
उस्मानिया बिस्किट : हैदराबाद का मशहूर चाय–नाश्ता जिसे निज़ाम से मिला नाम
गरमा–गरम ईरानी चाय के साथ सबसे अच्छा लगने वाला यह कुरकुरा, सुनहरा बेक किया हुआ, मीठे और नमकीन का बिल्कुल सही संतुलन रखने वाला मुँह में घुल जाने वाला बिस्किट, अपनी उत्पत्ति का श्रेय निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ान को देता है। आज यह शाही खोज आम जनता की पसंद बन चुकी है।
कई बाहरी लोगों के लिए हैदराबाद की तीन पहचान हैं—चारमीनार, मोती और गरमागरम बिरयानी। लेकिन तेलंगाना की राजधानी के बाशिंदों के लिए चौथी पहचान भी है—उस्मानिया बिस्किट। यह ऐसा क्षेत्रीय प्रतीक है जिसके बिना खासकर चाय–समय अधूरा माना जाता है।
यह कुरकुरा, सुनहरा बेक किया गया और मीठे–नमकीन का संतुलित स्वाद रखने वाला बिस्किट, आख़िरी निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ान की देन है और उसी वजह से इसका नाम पड़ा—उस्मानिया बिस्किट। यह शाही खोज आज हर वर्ग की पसंद है—मज़दूर से लेकर प्रोफ़ेशनल तक। जानकार कहते हैं कि इसे ईरानी चाय के साथ खाने का अलग ही मज़ा है। दोनों मिलकर आमतौर पर 25 रुपये में मिल जाते हैं—5 रुपये का बिस्किट और 15–20 रुपये की चाय। तभी तो हैदराबाद में यह जुमला आम है—“अगर ईरानी चाय के साथ उस्मानिया बिस्किट नहीं खाया, तो असली शाम नहीं हुई।”
हालाँकि इसकी लोकप्रियता शहर के भीतर सबसे ज़्यादा है, लेकिन यह अब हैदराबाद की सीमाओं से बाहर निकल चुका है। अमेज़न और फ़्लिपकार्ट जैसे ई–कॉमर्स प्लेटफॉर्म पर यह बिक रहा है। हैदराबाद की मशहूर कराची बेकरी ने इसे अपनी ग्लोबल डिस्ट्रीब्यूशन चेन से दुनियाभर में पहुँचाया है।

ब्रिटेन से आई पर्यटक सामंथा लुईस ने चारमीनार घूमते हुए इसे चखा तो कहने लगीं—“यह कितना कुरकुरा और स्वादिष्ट है।”
कहानी के मुताबिक, 1940 के दशक में निज़ाम के बनाए उस्मानिया जनरल हॉस्पिटल में भर्ती मरीज़ों को दूध और ब्रेड दिया जाता था। मरीज़ रोज़ाना एक ही डाइट से ऊब गए। जब मीर उस्मान अली वहाँ आए तो एक मरीज़ ने उनसे डाइट बदलने का अनुरोध किया।
स्थानीय इतिहासकार बताते हैं कि निज़ाम ने अपनी रसोई को ऐसा हल्का स्नैक बनाने का निर्देश दिया जो मीठा और नमकीन दोनों हो। डॉक्टरों की देखरेख में शाही बावर्चियों ने मैदा, मक्खन, दूध, नमक और चीनी से बिस्किट तैयार किया। यह स्वादिष्ट भी था और पचने में आसान भी। निज़ाम ने इसे दूध–ब्रेड के साथ मरीज़ों में बाँटने का आदेश दिया। तभी बना उस्मानिया बिस्किट।
डॉ. सैयद अयूब अली (सेवानिवृत्त प्राध्यापक, काकतिया यूनिवर्सिटी, तेलंगाना) के अनुसार, “ये बिस्किट खुद निज़ाम मीर उस्मान अली ख़ान ने शुरू करवाए थे, इसी वजह से इन्हें उस्मानिया बिस्किट कहा जाने लगा।”
पहले शाही रसोई में बनते थे, फिर अबिड्स इलाके में निज़ाम की स्थापित विशेष बेकरी में बनने लगे। मरीज़ इन्हें इतना पसंद करने लगे कि घरवालों को भी चखाने लगे और धीरे–धीरे शहर की अन्य बेकरी में भी यह बनने लगे।
उद्योगशील ईरानी चायख़ानों ने इन्हें बेकरी से मँगवाना शुरू कर दिया ताकि ग्राहकों को चाय के साथ परोसा जा सके। इससे यह और लोकप्रिय हुआ और ‘ईरानी चाय–उस्मानिया बिस्किट’ की जोड़ी हैदराबाद की पहचान बन गई।
स्थानीय अनुमान है कि हैदराबाद में रोज़ाना लाखों उस्मानिया बिस्किट खाए जाते हैं।
सॉफ्टवेयर इंजीनियर शेख़ जिलानी कहते हैं—“सैकड़ों बेकरी उस्मानिया नाम से बिस्किट बना रही हैं। जहाँ लोग इकट्ठा होते हैं—चाहे ईरानी कैफ़े हो या चाय की दुकान—वहाँ चाय के साथ उस्मानिया बिस्किट ज़रूर मिलेगा।”
फिर भी, हैदराबाद की तीन बेकरी इस बिस्किट के लिए सबसे मशहूर हैं:
सुभान बेकरी (नमपल्ली)—पहली बार “रॉयल बिस्किट” (बाद में उस्मानिया) बाज़ार में लाने का दावा।
निम्रह बेकरी (चारमीनार के पास)—हमेशा खरीदारों से भरी।
नीलौफ़र बेकरी (लाकड़ी–का–पुल, नीलौफ़र हॉस्पिटल के पास)—हमेशा व्यस्त।
पुराने शहर की कई रिहाइशों में तो लोग आज भी उस्मानिया बिस्किट घर पर ही बनाते हैं।
निर्माताओं के अनुसार, पहले उस्मानिया बिस्किट हाथ से बनाए जाते थे, लेकिन आज की बढ़ती मांग और बड़े पैमाने पर उत्पादन के दौर में इसमें बदलाव आया है—अब ये मशीनों से बनाए जाते हैं।
ब्रिटानिया ने वर्षों से अपने बिस्किट, जैसे मैरी, को “परफ़ेक्ट टी-टाइम कम्पैनियन” के रूप में बेचा है। 1981 के एक विज्ञापन में ब्रिटानिया मैरी को चाय के साथ दिखाया गया था—कुछ लोग इसे चाय पीने से पहले खाते हैं, तो कुछ चाय में डुबोकर। इसी साल की शुरुआत में ब्रांड ने अपनी एक और प्रोडक्ट गुड डे को बढ़ावा देने के लिए भी चाय-बिस्किट के pairing का इस्तेमाल किया।
लेकिन हैदराबाद के लोगों के लिए उस्मानिया बिस्किट और ईरानी चाय का रिश्ता ऐसे किसी विज्ञापन से बहुत पहले ही शुरू हो चुका था और आज भी उतना ही मज़बूत है।
हैदराबाद के नल्लाकुंटा इलाके के निवासी रमेश कहते हैं—“इसे मुँह में रखते ही हल्के से काटिए और ज़ुबान पर ठहरने दीजिए, यह तुरंत पिघल जाता है। थोड़ा नमकीन, थोड़ा मीठा—यही है उस्मानिया बिस्किट की ख़ासियत। यह कुरकुरा और हल्का है। दोपहर के खाने की बजाय भी हम खुशी-खुशी चाय और बिस्किट ले लेते हैं।”
पिछले कुछ सालों में हैदराबाद के बाहर भी उस्मानिया बिस्किट की पहचान बढ़ी है। यह सादा-सा नाश्ता अब वैश्विक व्यंजन–जगत में अपनी जगह बनाने की ओर बढ़ रहा है।

निम्रह बेकरी के मालिक अबूद बिन असलम
निम्रह बेकरी के मालिक अबूद बिन असलम कहते हैं—“आज मुंबई और बेंगलुरु के अंतरराष्ट्रीय हवाईअड्डों के फूड लाउंज में यात्रियों को उस्मानिया बिस्किट परोसे जाते हैं। यूएई के रिटेलर भी हमसे वहाँ प्रोडक्शन सेंटर लगाने की माँग कर रहे हैं।”
कभी निज़ाम हैदराबाद की ओर से अस्पताल के मरीज़ों को एक पौष्टिक तोहफ़े के रूप में शुरू हुआ उस्मानिया बिस्किट, अब पीढ़ी दर पीढ़ी लाखों हैदराबादियों की ज़ुबान का स्वाद बन चुका है—और अब यह वैश्विक व्यंजन–मानचित्र पर अपनी यात्रा की बस शुरुआत कर रहा है।