
मेक्सिको का फैसला भारत के लिए ट्रेड शॉक, कार निर्यातकों को नए बाजार की तलाश
मेक्सिको ने भारत समेत गैर-एफटीए देशों पर 50% तक टैरिफ बढ़ाए। इससे ऑटो निर्यात प्रभावित होगा, हालांकि भारत वैकल्पिक बाज़ारों की ओर बढ़ रहा है।
Mexico Tariffs on India: मेक्सिको की राष्ट्रपति क्लाउडिया शेनबाम की सरकार ने 10 दिसंबर को उन एशियाई देशों पर 50 प्रतिशत तक आयात शुल्क (Tariff) को मंज़ूरी दी, जिनके साथ मेक्सिको का कोई मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement) नहीं है। इनमें भारत भी शामिल है। हालांकि, वास्तविकता यह है कि इस तरह के टैरिफ अप्रैल 2024 से ही लागू थे। फर्क सिर्फ इतना है कि पहले ये शुल्क पूर्व राष्ट्रपति आंद्रेस मैनुअल लोपेज़ ओब्राडोर की सरकार द्वारा एक अस्थायी उपाय के तौर पर लगाए गए थे।
उस समय यह व्यवस्था केवल 544 उत्पाद श्रेणियों तक सीमित थी और इसे अप्रैल 2026 में समाप्त होना था। लेकिन अब मैक्सिकन संसद द्वारा पारित नया कानून इस अस्थायी कार्यकारी आदेश को स्थायी संसदीय कानून में बदल देता है। इसके दायरे को भी बढ़ाकर 1,463 उत्पाद श्रेणियों तक कर दिया गया है। यह नया टैरिफ ढांचा 1 जनवरी 2026 से प्रभावी होगा।
किन उत्पादों पर पड़ेगा असर
इन बढ़े हुए शुल्कों के दायरे में ऑटोमोबाइल, ऑटो-पार्ट्स, मोटरसाइकिल, लोहा और स्टील, एल्युमिनियम, स्मार्टफोन और इलेक्ट्रॉनिक्स, वस्त्र व परिधान, जूते और चमड़े के उत्पाद, औद्योगिक मशीनरी, प्लास्टिक और रसायन शामिल हैं।जहां अधिकांश उत्पादों पर अधिकतम 35 प्रतिशत शुल्क लगाया गया है, वहीं ऑटोमोबाइल पर यह दर 50 प्रतिशत तक पहुंच जाती है।
भारत की ऑटो इंडस्ट्री के लिए बड़ा झटका
इन फैसलों का भारत के उद्योग जगत पर, खासकर ऑटोमोबाइल क्षेत्र पर, गंभीर असर पड़ने की आशंका है। मेक्सिको भारत का तीसरा सबसे बड़ा कार निर्यात बाज़ार है। मारुति-सुज़ुकी और टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों की गाड़ियां एक झटके में मेक्सिकन बाज़ार में महंगी और कम प्रतिस्पर्धी हो सकती हैं।
टैरिफ बढ़ाने के पीछे की वजह
इन टैरिफ का मुख्य कारण मेक्सिको और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध हैं। दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता मौजूद है। लेकिन बीते कुछ वर्षों में एशिया, विशेषकर चीन से माल मेक्सिको भेजा जा रहा था, जहां न्यूनतम असेंबली के बाद उसे ‘मेड इन मेक्सिको’ बताकर अमेरिका में बेचा जा रहा था। इससे संयुक्त राज्य–मेक्सिको–कनाडा समझौते (USMCA) का फायदा उठाया जा रहा था।
इसी को रोकने के लिए 1 फरवरी को ट्रंप प्रशासन ने मेक्सिको से आने वाले सभी आयातों पर 25 प्रतिशत का एक समान शुल्क लगा दिया था। शेनबाम सरकार द्वारा 10 दिसंबर को लगाए गए नए टैरिफ को वॉशिंगटन के प्रति एक तरह का शांति प्रस्ताव और यह संकेत माना जा रहा है कि मेक्सिको एशियाई औद्योगिक आयातों के खिलाफ ‘फोर्ट्रेस नॉर्थ अमेरिका’ की अवधारणा के साथ सहयोग करने को तैयार है।
अमेरिका को साधने और घरेलू उद्योग को बचाने की रणनीति
मेक्सिको की सरकार जुलाई 1, 2026 को होने वाली USMCA की संयुक्त समीक्षा बैठक को भी ध्यान में रखकर चल रही है, ताकि वह बातचीत की मेज़ पर क्लीन स्लेट के साथ बैठे। गैर-एफटीए देशों पर टैरिफ बढ़ाकर अमेरिका की उस चिंता को भी संबोधित किया गया है, जो सस्ते एशियाई स्टील और इलेक्ट्रिक वाहनों की बाढ़ को लेकर है। इसके साथ ही मौजूदा संरक्षणवादी वैश्विक व्यापार माहौल में मेक्सिको अपने घरेलू रोज़गार को भी सुरक्षित करना चाहता है। इन टैरिफ के चलते जो कंपनियां अभी भारत और चीन से पुर्जे मंगवा रही हैं, उन्हें मेक्सिकन फैक्ट्रियों से खरीदने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।
एक अहम वजह चीन के साथ मेक्सिको का भारी व्यापार घाटा भी है, जहां हर 1 डॉलर के निर्यात के बदले 14 डॉलर का आयात होता है। सरकार स्थानीय विनिर्माण को बढ़ावा देकर इस अंतर को कम करना चाहती है। इसके अलावा, लगाए गए टैरिफ से सरकार को 3.76 अरब डॉलर की अतिरिक्त आय होने की उम्मीद है, जिससे बिना टैक्स बढ़ाए सामाजिक योजनाओं और बुनियादी ढांचे पर खर्च किया जा सकेगा।
भारत–मेक्सिको व्यापार संतुलन और सरकार की तैयारी
भारतीय सरकार इस बात से वाकिफ है कि इन टैरिफ का निर्यात पर क्या असर पड़ेगा और यह भी कि पूर्ण एफटीए पर बातचीत में वर्षों लग सकते हैं। वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल ने संकेत दिया है कि फिलहाल एक प्रेफरेंशियल ट्रेड एग्रीमेंट (PTA) पर बातचीत चल रही है। 2024 तक भारत–मेक्सिको के बीच कुल व्यापार 8.74 अरब डॉलर का रहा है। इसमें भारत का निर्यात 5.73 अरब डॉलर, आयात 3.01 अरब डॉलर और व्यापार अधिशेष 2.72 अरब डॉलर का है। नए टैरिफ के बाद भारतीय उद्योग को, कम से कम अस्थायी रूप से, उन ऑटो और इंजीनियरिंग उत्पादों के लिए वैकल्पिक बाज़ार तलाशने होंगे जो पहले मेक्सिको में खपते थे।
भारत के लिए पूरी तरह निराशाजनक नहीं तस्वीर
हालांकि स्थिति पूरी तरह नकारात्मक भी नहीं है। 24 जुलाई 2025 को भारत ने ब्रिटेन के साथ एफटीए पर हस्ताक्षर किए, जिससे ऑटो कंपोनेंट्स, वस्त्र, चमड़ा और अन्य कई उत्पादों को ड्यूटी-फ्री पहुंच मिली है यही वे क्षेत्र हैं जो मेक्सिको के टैरिफ से प्रभावित हुए हैं। इसके अलावा, पिछले वर्ष स्विट्ज़रलैंड, नॉर्वे, स्वीडन और लिकटेंस्टीन जैसे यूरोपीय मुक्त व्यापार संघ (EFTA) देशों के साथ समझौता हुआ, जिससे इंजीनियरिंग उत्पादों और दवाओं के लिए नए बाज़ार खुले हैं। भारत–यूएई के बीच व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौता (CEPA) के ज़रिए भी मेक्सिको-गंतव्य उत्पादों को वैकल्पिक रास्तों से भेजा जा सकता है। यूएई और सऊदी अरब में भारत से इलेक्ट्रॉनिक्स की मांग दोहरे अंकों में बढ़ रही है।
वैकल्पिक बाज़ारों की ओर रुख
कम लागत वाली कारों और मोटरसाइकिलों के लिए भारतीय निर्यातक अफ्रीकी देशों मिस्र, नाइजीरिया और दक्षिण अफ्रीका की ओर देख रहे हैं। मिस्र में 2025 तक भारतीय निर्यात में 27 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। पूर्वी एशिया में, चीन से कड़ी प्रतिस्पर्धा के बावजूद, वियतनाम और इंडोनेशिया में भारतीय ऑटो कंपोनेंट्स ने अपनी जगह बनाई है।
घरेलू स्तर पर भी एसयूवी और मिड-साइज़ कारों की मांग बढ़ रही है, जो मेक्सिको के लिए नियोजित उत्पादन के एक हिस्से की भरपाई कर सकती है। अनुमान है कि 2026 में यह घरेलू बाज़ार 6 से 8 प्रतिशत की दर से बढ़ेगा।

