Urban Challenge Fund: स्मार्ट सिटी मिशन का नया रूप, मोदी सरकार की पहल?
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Urban Challenge Fund: स्मार्ट सिटी मिशन का नया रूप, मोदी सरकार की पहल?

Budget 2025: अर्बन चैलेंज फंड के तहत 1 लाख करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई गई है, ताकि शहरों को आर्थिक विकास के केंद्र के रूप में विकसित किया जा सके.


Union Budget 2025: साल 2014 में केंद्र की सत्ता में आने के बाद से नरेंद्र मोदी सरकार ने शहरी स्थिरता (अर्बन सस्टेनेबिलिटी) को बढ़ाने के लिए कई योजनाएं शुरू कीं. इनका मकसद शहरों को रहने के लिए बेहतर स्थान बनाना था. हालांकि, ये प्रयास जमीनी स्तर पर ठोस परिणाम देने में असफल रहे हैं. इस साल के बजट में "अर्बन चैलेंज फंड" की घोषणा की गई है. इसके तहत 1 लाख करोड़ रुपये जुटाने की योजना बनाई गई है, ताकि शहरों को आर्थिक विकास के केंद्र (Growth Hubs) के रूप में विकसित किया जा सके.

पुरानी योजना का नया रूप?

इस नई पहल की तुलना 2015 में शुरू किए गए स्मार्ट सिटी मिशन (SCM) से की जा रही है. जिससे यह चिंता बढ़ गई है कि कहीं यह भी पिछली योजनाओं की तरह अधूरी क्रियान्वयन और विफल कार्यान्वयन का शिकार न हो जाए. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट 2025 के भाषण में इस फंड का उद्देश्य स्पष्ट करते हुए कहा कि यह नगरपालिकाओं के बॉन्ड, पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) और लोन के जरिए पूंजी जुटाने के लिए प्रोत्साहित करेगा. सरकार इस योजना के तहत 25% फंडिंग प्रदान करेगी. जिसमें 2025-26 के लिए 10,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं. बाकी 40,000 करोड़ रुपये शहरों को वित्तीय बाजारों और निजी निवेशकों की मदद से जुटाने होंगे.

तीन प्रमुख परियोजनाएं

यह फंड तीन मुख्य प्रकार की परियोजनाओं को समर्थन देगा:-

1. शहरों को आर्थिक केंद्रों में बदलना

2. मौजूदा शहरी क्षेत्रों का नवाचारपूर्ण पुनर्विकास

3. जल आपूर्ति और स्वच्छता संबंधी बुनियादी ढांचे को सुधारना

हालांकि यह पहल सही दिशा में उठाया गया कदम लगती है. लेकिन यह पिछली योजनाओं की तरह केवल नाम बदलकर पेश किए जाने की प्रवृत्ति को दोहराती है, बिना यह सुनिश्चित किए कि असली समस्या – यानी क्रियान्वयन (Execution) को हल किया जा रहा है या नहीं.

स्मार्ट सिटी मिशन की धीमी प्रगति

स्मार्ट सिटी मिशन (SCM) को शुरू हुए एक दशक बीत चुका है. लेकिन अब तक वांछित शहरी परिवर्तन नहीं हो पाया. सरकार अब "Ease of Living in Cities" (शहरों में रहने की सुगमता) नामक एक नई योजना पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जिससे यह सवाल उठ रहा है कि क्या SCM को धीरे-धीरे बंद किया जा रहा है?

राज्यों की वित्तीय अक्षमता

SCM तकनीकी नवाचारों (Technology-Driven Solutions) के माध्यम से शहरी जीवन को बेहतर बनाने के उद्देश्य से शुरू किया गया था. उसे कार्यान्वयन में लगातार चुनौतियों का सामना करना पड़ा.

- कई शहर तय समय पर आधे से भी कम परियोजनाओं को पूरा कर पाए.

- योजनाओं की धीमी गति, नौकरशाही की अक्षम्यता, और शहरी बदलाव को प्रभावी ढंग से लागू करने की क्षमता की कमी प्रमुख कारण बने.

- उत्तर-पूर्व के छोटे शहरों में फंड का सही उपयोग नहीं हो पाया, कई परियोजनाएं वर्क ऑर्डर (Work Order) स्तर पर ही अटकी रह गईं.

- राज्यों की आर्थिक कमजोरी ने केंद्र सरकार के अनुदानों का प्रभाव कम कर दिया, जिससे फंडिंग गैप बना और प्रगति धीमी हो गई.

नगर पालिकाओं की वित्तीय निर्भरता

SCM का एक बड़ा दोष यह था कि इसमें शहरों को अतिरिक्त राजस्व जुटाने के लिए नगर निगम बॉन्ड, भूमि मुद्रीकरण (Land Monetization) और PPP मॉडल पर निर्भर रहने को कहा गया. लेकिन सबूत बताते हैं कि अधिकांश शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) वित्तीय स्वतंत्रता और प्रशासनिक क्षमता से वंचित हैं. जिससे यह योजना सफल नहीं हो पाई.

संसदीय समिति की रिपोर्ट

संसदीय हाउसिंग और शहरी मामलों की स्थायी समिति (Standing Committee on Housing and Urban Affairs) की अध्यक्षता सांसद राजीव रंजन ने की, ने 8 फरवरी 2024 को SCM की धीमी प्रगति पर रिपोर्ट पेश की.

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष:-

- कई छोटे शहरों में SCM का कार्यान्वयन बेहद धीमा रहा.

- कई स्मार्ट शहर हजारों करोड़ रुपये की योजनाओं की योजना बनाने और उन्हें खर्च करने में असफल रहे.

- स्मार्ट सिटी फंड का केवल 21% PPP के माध्यम से खर्च किया गया. लेकिन आधे से अधिक स्मार्ट शहरों ने PPP मॉडल में कोई भी परियोजना नहीं ली.

- PPP लागत का केवल 6% ही वास्तव में परियोजनाओं पर खर्च किया गया.

- समिति ने सरकार को निजी निवेश की कमी के कारणों का विश्लेषण कर सुधारात्मक कदम उठाने की सिफारिश की.

कमजोर सार्वजनिक भागीदारी

- समिति ने बताया कि संवंधित मंत्रालयों को केवल फंड ट्रांसफर करने तक ही सीमित नहीं रहना चाहिए, बल्कि उन्हें सुनिश्चित करना चाहिए कि योजनाएं समय पर पूरी हों.

- शहरी स्थानीय निकाय (ULBs) वैश्विक स्तर पर सबसे कमजोर वित्तीय संस्थानों में से एक हैं, जिससे स्मार्ट सिटी परियोजनाओं का कार्यान्वयन बाधित हुआ.

- SCM ने जनता की जरूरतों को अनदेखा कर दिया, जिससे योजनाओं और नागरिकों की वास्तविक समस्याओं के बीच एक बड़ा अंतर पैदा हो गया.

- भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के आरोपों ने इस मिशन की विश्वसनीयता को और नुकसान पहुंचाया.

केवल नाम बदलना पर्याप्त नहीं

अब Urban Challenge Fund लाकर केंद्र सरकार एक बार फिर एक ऐसा वित्तीय मॉडल पेश कर रही है. जो बाजार से उधारी और निजी निवेश पर अत्यधिक निर्भर करता है. जबकि SCM में यह मॉडल पहले ही असफल साबित हो चुका है.

सतत और आर्थिक रूप से संपन्न शहरों के निर्माण की महत्वाकांक्षा बेहद महत्वपूर्ण है. लेकिन जब तक योजनाओं के क्रियान्वयन की प्रणालीगत खामियों को दूर नहीं किया जाता, तब तक केवल नई योजनाओं की घोषणा करना मात्र औपचारिकता बनकर रह जाएगा.

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