Economic Survey 2025: भारत में बढ़ा कॉरपोरेट मुनाफा बढ़ा, लेकिन घटी वेतन वृद्धि
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Economic Survey 2025: भारत में बढ़ा कॉरपोरेट मुनाफा बढ़ा, लेकिन घटी वेतन वृद्धि

Economic Survey: भारत के कॉरपोरेट लाभ में पिछले 15 वर्षों की उच्चतम वृद्धि देखी गई है. जो मुख्य रूप से वित्तीय, ऊर्जा और ऑटोमोबाइल क्षेत्रों में मजबूती से बढ़ते मुनाफे के कारण हुआ है.


Economic Survey of India: 1 फरवरी को देश का आम बजट पेश होने वाला है. बताया जा रहा है कि इस बजट में कई खास ऐलान हो सकते हैं. टैक्‍सपेयर्स से लेकर किसान, महिला और युवाओं के लिए खई घोषणाएं की जा सकती हैं. ऐसे में हर तबके की नजर इस बजट पर रहने वाली है. वहीं, बजट से ठीक एक दिन पहले 31 जनवरी को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने संसद में इकोनॉमिक सर्वे (Budget Economic Survey 2025) पेश कर दिया है. इसमें रोजगार, कृषि, मैन्युफैक्चरिंग और जीडीपी ग्रोथ समेत कई पहलुओं पर जानकारी मिली है. आइए विस्तार से समझने की कोशिश करते हैं.

कॉरपोरेट मुनाफे में उछाल, लेकिन वेतन वृद्धि धीमी

भारत के कॉरपोरेट लाभ में पिछले 15 वर्षों की उच्चतम वृद्धि देखी गई है. जो मुख्य रूप से वित्तीय, ऊर्जा और ऑटोमोबाइल क्षेत्रों में मजबूती से बढ़ते मुनाफे के कारण हुआ है. लेकिन विडंबना यह है कि इस मुनाफे में उछाल के बावजूद, वेतन में समान अनुपात में वृद्धि नहीं हुई है. जिससे आर्थिक स्थिरता और आय वितरण को लेकर चिंताएं बढ़ रही हैं. वित्त वर्ष 2024 (FY24) में भारत में कॉरपोरेट मुनाफा वित्त वर्ष 2008 (FY08) के बाद के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है. Nifty 500 कंपनियों का लाभ-से-GDP अनुपात 4.8% तक बढ़ गया. जो कि वित्त वर्ष 2003 (FY03) में केवल 2.1% था. बड़े निगमों, विशेष रूप से गैर-वित्तीय क्षेत्रों में, छोटी कंपनियों की तुलना में अधिक लाभ दर्ज किया गया.

धीमी रोजगार वृद्धि

रोजगार वृद्धि की रफ्तार सुस्त रही. केवल 1.5% कॉरपोरेट आय और कार्यबल विस्तार के बीच बढ़ते अंतर को उजागर किया गया. 4000 लिस्टेड कंपनियों की राजस्व वृद्धि महज 6 फीसदी रही. कर्मचारियों पर खर्च केवल 13% बढ़ा. जो वित्त वर्ष 2023 (FY23) में 17% था. यह दर्शाता है कि कंपनियां लागत-कटौती पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रही हैं, बजाय इसके कि वे कार्यबल में निवेश करें.

बढ़ते मुनाफे के बावजूद वेतन स्थिर

पिछले चार वर्षों में EBITDA मार्जिन 22% पर स्थिर रहा. लेकिन वेतन वृद्धि धीमी हो गई. खासकर आईटी क्षेत्र में शुरुआती स्तर की नौकरियों के लिए. ग्रॉस वैल्यू एडेड (GVA) में श्रमिकों की हिस्सेदारी में मामूली वृद्धि हुई है. लेकिन बड़े निगमों के बढ़ते मुनाफे ने आय असमानता (Income Inequality) को और बढ़ाने की आशंका पैदा कर दी है.

आर्थिक विकास पर असर

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि मुनाफे में वृद्धि और वेतन स्थिरता के बीच असंतुलन जारी रहने से आर्थिक प्रगति बाधित हो सकती है. अगर वेतन मुनाफे की वृद्धि दर से पीछे रह जाते हैं तो उपभोक्ता मांग कमजोर हो सकती है. इससे उत्पादन में निवेश घट सकता है. जिससे आर्थिक विस्तार की गति धीमी पड़ सकती है.

संतुलित विकास मॉडल की जरूरत

स्थायी आर्थिक विकास के लिए पूंजी और श्रम के बीच आय के संतुलित वितरण की जरूरत है. उचित वेतन संरचना मांग बढ़ाने, उपभोक्ता खर्च को समर्थन देने और दीर्घकालिक कॉरपोरेट राजस्व वृद्धि को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है. अगर कॉरपोरेट आय वितरण में पुनर्संतुलन (Recalibration) नहीं किया गया तो आर्थिक मंदी का खतरा बढ़ सकता है. जिससे भारत की भविष्य की विकास दर प्रभावित हो सकती है.

जापान से सीखने की जरूरत

द्वितीय विश्व युद्ध के बाद जापान के औद्योगीकरण पर नजर डालने से एक रोचक तुलना सामने आती है. Matthew C. Klein और Michael Pettis किताब Trade Wars are Class Wars के अनुसार, जापान की आर्थिक सफलता सरकार, व्यवसायों और श्रमिकों के बीच एक सामाजिक अनुबंध पर आधारित थी. जापानी श्रमिकों ने कम वेतन और उच्च जीवन लागत स्वीकार की. जबकि कंपनियों ने उत्पादन और नवाचार में दोबारा निवेश किया. जिससे स्थिर आर्थिक विकास और संपत्ति का न्यायसंगत वितरण सुनिश्चित हुआ. यह मॉडल कम अवधि के लाभों से अधिक, दीर्घकालिक स्थिरता को प्राथमिकता देता था. जो कि भारत में मौजूदा प्रवृत्ति से बिल्कुल विपरीत है.

निष्कर्ष

भारत में कॉरपोरेट मुनाफा तेजी से बढ़ रहा है. लेकिन वेतन वृद्धि उस गति से मेल नहीं खा रही है. अगर यह प्रवृत्ति जारी रही तो आय असमानता और आर्थिक असंतुलन गहरा सकता है. एक संतुलित विकास मॉडल, जिसमें मुनाफे का उचित वितरण और श्रमिकों के वेतन में वृद्धि शामिल हो, देश की दीर्घकालिक आर्थिक स्थिरता के लिए आवश्यक होगा.

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