मोदी–पुतिन शिखर सम्मेलन: व्यापार बढ़ोतरी, तेल सप्लाई और हथियार सौदे पर फोकस
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मोदी–पुतिन शिखर सम्मेलन: व्यापार बढ़ोतरी, तेल सप्लाई और हथियार सौदे पर फोकस

पुतिन–मोदी शिखर सम्मेलन ऐसे समय में हो रहा है, जब अमेरिका की टैरिफ नीति भारत पर दबाव बढ़ा रही है, रूस अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों से जूझ रहा है और दोनों देशों के बीच व्यापार असंतुलन ऐतिहासिक स्तर पर है।


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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शुक्रवार (5 दिसंबर) को नई दिल्ली में 23वें भारत–रूस वार्षिक शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले हैं। यह बैठक ऐसे समय में हो रही है, जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की कड़ी टैरिफ नीतियों ने भारत पर दबाव बढ़ाया है और रूस पर यूक्रेन युद्ध समाप्त करने के लिए अंतरराष्ट्रीय दबाव जारी है। यह इस वर्ष दोनों नेताओं की दूसरी मुलाकात होगी। इससे पहले वे सितंबर में चीन के तियानजिन में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (SCO) सम्मेलन में मिले थे। यह बैठक उस समय हुई थी, जब अमेरिकी टैरिफ लागू हो चुके थे और चीन-अमेरिका व्यापार तनाव चरम पर था।

तियानजिन में हुई मुलाकात को कई विशेषज्ञों ने ‘ट्रंप को नरम करने वाली कूटनीति’ माना था। क्योंकि अमेरिका में कई आलोचकों ने ट्रंप पर यह आरोप लगाया था कि उनकी नीतियों के कारण भारत चीन–रूस धुरी की ओर झुक रहा है। उस बैठक ने भारत–रूस–चीन के बीच कूटनीतिक और व्यापारिक समीकरणों को भी मज़बूत किया था।

EAEU के साथ भारत की FTA बातचीत तेज

इसी बीच भारत ने अगस्त में रूस-नेतृत्व वाले यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन (EAEU) रूस, आर्मेनिया, बेलारूस, कज़ाखस्तान और किर्गिस्तान के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) पर बातचीत शुरू की थी। इसका उद्देश्य भारतीय उद्योगों, MSMEs, किसानों और मत्स्य व्यवसाय को नए बाज़ार उपलब्ध कराना है। पिछले महीने एक उच्च स्तरीय भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने मॉस्को जाकर FTA बातचीत को आगे बढ़ाया। यह समझौता लगभग डेढ़ साल में अंतिम रूप ले सकता है। शिखर बैठक से पहले दोनों देशों के अधिकारियों के बीच रक्षा, अंतरिक्ष, व्यापार और निवेश पर विस्तृत वार्ता हुई है।

शिखर सम्मेलन से क्या उम्मीद?

भारत को उम्मीद है कि रूस के साथ व्यापार बढ़ेगा। अक्टूबर में दक्षिण रूस के सोची में एक बैठक के दौरान पुतिन ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया था कि भारत के साथ बढ़ते व्यापार असंतुलन को दूर करने के लिए रणनीति तैयार की जाए, जो भारतीय आयात द्वारा भारी रूसी कच्चे तेल की खरीद से पैदा हुआ है। संकेत मिले हैं कि रूस भारतीय कृषि उत्पादों और दवाइयों का आयात बढ़ाने पर विचार कर रहा है। वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने भी कहा कि रूस को ऑटोमोबाइल, भारी मशीनरी, टेक्सटाइल और फूड प्रोडक्ट्स के निर्यात में अपार संभावनाएं हैं।

तेजी से बढ़ता भारत–रूस व्यापार घाटा

पिछले कुछ वर्षों में भारत का रूस के साथ व्यापार घाटा लगातार बढ़ा है। FY18 में व्यापार घाटा -6.5 अरब डॉलर था। FY25 में यह बढ़कर -59 अरब डॉलर हो गया। यह घाटा कुल द्विपक्षीय व्यापार का लगभग 85% हो गया है।

भारत क्या-क्या आयात करता है?

* रूसी कच्चा तेल और पेट्रोलियम उत्पाद

* उर्वरक

* खनिज ईंधन और वैक्स

* मशीनें और भारी उपकरण

* लकड़ी, कागज़ उत्पाद

* बहुमूल्य धातुएं

भारत रूस को क्या निर्यात करता है?

* कृषि उत्पाद (मछली, चावल, चाय, कॉफी आदि)

* दवाइयां

* स्टील और इंजीनियरिंग सामान

* इलेक्ट्रिकल और मशीनरी उत्पाद

* सिरेमिक, कांच, कपड़ा, चमड़ा और रबर उत्पाद

सेवाओं के व्यापार में भी रूस को बढ़त है।

कौन-कौन से सौदे हो सकते हैं?

अमेरिका ने केवल दो रूसी तेल कंपनियों रोसनेफ्ट और लूकोइल पर प्रतिबंध लगाए हैं, जो कुल रूसी तेल उत्पादन का 49% हिस्सा हैं। इसलिए रूसी तेल आयात कम हो सकता है, लेकिन पूरी तरह बंद नहीं होगा। इसका मतलब है कि भारत का व्यापार घाटा जल्द कम होने की संभावना कम है।

भारत चाहता है इन क्षेत्रों में गहरी साझेदारी

रक्षा सौदे

भारत रूस से और अधिक हथियार प्रणालियां चाहता है। इसके अलावा उन्नत Su-30 अपग्रेड्स, S-400 मिसाइल सिस्टम की डिलीवरी और संभवतः न्यूक्लियर सबमरीन खरीदने पर विचार कर रहा है।

परमाणु ऊर्जा एवं SMR तकनीक

3 दिसंबर को संसद में दिए जवाब में परमाणु ऊर्जा राज्य मंत्री जितेन्द्र सिंह ने बताया कि भारत और रूस के बीच स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर (SMR) तकनीक पर बातचीत चल रही है। रूसी कंपनी Rosatom दुनिया की पहली कंपनी है, जिसने SMR आधारित तैरता हुआ न्यूक्लियर प्लांट (70 MW) 2019 से पेवेक में संचालित किया हुआ है।

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