
डॉलर के मुकाबले रुपया धड़ाम, 89.49 पर पहुंची करंसी; निवेशकों पर कितना असर?
गिरता रुपया इस बार मार्केट को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाएगा। वैल्यूएशन ठंडे पड़े हैं और AI-ट्रेड कमजोर होने से FIIs जल्द ही भारत में खरीदारी बढ़ा सकते हैं।
भारतीय रुपया शुक्रवार को अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर 89.49 पर पहुंच गया। घरेलू बाज़ार में डॉलर की मांग तेज़ होने से यह भारी गिरावट देखने को मिली। आमतौर पर रुपये में ऐसी तेज कमजोरी से शेयर बाज़ार में भी चिंता बढ़ती है। क्योंकि इसका असर आयातित महंगाई, कंपनियों की लागत और आयात-आधारित सेक्टर्स पर भारी पड़ता है।
वैश्विक बाज़ार शांत
मौजूदा गिरावट ने ट्रेडर्स को हैरान कर दिया है। क्योंकि डॉलर इंडेक्स स्थिर रहा, अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों में कोई हलचल नहीं, कच्चे तेल के दाम में बदलाव नहीं और उभरते बाज़ारों की मुद्राएं भी कमजोर नहीं हुईं। रुपये की यह गिरावट “असामान्य” थी। क्योंकि वैश्विक संकेत लगभग स्थिर थे। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, डॉलर की आपूर्ति कम थी। भारी खरीदारी से लिक्विडिटी गैप बना और RBI, जो 88.80 स्तर पर रुपये को बचा रहा था, इस बार पीछे हटता दिखा। इससे अचानक स्टॉप-लॉस ट्रिगर हुए और गिरावट और भी तेज़ हो गई।
शेयर बाज़ार में बढ़ी चिंता
रुपये में रिकॉर्ड कमजोरी से शेयर बाज़ार में “रिस्क-ऑफ सेंटिमेंट” बढ़ता है। क्योंकि इससे आयातित महंगाई बढ़ती है। कॉरपोरेट लागत बढ़ती है। मार्जिन पर दबाव आता है। खासकर मिडकैप–स्मॉलकैप स्टॉक्स पर ज्यादा असर पड़ता है। FIIs भी रुपये के नए निचले स्तरों पर आमतौर पर डिफेंसिव होने लगते हैं।
कौन से सेक्टर्स फायदे में?
रुपये की गिरावट से एक्सपोर्ट-आधारित सेक्टर्स को सीधा लाभ मिलता है। उनकी डॉलर में कमाई रुपये में बदलने पर बढ़ जाती है।
लाभ पाने वाले सेक्टर्स
* IT
* फार्मा एक्सपोर्टर्स
* टेक्सटाइल
* जेम्स एंड ज्वेलरी
* केमिकल्स और स्पेशलिटी केमिकल्स
* ऑटो एंसिलियरी
कौन होंगे नुकसान में?
आयात-आधारित सेक्टर्स पर तगड़ा असर पड़ेगा:
* एविएशन और OMCs (ईंधन महंगा)
* इलेक्ट्रॉनिक्स और कंज्यूमर ड्यूरेबल्स
* ऑटो कंपनियां जो आयातित पार्ट्स पर निर्भर
* कोयला आयात पर निर्भर पावर यूटिलिटीज
* कैपिटल गुड्स कंपनियां
रिपोर्ट्स के मुताबिक, गिरता रुपया इस बार मार्केट को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचाएगा। वैल्यूएशन ठंडे पड़े हैं और AI-ट्रेड कमजोर होने से FIIs जल्द ही भारत में खरीदारी बढ़ा सकते हैं। अगले 3–12 महीनों में FII का रुझान वैश्विक ब्याज दरों और भारतीय कंपनियों की कमाई पर ज्यादा निर्भर करेगा, न कि केवल रुपये पर।
रुपये को स्थिर करने वाले कारक
विशेषज्ञों के अनुसार, आने वाले महीनों में रुपये को स्थिर करने में ये कारक मदद कर सकते हैं:-
* भारत–अमेरिका ट्रेड डील (यदि होती है)
* कच्चे तेल के दाम घटने
* डॉलर की मजबूती में कमी
* RBI का नियमित हस्तक्षेप

