊँची नहीं उड़ पायी और अब गिरती आर्थिक हालात की वजह से संस्थापकों ने इसे बंद करने का निर्णय लिया है.


दूसरी सोशल मीडिया साईट पर डाली Koo बंद करने की जानकारी

Koo के संस्थापक अप्रमेय राधाकृष्ण और मयंक बिदावतका ने बुधवार (3 जुलाई) को लिंक्डइन पोस्ट में इस बात की घोषणा की. उन्होंने बताया कि कंपनी को "लंबे समय तक वित्तीय कमी" का सामना करना पड़ा, जिससे उनकी योजनाओं को नुकसान पहुंचा और Koo शानदार विकास गति धीमी हो गयी. पोस्ट के अनुसार, Koo ने अपने चरम पर 2.1 मिलियन दैनिक सक्रिय उपयोगकर्ता, लगभग 10 मिलियन मासिक सक्रिय उपयोगकर्ता और 9,000 से अधिक वीआईपी जोड़ लिए थे. Koo की बात करें तो वर्ष 2022 में भारत में ट्विटर को पछाड़ने से बस कुछ ही महीने दूर था. बयान में ये भी कहा गया कि अगर हमें आर्थिक तौर पर सहायता मिलती तो हम 2022 के उस दौर को भविष्य में भी जारी रख सकते थे और अपने लक्ष्य को दोगुना कर सकते थे. लेकिन फिर फंडिंग की कमी आ गई. उन्होंने लिखा कि " लंबे समय तक फंडिंग की कमी ने हमारी योजनाओं को नुकसान पहुंचाया और हमें अपने विकास के रास्ते को धीमा करना पड़ा."

साझेदारी वार्ता विफल

2020 में लॉन्च किए गए Koo को इस तरह से डिज़ाइन किया गया था कि भारतीय लोग बड़े पैमाने पर अंग्रेजी-प्रधान सोशल मीडिया वातावरण में अपनी मूल भाषाओं में संवाद कर सकें. पीले रंग की चिड़िया के लोगो वाला ये प्लेटफ़ॉर्म 10 से ज़्यादा भाषाओं में उपलब्ध था. इस साल फरवरी में ऐसी जानकारी आई थी कि Koo के अधिग्रहण के लिए बेंगलुरु स्थित न्यूज़ एग्रीगेटर 'डेलीहंट' के साथ भी बातचीत कर रही थी. हालांकि, कथित तौर पर ये वार्ता विफल हो गई. संस्थापकों ने कथित तौर पर अन्य कंपनियों के साथ संभावित बिक्री या विलय पर बातचीत करने की भी कोशिश की थी, लेकिन कुछ भी काम नहीं आया. संस्थापकों ने अपने बयान में कहा कि ये निर्णय "साझेदारी वार्ता विफल होने" के बाद लिया गया.

लम्बे समय तक चाहिए निवेश

संस्थापक राधाकृष्णा की मानें, तो Koo जैसे प्लेटफॉर्म को लॉन्ग टर्म इन्वेस्टमेंट की जरूरत होती है और इन्वेस्टमेंट का तुरंत रिटर्न नहीं मिल सकता है. Koo ऐप को 66 मिलियन डॉलर इन्वेस्टमेंट मिला, जिसके बाद इसका वैल्यूएशन 275 मिलियन डॉलर हो गया है. लेकिन इसके बावजूद ऐप ज्यादा वक्त तक मुनाफे का सौदा नहीं रहा.

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