
टैरिफ़ पर सस्पेंस बरकरार, अमेरिका से लौट आए भारत के वार्ताकार
भारत अगस्त 1 से पहले समझौते की कोशिश में बना हुआ है, लेकिन दबाव में समझौता नहीं करेगा: सूत्र
भारत का वार्ताकार दल शनिवार को वाशिंगटन से लौट आया, जहां पांचवें दौर की व्यापार वार्ता बिना किसी ठोस सफलता के समाप्त हुई। वार्ता केवल पहले से तय प्रारूप में बनी रही, जबकि 1 अगस्त की संभावित टैरिफ डेडलाइन नज़दीक आ रही है और राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप वैश्विक स्तर पर अपने व्यापारिक भागीदारों पर दबाव बढ़ा रहे हैं, जिनमें भारत भी शामिल है।
मार्च से अब तक पांच राउंड की आमने-सामने की बातचीत के बावजूद, भारत और अमेरिका के बीच बाजार पहुंच (Market Access) जैसे अहम मुद्दों पर मूलभूत मतभेद बने हुए हैं।
प्रमुख मुद्दे
चार दिनों तक चली इस बातचीत का नेतृत्व मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल ने किया। यह चर्चा कृषि, ऑटोमोबाइल और अब उभरते डिजिटल व्यापार क्षेत्र में पुराने विवादों को हल करने में विफल रही।
मार्च से ये मुद्दे लगातार बातचीत को रोकते आ रहे हैं। ऐसे में 1 अगस्त से ट्रंप द्वारा संभावित उच्च टैरिफ लगाए जाने की चेतावनी के बीच भारत की स्थिति अनिश्चित बनी हुई है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, भारत समझौता करने के लिए प्रतिबद्ध है लेकिन वह डेडलाइन के दबाव में अपने बुनियादी रुख से समझौता नहीं करेगा। भारत का कहना है कि किसी भी समझौते को संतुलित, दीर्घकालिक, रणनीतिक और पारस्परिक रूप से लाभकारी होना चाहिए।
एक वरिष्ठ सूत्र के हवाले से मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि, “वार्ताकार अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर कोई वादा नहीं कर सकते, चाहे अमेरिका कितनी भी टैरिफ धमकियाँ दे।”
उन्होंने दो औपचारिक सहमत फ्रेमवर्क का ज़िक्र किया-
13 फरवरी की संयुक्त घोषणा, जिसमें 2025 की शरद ऋतु तक एक द्विपक्षीय व्यापार समझौते (BTA) का प्रस्ताव था
21 अप्रैल को अमेरिका के उपराष्ट्रपति जेडी वैंस की भारत यात्रा के दौरान तय टर्म्स ऑफ रेफरेंस (TORs)
मीडिया रिपोर्ट्स में एक अधिकारी के हवाले से कहा गया है कि, “अमेरिका की तरह भारत भी एक जीवंत लोकतंत्र है जहां जन-इच्छा सर्वोपरि है। कुछ क्षेत्रों को वैश्विक प्रतिस्पर्धा से बचाने की आवश्यकता है ताकि करोड़ों गरीबों की आजीविका बचाई जा सके, वहीं कुछ संवेदनशील क्षेत्रों को राष्ट्रीय हित में कानूनी संरक्षण प्राप्त है।”
पहले अधिकारी ने कहा कि "सर्वश्रेष्ठ स्थिति" यह होगी कि 1 अगस्त से पहले केवल वस्तुओं पर आधारित एक अंतरिम समझौता हो जाए। हालांकि भारत इंडोनेशिया जैसे असमान समझौतों को स्वीकार नहीं करेगा, जिसमें अमेरिका को तो शून्य शुल्क वाली पहुंच मिली लेकिन उसने इंडोनेशियाई उत्पादों पर 19% अतिरिक्त टैरिफ लगाया।
उन्होंने स्पष्ट किया, “द्विपक्षीय समझौते भविष्य में रियायतों की आशा या अच्छे विश्वास पर नहीं किए जाते।”
वार्ता अधूरी, ट्रंप का दबाव जारी
इन अधूरी वार्ताओं के बीच ट्रंप कई मोर्चों पर मांगें बढ़ा रहे हैं। फाइनेंशियल टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, उन्होंने यूरोपीय संघ पर भी दबाव बढ़ा दिया है, जिसमें समझौते के बावजूद 15% से 20% न्यूनतम टैरिफ की मांग की गई है — जो पहले की 10% चर्चा से कहीं अधिक है।
यूरोपीय संघ को भी 1 अगस्त की डेडलाइन का सामना करना पड़ रहा है, जहां ट्रंप 30% टैरिफ की धमकी दे रहे हैं यदि कोई समझौता नहीं हुआ।
भारत की स्थिति
भारत और अमेरिका के बीच जीन-संशोधित फसलों (जैसे सोयाबीन और मक्का) पर अमेरिकी मांगों को लेकर मतभेद हैं, जिन्हें भारत में प्रतिबंधित किया गया है।
डेयरी सेक्टर पर भी भारत ने पूरी तरह बाजार खोलने से इंकार किया है, इसे गुज़र-बसर कृषि और धार्मिक संवेदनाओं से जुड़ा बताया गया है।
ऑटोमोबाइल सेक्टर में ड्यूटी-फ्री एक्सेस की अमेरिकी मांग को भी भारत ने खारिज कर दिया है जब तक अमेरिका स्टील, एल्युमिनियम और ऑटो पार्ट्स पर दंडात्मक टैरिफ हटाने की प्रतिबद्धता नहीं दिखाता।
मीडिया रिपोर्ट्स में सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि भारत चाहता है कि अमेरिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की फरवरी यात्रा के दौरान तय द्विपक्षीय ढांचे का पालन करे, जिसमें 2025 की शरद ऋतु तक BTA के पहले चरण पर सहमति बनी थी।
दूसरे अधिकारी ने कहा, “अगर कोई अंतरिम समझौता हो जाता है तो ठीक है, लेकिन BTA का पहला चरण किसी अंतरिम समझौते पर निर्भर नहीं है।”
ट्रंप की टैरिफ धमकी और भारत की रणनीति
भारत को ट्रंप की बढ़ती टैरिफ धमकियों का सामना करना पड़ रहा है।
1 अगस्त से लागू संभावित नए शुल्कों के अलावा, ट्रंप ने BRICS देशों पर 10% टैरिफ लगाने की भी धमकी दी है, क्योंकि ये देश अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती दे रहे हैं।
ट्रंप प्रशासन ने 25 से अधिक देशों को अल्टीमेटम पत्र भेजे हैं, जिनमें 25% से 50% तक के शुल्क 1 अगस्त से लगाए जाएंगे।
भारत को अब तक ऐसे पत्र नहीं मिले हैं, जिससे उम्मीद बनी हुई है कि वार्ता की संभावनाएं अब भी जीवित हैं।