
रुपया 90 के पार, RBI ने कहा- बाजार तय करेगा मूल्य
रुपये की गिरावट, निर्यात में कमी संकेत देते हैं कि भारत की आर्थिक गति धीमी हो रही है और निवेश आकर्षण घट रहा है। इन संकेतों को नजरअंदाज करने से नीति समीक्षा और सुधार का अवसर गंवाया जा रहा है।
जैसा अनुमान लगाया जा रहा था, भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 90 के पार जाने के बावजूद इसे रोकने के लिए कोई बड़ा कदम नहीं उठाएगा। RBI फिलहाल मुद्रा को बाजार पर छोड़ने की नीति अपनाए हुए है। मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के बाद RBI के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने स्पष्ट किया कि नीति का उद्देश्य रुपया को अपने स्तर पर पहुंचने देना है और बाजार को ही उसका स्तर तय करने देना है। बैंक केवल ज्यादा उतार-चढ़ाव रोकने और मुद्रा के व्यवस्थित संचालन को सुनिश्चित करने के लिए ही हस्तक्षेप करेगा।
RBI का बयान
मल्होत्रा ने यह भी स्पष्ट किया कि इस महीने $5 बिलियन की रुपया-USD स्वैप योजना का उद्देश्य रुपया बचाना नहीं है। उनका कहना है कि यह योजना बैंकिंग सिस्टम में तरलता (Liquidity) प्रदान करने के लिए है। उन्होंने यह भी बताया कि पहले RBI अक्सर डॉलर की खरीद-बिक्री (रुपया-USD स्वैप) के जरिए रुपया बचाता था, जैसा कि पूर्व गवर्नर शक्तिकांत दास के कार्यकाल में देखा गया। लेकिन हाल के समय में नीति में बदलाव आया है, विशेषकर जब 50 प्रतिशत अमेरिकी टैरिफ ने भारतीय निर्यातकों को प्रभावित किया।
मल्होत्रा ने कहा कि ओपन मार्केट ऑपरेशंस (OMO) फिर से शुरू होंगे, जिससे बैंकिंग सिस्टम में तरलता बढ़ाई जा सके। अक्टूबर-नवंबर में औसत तरलता अधिशेष 1.5 लाख करोड़ रुपये प्रतिदिन रह गया, जो अगस्त-सितंबर में 2.1 लाख करोड़ रुपये प्रतिदिन था। मौद्रिक विशेषज्ञ औसत 2 लाख करोड़ रुपये प्रतिदिन को आदर्श मानते हैं।
रुपये में गिरावट जारी
रुपया तब तक गिर सकता है, जब तक अमेरिका अपने दंडात्मक टैरिफ में कटौती नहीं करता। अगले सप्ताह यूएस ट्रेड डेलीगेशन नई दिल्ली आने वाला है और संभावना है कि भारत ने रूस से कच्चे तेल के आयात कम करने का आश्वासन देकर टैरिफ में ढील की दिशा में संकेत दिया है। तब तक RBI और केंद्र सरकार निर्यातकों पर बोझ कम करने के लिए रुपया गिरने देना पसंद कर रहे हैं। लेकिन इसका मतलब यह भी है कि आर्थिक नीतियों का मूल्यांकन और सुधार करने का अवसर गंवाया जा रहा है।
कमजोर आर्थिक बुनियादी बातें
रुपया का गिरना इस तथ्य के बावजूद है कि USD भी इस साल 10.5 प्रतिशत कमजोर हुआ है, जबकि रुपया 5.3 प्रतिशत गिरकर एशिया की सबसे कमजोर मुद्राओं में शामिल हो गया। FY18 के बाद से रुपया लंबे समय से USD, ब्रिटिश पाउंड और यूरो के मुकाबले कमजोर हो रहा है, जो कमजोर आर्थिक बुनियादी बातों को दर्शाता है। जैसे घटते वस्तु निर्यात, विदेशी निवेश (FPI/FDI) की कमी, घटती विनिर्माण उत्पादन और बेहद कम मुद्रास्फीति।
उद्योग और निवेश पर प्रभाव
RBI गवर्नर ने वस्तु निर्यात में गिरावट को स्वीकार किया, लेकिन विनिर्माण उत्पादन (IIP) और FPI/FDI प्रवाह पर सीमित टिप्पणी की। औद्योगिक उत्पादन (IIP) FY22 के 11.8% से घटकर FY26 के H1 में केवल 4% रह गया। मुख्य उद्योग (8 आधारभूत क्षेत्र) FY22 के 10.4% से घटकर FY26 H1 में 2.9% हो गया। FPI ने अप्रैल-दिसंबर में USD 0.7 बिलियन का नेट आउटफ्लो दर्ज किया। FDI सितंबर-अक्टूबर में -USD 2.4 बिलियन पर पहुंच गया।

