
नीति आयोग ने US से कृषि, डेयरी-पॉल्ट्री इंपोर्ट पर टैरिफ घटाने का दिया सुझाव, एक्सपर्ट्स बोले, किसानों के हितों के खिलाफ
नीति आयोग ने नई अमेरिकी व्यापार नीति के तहत भारत-अमेरिका कृषि व्यापार को बढ़ावा देने के लिए अपने वर्किंग पेपर में अमेरिका से भारत में एग्री, डेयरी और पॉल्ट्री इंपोर्ट्स को इजाजत देने के साथ इसपर लगने वाले टैरिफ को घटाने का सुझाव दिया है.
भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय ट्रेड एग्रीमेंट को लेकर एक ओर बातचीत चल रही है जिसपर जल्द समझौता होने की भी उम्मीद जताई जा रही है. लेकिन इस बीच सरकार के थिंकटैंक नीति आयोग ने मई महीने के लिए एक वर्किंग पेपर जारी किया है. इस रिपोर्ट में अमेरिका के कृषि उत्पादों से लेकर डेयरी और पॉल्ट्री पर टैरिफ में कटौती करने की सिफारिश की गई है जिसे भारत में बेहद संवेदनशील मुद्दा माना जाता है. ऐसा इसलिए क्योंकि देश में 70 करोड़ लोग अपनी आय के लिए कृषि या फिर कृषि आधारित क्षेत्र डेयरी - पशुपालन पर निर्भर हैं.
नीति आयोग की सिफारिश
नीति आयोग ने मई महीने के लिए नई अमेरिकी व्यापार नीति के तहत भारत-अमेरिका कृषि व्यापार को बढ़ावा देना (Promoting India-US Agricultural Trade under the new US Trade Regime) शीर्षक के नाम से वर्किंग पेपर जारी किया है जिसे नीति आयोग के सदस्य रमेश चंद (Ramesh Chand) और आयोग की सीनियर एडवाइजर राका सक्सेना (Raka Saxena) ने तैयार किया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस प्रकार रेसिप्रोकल टैरिफ (Reciprocal Tariffs) लगाया है इससे भारत जैसे विकासशील देशों के लिए मुश्किलें खड़ी हो सकती है. इससे ट्रेड पॉलिसी में सुरक्षा-केंद्रित (Protectionist) वाली नीतियों की वापसी हो सकती है.
अमेरिकी एग्री पॉल्ट्री के इंपोर्ट पर टैरिफ घटाने की सिफारिश
इस रिपोर्ट में भारत को इन बदलते हालात अपने कृषि क्षेत्र को मजबूत और प्रतिस्पर्धी बनाने का सुझाव दिया गया है. रिपोर्ट के मुताबिक रेसिप्रोकल टैरिफ के चलते भारत-अमेरिका कृषि व्यापार एक नाजुक मोड़ पर है. ऐसे में रमेश चंद और राका सक्सेना ने सरकार को ये सलाह दी है कि अमेरिका से वैसे वस्तुओं के आयात पर भारत को टैरिफ को घटाना चाहिए जो बहुत संवेदनशील नहीं है. साथ ही पॉल्ट्री जैसे सेक्टर में नॉन टैरिफ उपायों पर अमेरिका के साथ सरकार को बातचीत करना चाहिए. एडिबल ऑयल और ड्राई फ्रूट्स के इंपोर्ट पर रणनीतिक रूप से रियायतें दी जा सकती है.
कृषि उत्पादों पर टैरिफ को कम करने की सिफारिश
नीति आयोग की इस रिपोर्ट में भारत और अमेरिका के बीच कृषि व्यापार को बढ़ावा देने के लिए भारत से कई अमेरिकी कृषि उत्पादों पर टैरिफ को कम करने की सिफारिश की गई है. इन प्रोडेक्ट्स में चावल, मिर्च, सोयाबीन तेल, झींगा, चाय, कॉफी, दूध, मुर्गी, सेब, बादाम, पिस्ता, मक्का और GM (जेनेटिकली मॉडिफाइड) सोयाबीन जैसे आइटम शामिल हैं. NITI आयोग का मानना है कि भारत में इन वस्तुओं की कमी है या अमेरिका को "बैलेंस्ड एक्सेस" देना जरूरी है, इसलिए टैरिफ को घटाना चाहिए. रिपोर्ट में चावल और मिर्च पर टैक्स हटाने की सिफारिश की गई है क्योंकि भारत पहले से बड़ी मात्रा में इसे निर्यात करता है. जिन चीजों की भारत में कमी है, जैसे सोया बीन तेल उन पर भी टैरिफ हटाने का सुझाव दिया गया है.
दूध और पॉल्ट्री आयात को इजाजत देने की सलाह
रिपोर्ट में दूध और पॉल्ट्री पर आयात करने की इजाजत देने की सिफारिश की गई बशर्ते ये प्रोडक्ट्स भारत के खाद्य सुरक्षा मानकों पर खरा उतरे. सेब, बादाम और पिस्ता भी टैक्स कम करने को कहा गया है क्योंकि ये भारतीय उत्पादों से सीधे मुकाबले में नहीं हैं. साथ अमेरिका मक्का और उससे जुड़े प्रोडेक्ट्स के इंपोर्ट को भी इजाजत देने की सिफारिश की गई है जिसका इस्तेमाल एथनॉल बनाने के साथ एक्सपोर्ट के लिए प्रोसेसिंग की लिए की जा सकती है. रिपोर्ट में जीएम सोयाबीन आयल (GM soybean oil) के इंपोर्ट को भी इजाजत देने का सुझाव दिया गया है. ये केवल बंदरगाहों के पास प्रोसेस हो, इससे बना तेल देश के भीतर बेचा जाए और GM soymeal को एक्सपोर्ट कर दिया जाए जिससे ये देश में ना फैले.
NITI की सिफारिश पर उठे सवाल
लेकिन जानकार नीति आयोग के सदस्यों की सिफारिशों से सहमत नहीं हैं. GTRI (Global Trade Research Initiative) के अजय श्रीवास्तव के मुताबिक इससे लंबी अवधि में किसानों को नुकसान हो सकता है. इनका मानना है कि छोटी अवधि की जरूरतें पूरी करने के लिए टैरिफ हटाने से लंबे समय में भारत के किसानों को भारी नुकसान हो सकता है. चावल और मक्का पर टैक्स हटाना खतरनाक हो सकता है क्योंकि अमेरिका और यूरोप भारी सब्सिडी देकर अपने अनाज सस्ते दाम पर वैश्विक बाजारों में बेचते हैं. अफ्रीका के कई देशों में इससे स्थानीय खेती बर्बाद हो गई और वे पूरी तरह से आयात पर निर्भर हो गए. भारत में 10 करोड़ से ज्यादा छोटे किसान हैं. अगर भारत भी ऐसा ही रास्ता अपनाता है, तो उन्हें भी खेती छोड़नी पड़ सकती है. अमेरिका की "USA Rice Federation" पहले ही WTO में भारत के MSP और अनाज खरीद नीति पर सवाल उठा रही है. अगर भारत टैक्स कम करता है, तो ये भारत और दबाव बनाएंगे.
डेयरी - पॉल्ट्री इंपोर्ट को इजाजत देना स्वास्थ्य और संस्कृति के खिलाफ
GTRI के मुताबिक डेयरी और पॉल्ट्री पर अमेरिका को छूट देना स्वास्थ्य और संस्कृति के लिए खतरा है. क्योंकि भारत में नियम है कि दूध उन जानवरों से आना चाहिए जिन्हें मांस या खून नहीं खिलाया गया हो. अमेरिका इस विचार से सहमत नहीं है और इस तर्क का विरोध करता रहा है. भारत इस नियम को छोड़कर केवल "खाद्य सुरक्षा" की जांच पर निर्भर हो गया, तो इससे भारत की सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों को नुकसान पहुंचेगा. GTRI का मानना है कि GM उत्पादों का आयात बहुत जोखिम भरा प्रस्ताव है. NITI आयोग ने कहा है कि GM सोयाबीन और मक्का को सीमित तरीके से बंदरगाहों पर प्रोसेस करके देश से दूर रखा जाए. लेकिन भारत में नियमों को लागू करने की क्षमता बहुत कमजोर है. सप्लाई चेन बिखरी हुई है और बाजार पर सरकार का ज्यादा नियंत्रण नहीं है. अगर GM प्रोडेक्ट्स एक बार भारत में घुस गई तो यह स्थानीय खेती को दूषित कर सकती है, निर्यात पर प्रतिबंध लग सकते हैं.
भटक गया है नीति आयोग
GTRI) का कहना है कि NITI आयोग की सिफारिशें बहुत जोखिम भरी हैं और इन्हें लागू करने से पहले जनता और विशेषज्ञों की राय लेनी चाहिए. छोटे किसानों की आजीविका, देश की खाद्य सुरक्षा, और जैविक विविधता पर इन नीतियों का गहरा असर हो सकता है. इसलिए जल्दबाजी में FTA (Free Trade Agreement) करना भारत के लिए भारी भूल हो सकती है. योजना आयोग के पूर्व सदस्य डॉ एन सी सक्सेना ने भी नीति आयोग की सिफारिशों पर ऐतराज जताया है. उन्होंने कि नीति आयोग भटक चुका है. उसे योजना के क्रियान्वन और उसकी समीक्षा पर ध्यान देना चाहिए. उन्होंने कहा कि नीति आयोग को इस बात पर फोकस करना चाहिए कि देश में किसानों की उत्पादकता कैसे बढ़े और खर्च कैसे कम हो. उन्होंने कहा, नीति आयोग मैक्रो मुद्दों (Macro Issues) पर फोकस नहीं करता है.
किसानों के हितों का सवाल
साफ है, जानकारों की राय है कि अगर भारत अमेरिका के एग्री प्रोडक्ट्स से लेकर डेयरी पॉल्ट्री पर टैरिफ घटा देगा तो यह भारतीय किसानों को असुरक्षित छोड़ने के समान होगा. क्योंकि भारतीय किसान इन सस्ते,सब्सिडी वाले उत्पादों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे. साथ ही राज्य सरकारों, किसान संगठनों और कृषि जानकारों से सलाह लिए बिना कोई बड़ा फैसला नहीं करने का भी सुझाव दिया गया है.