वित्त मंत्रालय का ‘Next-Gen GST’ सुधार पैकेज, पुराने वादों का नया लिफाफा
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वित्त मंत्रालय का ‘Next-Gen GST’ सुधार पैकेज, पुराने वादों का नया लिफाफा

प्रधानमंत्री की घोषणाएं कागज पर भले ही बेहतर दिखती हैं, लेकिन वास्तविक सुधार तभी माने जाएंगे, जब पुराने वादों को व्यवहार में लाया जाए। वित्त मंत्रालय को स्पष्ट करना होगा कि आखिर पिछले आठ वर्षों में इन सुधारों को क्यों नहीं लागू किया गया और अब इनकी विश्वसनीयता कैसे सुनिश्चित की जाएगी।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSME), स्थानीय विक्रेताओं और उपभोक्ताओं पर टैक्स बोझ कम करने के लिए नेक्सट जनरेशन के जीएसटी सुधारों का वादा किया है। उनका कहना है कि इससे देश की अर्थव्यवस्था अधिक कुशल और नागरिक-हितैषी बनेगी और विकास को बढ़ावा मिलेगा. हालांकि, प्रधानमंत्री ने इन सुधारों का विवरण नहीं दिया। लेकिन वित्त मंत्रालय ने तुरंत एक बयान जारी कर वही पुराने प्रस्ताव पेश किए, जो 2017 में जीएसटी लागू करते समय किए गए थे। इससे एक बार फिर इस सुधार के इरादों पर सवाल उठने लगे हैं।

वित्त मंत्रालय के प्रस्तावित जीएसटी सुधार

1. उलटे शुल्क ढांचे में सुधार

2. वर्गीकरण संबंधी विवादों को सुलझाना

3. दर निर्धारण में स्पष्टता, स्थिरता और पूर्वानुमान

4. सामान्य उपयोग की वस्तुओं और महत्वाकांक्षी वस्तुओं पर टैक्स भार कम करना

5. केवल दो स्लैब – स्टैंडर्ड और मेरिट, कुछ वस्तुओं के लिए विशेष दरें

6. मुआवजा उपकर (Compensation Cess) समाप्त करना

7. टेक्नोलॉजी-आधारित सहज पंजीकरण प्रक्रिया

8. पूर्व-भरे हुए रिटर्न लागू करना, ताकि मानवीय हस्तक्षेप कम हो

9. तेजी से और स्वतः कर रिफंड प्रक्रिया

इसके अतिरिक्त मंत्रालय ने राज्यों के साथ "सहकारी संघवाद की सच्ची भावना में" मिलकर काम करने की प्रतिबद्धता जताई है। वहीं राष्ट्रीय अखबारों के अनुसार, केंद्र 5% और 18% की दो नई दरों के साथ तंबाकू पर 40% 'पाप कर' (sin tax) लगाने की योजना बना रहा है।

पुराने वादों की पुनरावृत्ति?

गौरतलब है कि यही वादे 2017 में भी किए गए थे, जब जीएसटी को “गुड एंड सिंपल टैक्स” कहकर आधी रात संसद सत्र में लागू किया गया था। सरकार ने इसे “दूसरी आज़ादी की लड़ाई” बताया था। लेकिन इसके बाद जीएसटी और उससे पहले की गई नोटबंदी को भारत की अर्थव्यवस्था के लिए “दोहरी आर्थिक चोट” माना गया। इन झटकों के कारण असंगठित क्षेत्र की बड़ी संख्या में MSMEs बंद हो गईं और व्यापार औपचारिक कॉर्पोरेट क्षेत्र में स्थानांतरित हो गया। जीडीपी विकास दर FY16 के 8% और FY17 के 8.3% से गिरकर FY20 में केवल 3.9% रह गई।

जीएसटी की संरचनात्मक खामियां

1. दरों की बहुलता

UPA सरकार के समय जीएसटी की दर 18% तय की गई थी। लेकिन 2017 में लागू जीएसटी में 9 प्रकार की दरें रखी गईं:

मुख्य दरें: 5%, 12%, 18%, 28%

MSMEs के लिए समग्र दर: 1%

विशेष दरें: सोना, चांदी, हीरे के लिए 3%, कटा-पॉलिश हीरा 1.5%, कच्चा हीरा 0.25%

अतिरिक्त: मुआवजा उपकर

2. दरों में अनिश्चितता और वर्गीकरण की उलझन

जैसे – बिना नमक वाला पॉपकॉर्न 5%, नमकीन 12% और कारमेल पॉपकॉर्न 18% पर टैक्स। मालाबार पराठा पर 18% लेकिन ब्रेड पर 5% टैक्स। अदालत को हस्तक्षेप कर दरें सुधारनी पड़ीं।

3. गरीबों पर कर बोझ

2022 में गरीबों द्वारा उपयोग किए जाने वाले अनब्रांडेड पैक्ड अनाज, दही, मटन आदि पर 5% टैक्स लगाया गया – ऐसा पहले कभी नहीं हुआ।

4. उलटा शुल्क ढांचा (Inverted Duty Structure)

उदाहरण: मानव निर्मित कपड़ों में उपयोग होने वाले कच्चे माल पर 18%, यार्न पर 12%, लेकिन अंतिम उत्पाद पर 5% टैक्स। इससे ITC (Input Tax Credit) प्रक्रिया और अधिक जटिल हो जाती है।

आईटीसी धोखाधड़ी और प्रणालीगत समस्याएं

* फर्जी आईटीसी सर्टिफिकेट का धंधा जो अभी भी जारी है।

* सेवा क्षेत्र में सत्यापन कठिन, जिससे गड़बड़ी की संभावना।

* कई राज्यों ने e-way बिल सीमा ₹1 लाख कर दी जिससे निगरानी कठिन।

* जीएसटी पोर्टल की तकनीकी समस्याएं बनी हुई हैं।

मुआवजा उपकर का अंत?

वित्त मंत्रालय कहता है कि मुआवजा उपकर (Compensation Cess) को समाप्त किया जाएगा, जबकि यह पहले ही 2021 में राज्यों को भुगतान किए बिना खत्म कर दिया गया था। इसके बावजूद केंद्र सरकार अब भी इसे 2026 तक वसूल रही है, ताकि आरबीआई से लिए गए कर्ज को चुकाया जा सके।

जीएसटी रिटर्न सिस्टम में सुधार?

पहले पूरे देश में एक कंपनी को सैकड़ों रिटर्न भरने होते थे। अब यह घटकर 60–70 तक आ गया है – यही एकमात्र वास्तविक उपलब्धि मानी जा सकती है।

ऑडिटेड अकाउंट की अनिवार्यता खत्म

जीएसटी में GSTR-9C फॉर्म के जरिए वार्षिक ऑडिटेड खातों को दाखिल करना अनिवार्य था। लेकिन इसे कभी पूरी तरह लागू नहीं किया गया और अंततः 2021 में इसे हटा दिया गया। अब केवल स्व-घोषणा के आधार पर रिटर्न दाखिल करना होता है। टैक्स प्रणाली की पारदर्शिता और ईमानदारी के लिए यह खतरनाक है।

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