
नकदी संकट कैसे भारत के विकास में बाधक, पांच प्वाइंट्स में पूरी जानकारी
रिजर्व मनी में मंदी-खपत संबंधित लोन में इजाफा जैसे फैक्टर ऐसे बदलावों की मांग करते हैं जो RBI के दायरे से बाहर हैं। इसके लिए केंद्र के नीतिगत हस्तक्षेप की जरूरत है।
भारत पिछले कई महीनों से गंभीर नकदी संकट (लिक्विडिटी क्रंच) से गुजर रहा है। 24 जनवरी को पहली बार इस पर अलार्म बजा, जब ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में बताया कि भारतीय बैंकिंग सिस्टम का नकदी घाटा (जो बैंकों द्वारा भारतीय रिजर्व बैंक से लिए गए ऋण से मापा जाता है) 2010 के बाद से उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। इसके बाद, भारत के प्रमुख बैंकरों ने इस पर हंगामा खड़ा कर दिया।
मार्च के पहले सप्ताह में, एसबीआई रिसर्च ने चेतावनी दी कि नकदी संकट जारी है और बैंकों को "पिछले एक दशक में सबसे खराब नकदी संकट" का सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय बैंक नवंबर 2024 में नकदी अधिशेष (सरप्लस) में थे, लेकिन दिसंबर, जनवरी और फरवरी में घाटे (डेफिसिट) में आ गए। एसबीआई रिसर्च का मानना है कि यह प्रवृत्ति भविष्य में भी जारी रह सकती है।
गहराता नकदी संकट
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) द्वारा कई उपाय किए जाने के बावजूद नकदी संकट बना हुआ है। 28 मार्च को आरबीआई के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार, "शुद्ध तरलता प्रवाह" (-) 1.79 लाख करोड़ रुपये पर नकारात्मक रहा।
24 मार्च को आरबीआई ने 10 बिलियन डॉलर-रुपये के बाय-सेल स्वैप के माध्यम से एक बड़ा नीलामी कार्यक्रम चलाया था ताकि बाजार में तरलता बढ़ाई जा सके। इसके अलावा, जनवरी से ही ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) और दैनिक वेरिएबल रेट रेपो (VRR) नीलामियां भी की जा रही हैं।
हालांकि, आने वाले समय में यह संकट कम हो सकता है, लेकिन कुछ बुनियादी कारण बने रहेंगे, जिनका समाधान केवल आरबीआई के स्तर पर संभव नहीं है, बल्कि इसके लिए केंद्र सरकार की नीति-निर्माण में हस्तक्षेप आवश्यक होगा।
मुद्रास्फीति (इंफ्लेशन) और ब्याज दरें
सितंबर 2024 में मुख्य आर्थिक सलाहकार अनंथा वी नागेश्वरन और नवंबर 2024 में वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने आरबीआई से ब्याज दरों में कटौती करने को कहा था ताकि बाजार में नकदी बढ़े और निवेश को बढ़ावा मिले। लेकिन तत्कालीन आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि वे मुद्रास्फीति को 4% तक लाने का इंतजार कर रहे थे।
दिसंबर 2024 की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक में आरबीआई ने नकद आरक्षित अनुपात (CRR) को 50 बेसिस पॉइंट्स तक घटाया, लेकिन रेपो दर को नहीं बदला। फरवरी 2025 में, नए आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने रेपो दर में 25 बेसिस पॉइंट्स की कटौती की और अगले महीने और कटौती होने की संभावना है।
नकदी संकट के प्रमुख कारण
आरबीआई और एसबीआई रिसर्च ने नकदी संकट के चार प्रमुख कारण बताए हैं:
अग्रिम कर भुगतान (Advance Tax Payments) – कंपनियों द्वारा किए गए भारी कर भुगतान के कारण नकदी की उपलब्धता में कमी आई है।
विदेशी पूंजी का बहिर्गमन (Capital Outflows by FPIs) – विदेशी निवेशकों द्वारा पूंजी निकालने से नकदी प्रवाह प्रभावित हुआ है।
रुपये की रक्षा के लिए विदेशी मुद्रा परिचालन (Forex Operations to Check Rupee Depreciation) – आरबीआई द्वारा रुपये की गिरावट रोकने के लिए अमेरिकी डॉलर बेचे जाने से मुद्रा प्रवाह पर असर पड़ा।
मुद्रा की व्यापक परिसंचरण (Currency Leakage) – बड़े पैमाने पर नकद निकासी हुई, जिससे बैंकों में जमा धन में गिरावट आई।
महाकुंभ और मुद्रा रिसाव
एसबीआई रिसर्च ने संकेत दिया कि महाकुंभ के कारण नकदी की बड़ी मात्रा में निकासी हुई, जिससे मुद्रा का रिसाव हुआ। हालांकि, यह केवल आंशिक कारण है। असल में, मुद्रा रिसाव के कई अन्य गहरे कारण हैं:
1. आरक्षित धन की धीमी वृद्धि
आरबीआई ने मुद्रास्फीति पर नियंत्रण पाने के लिए धन आपूर्ति (Reserve Money) को धीमा कर दिया। वित्तीय वर्ष 2024-25 में यह दर केवल 3.7% रही, जबकि 2023-24 में यह 6.6% और 2022-23 में 9.7% थी।
2. गैर-औपचारिक अर्थव्यवस्था का बढ़ना
भारत में अनौपचारिक (कैश-आधारित) अर्थव्यवस्था तेजी से बढ़ रही है, जो नकदी प्रवाह को प्रभावित करती है। अनौपचारिक क्षेत्र की भागीदारी FY18 में 44.1% थी, जो FY24 में बढ़कर 46.1% हो गई।
3. ऋण प्रवाह में असंतुलन
कोविड महामारी के बाद से व्यक्तिगत ऋण (Personal Loans) में भारी वृद्धि हुई है, जिसमें स्वर्ण गिरवी रखकर लिए गए ऋण भी शामिल हैं। औद्योगिक और सेवा क्षेत्र के ऋण की तुलना में व्यक्तिगत ऋण अधिक तेजी से बढ़ रहा है, जिससे नकदी की निकासी बढ़ रही है।
4. बैंक जमा और ऋण के बीच बढ़ता अंतर
पिछले कुछ वर्षों में बैंकों की जमा राशि और दिए गए ऋण के बीच बड़ा अंतर बना हुआ है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने दो बार (अगस्त और नवंबर 2024) बैंकों को "कोर बैंकिंग" पर ध्यान देने के लिए कहा था, लेकिन इसका असर कम दिखा।
5. कॉर्पोरेट ऋण डिफॉल्ट और एनपीए माफी
लोकसभा में 17 मार्च 2025 को दिए गए एक उत्तर के अनुसार, FY15-FY24 के दौरान बैंकों ने 16.35 लाख करोड़ रुपये के खराब ऋण (NPAs) को माफ कर दिया। इसमें से 3.86 लाख करोड़ रुपये केवल FY23 और FY24 में माफ किए गए। इन डिफॉल्ट्स से बैंकों की पूंजी प्रभावित होती है और आर्थिक प्रणाली में तरलता की समस्या बनी रहती है।
संभावित समाधान
नकदी संकट को हल करने और दीर्घकालिक स्थिरता लाने के लिए केंद्र सरकार को निम्नलिखित नीतिगत हस्तक्षेप करने चाहिए:
धन आपूर्ति में वृद्धि – उत्पादन और निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए धन आपूर्ति को बढ़ाना आवश्यक है।
अर्थव्यवस्था को औपचारिक बनाना – अनौपचारिक क्षेत्र को औपचारिक बनाने से भारी नकदी निकासी पर अंकुश लगेगा।
बैंक जमा को आकर्षक बनाना – बैंकों में जमा को बढ़ावा देने के लिए ब्याज दरों को अधिक प्रतिस्पर्धी बनाना चाहिए।
कॉर्पोरेट ऋण डिफॉल्ट को हतोत्साहित करना – एनपीए को हर साल माफ करने की नीति को सख्ती से नियंत्रित करना चाहिए।
निष्कर्ष
जब तक ये सुधार नहीं किए जाते, तब तक "मुद्रा रिसाव" एक बड़ा खतरा बना रहेगा और भारतीय अर्थव्यवस्था को आवश्यक विकास गति नहीं मिल पाएगी। नकदी संकट केवल आरबीआई की समस्या नहीं है, बल्कि यह व्यापक आर्थिक नीतियों से जुड़ा मुद्दा है, जिसे सरकार के हस्तक्षेप और सुधारों की आवश्यकता है।