RBI की नई चुनौतियां: विकास बनाम मुद्रास्फीति की कशमकश
नए गवर्नर संजय मल्होत्रा, एक अन्य सिविल सेवक, को दास के उत्तराधिकारी के रूप में नामित किया गया, दास के दूसरे तीन साल के कार्यकाल के समाप्त होने से बमुश्किल 24 घंटे पहले।
RBI New Governor : पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास के नेतृत्व में भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने 2024 तक एक स्थिर और सतर्क मौद्रिक नीति बनाए रखी, जिसमें मुद्रास्फीति पर ‘अर्जुन की नजर’ केंद्रित रही। हालांकि, अब संजय मल्होत्रा के नए नेतृत्व में केंद्रीय बैंक को यह तय करना होगा कि आर्थिक विकास की कीमत पर स्थिरता बनाए रखना कब तक संभव है।
शक्तिकांत दास की विरासत: एक संतुलित दृष्टिकोण
शक्तिकांत दास ने छह वर्षों के अपने कार्यकाल में न केवल महामारी के दौरान भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिरता प्रदान की बल्कि वैश्विक मंचों पर अपनी रणनीतियों के लिए भी सराहना अर्जित की। 2016 में विमुद्रीकरण के दौरान महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले दास ने आरबीआई को एक स्थिर और विश्वसनीय संस्था के रूप में स्थापित किया। उनके कार्यकाल में क्रिप्टोकरेंसी पर कठोर रुख और डिजिटल करेंसी ई-रुपी का आरंभ उल्लेखनीय पहलें थीं।
नए गवर्नर संजय मल्होत्रा के सामने चुनौतियां
दास के बाद, संजय मल्होत्रा को ऐसे समय में गवर्नर बनाया गया है, जब भारतीय अर्थव्यवस्था कई मोर्चों पर दबाव में है। ब्याज दरों में कटौती की बढ़ती मांग और विकास दर में गिरावट उनकी प्राथमिकता होगी। फरवरी 2025 में प्रस्तावित मौद्रिक नीति समीक्षा में यह तय होगा कि आरबीआई विकास को प्राथमिकता देगा या मुद्रास्फीति पर नियंत्रण को। विश्लेषकों का कहना है कि मल्होत्रा के नेतृत्व में ब्याज दरों में संभावित कटौती पर सभी की नजरें हैं, जबकि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की सख्त नीतियों और वैश्विक अनिश्चितताओं ने आरबीआई की राह कठिन बना दी है।
ब्याज दरों पर असहमति और आगामी नीतिगत फैसले
आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) में दरों को स्थिर रखने पर लंबे समय से सहमति रही है, लेकिन हालिया असहमति अब नीतिगत बदलाव का संकेत दे रही है। जुलाई-सितंबर तिमाही में विकास दर सात तिमाहियों के निचले स्तर पर पहुंच गई, और ऐसे में आरबीआई पर ब्याज दरों में कटौती का दबाव बढ़ा है।
विदेशी मुद्रा भंडार और रुपया: एक नई चुनौती
सितंबर 2024 में विदेशी मुद्रा भंडार 704.885 बिलियन डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर था, जो दिसंबर तक घटकर 654.857 बिलियन डॉलर रह गया। वहीं रुपया डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निम्न स्तर (85 प्रति डॉलर) पर आ गया। यह स्थिति मल्होत्रा के लिए चुनौतीपूर्ण साबित होगी।
विकास और स्थिरता की प्राथमिकता
मल्होत्रा ने अपने शुरुआती संदेश में आरबीआई कर्मचारियों से भारत को 2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनाने में योगदान देने का आह्वान किया है। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि विकास और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनाना उनके लिए सबसे बड़ी परीक्षा होगी। मल्होत्रा ने कहा, “हम अमृत काल में प्रवेश कर रहे हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने लक्ष्यों को ईमानदारी और उत्कृष्टता के साथ पूरा करें।”
अर्थव्यवस्था का भविष्य
अब आरबीआई को विकास, स्थिरता और मुद्रास्फीति नियंत्रण के बीच संतुलन बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण निर्णय लेने होंगे। फरवरी की मौद्रिक नीति समीक्षा इस बात का संकेत देगी कि भारतीय अर्थव्यवस्था किस दिशा में आगे बढ़ेगी। विश्लेषकों का मानना है कि मल्होत्रा के कार्यकाल में लिए गए फैसले भारतीय अर्थव्यवस्था के भविष्य को आकार देंगे।
(शीर्षक को छोड़कर, इस कहानी को फेडरल स्टाफ द्वारा संपादित नहीं किया गया है और एक सिंडिकेटेड फीड से स्वतः प्रकाशित किया गया है।)
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