कमजोर डॉलर में भी टूटता रुपया, गहरी कमजोरी उजागर
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कमजोर डॉलर में भी टूटता रुपया, गहरी कमजोरी उजागर

भारत में रुपये का 90 के पार जाना सिर्फ बाज़ार उतार-चढ़ाव नहीं, बल्कि कमजोर आर्थिक बुनियाद, बढ़ते व्यापार घाटे, FPI-FDI पलायन और अमेरिकी टैरिफ के दबाव का नतीजा है।


मुख्‍य आर्थिक सलाहकार (CEA) अनंथा वी. नागेश्वरन भले ही रुपये के 90 के मनोवैज्ञानिक स्तर को पार कर 3 दिसंबर (बुधवार) को 90.19 पर बंद होने को लेकर चिंता जताने से बच रहे हों, लेकिन यह गिरावट एक बड़ी और लगातार बनी हुई समस्या का संकेत है आर्थिक बुनियादी ढांचे का कमजोर होना। यह इसलिए भी स्पष्ट है क्योंकि डॉलर के मुकाबले रुपये का गिरना कोई अचानक झटका नहीं, बल्कि लगातार जारी रुझान है। यही हाल दो अन्य प्रमुख मुद्राओं यूरो और ब्रिटिश पाउंड (GBP) के मुकाबले भी है। (गुरुवार को रुपया 19 पैसे मजबूत होकर 89.96 पर बंद हुआ।)

नागेश्वरन का बयान ध्यान से पढ़ने पर कुछ बातें खुलकर सामने आती हैं, और कुछ वे छुपा जाते हैं। उन्होंने कहा “यह अगले साल वापस आ जाएगा। फिलहाल यह न तो हमारे निर्यात को नुकसान पहुंचा रहा है और न ही महंगाई को। मुझे इसकी नींद नहीं उड़ती। अगर रुपये को गिरना है, तो शायद अभी यही सही समय है।”

गिरावट के पीछे के कारण

रुपये के 90 का स्तर पार करने के पीछे कई तात्कालिक कारण बताए जा रहे हैं—

पूंजी बाजार में हेजिंग

आयातकों की ओर से डॉलर की बढ़ती मांग, विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) का लगातार पलायन। बाजार की अपनी मनोविज्ञान-आधारित चाल होती है, लेकिन आयातकों का दबाव समझा जा सकता है।ध्यान देने की बात यह है कि भारत एक नेट इंपोर्टिंग देश है और व्यापार घाटा लगातार बढ़ रहा है। अप्रैल–अक्टूबर 2025 के बीच व्यापार घाटा बढ़कर 78.14 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले वर्ष इसी अवधि में 69.92 अरब डॉलर था।

FPIs का पलायन जारी

स्थिति तब और बिगड़ गई जब FPIs ने जनवरी–3 दिसंबर 2025 के बीच 8.2 अरब डॉलर की नेट बिकवाली की। सिर्फ दिसंबर के पहले तीन दिनों में ही उन्होंने 613 मिलियन डॉलर निकाले, जिसमें 369 मिलियन डॉलर अकेले 3 दिसंबर को था।

रुपये की गिरावट गहरी आर्थिक कमजोरी को उजागर करती है

लगातार गिरावट कमजोर मैक्रोइकोनॉमिक बुनियाद दिखाती है

आयात बिल बढ़ने से व्यापार घाटा और चौड़ा

FPI–FDI के पलायन से निवेशकों का भरोसा कमजोर

अमेरिकी टैरिफ से निर्यात आय पर गहरा असर

2025 में एशियाई मुद्राओं के मुकाबले रुपये का खराब प्रदर्शन

FDI में भी गिरावट

दीर्घकालिक निवेश यानी FDI में भी गिरावट दर्ज की गई।अगस्त और सितंबर में नेट FDI 3 अरब डॉलर घटा, क्योंकि कंपनियों ने पुनः मुनाफा बाहर ले जाना और विनिवेश बढ़ा दिया। FY25 में नेट FDI 959 मिलियन डॉलर रहा, जो FY24 के 43.9 अरब डॉलर से बहुत कम है।ये सभी संकेत बताते हैं कि भारत अपनी निवेश–गंतव्य आकर्षकता खो रहा है—जिसे आसानी से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।

अमेरिकी टैरिफ का असर

CEA का सहज रवैया इसलिए भी है क्योंकि अमेरिका को होने वाला भारत का सबसे बड़ा निर्यात अधिशेष अब दबाव में है।अमेरिका ने 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद सितंबर में भारत का निर्यात 11.9% और अक्टूबर में 8.58% गिर गया, जिससे 1.3 अरब डॉलर का सीधा नुकसान हुआ।सरकार इस समय रुपये को जानबूझकर ज्यादा मजबूत होने से रोक रही है ताकि निर्यातक प्रतिस्पर्धी बने रहें जब तक टैरिफ पर बातचीत जारी है।

RBI भी पहले जैसा हस्तक्षेप नहीं कर रहा। IMF ने भी भारत के फॉरेक्स मैनेजमेंट को stabilised से घटाकर “crawl-like arrangement” कर दिया है। सौभाग्य से महंगाई फिलहाल 0.25% (अक्टूबर) जैसे रिकॉर्ड निम्न स्तर पर है और जून–अक्टूबर के दौरान औसत 1.5% ही रही है इसलिए रुपये को गिरने देने की गुंजाइश है।

कमजोर डॉलर के बावजूद रुपये की गिरावट

विडंबना यह है कि रुपये की गिरावट तब हो रही है जब डॉलर स्वयं जनवरी 2025 से कमजोर हो रहा है, ट्रंप के कार्यकाल शुरू होने के बाद। डॉलर इंडेक्स दिसंबर तक 10.5% गिर चुका है। इसके बावजूद, रुपया 2025 में अभी तक 5.3% कमजोर हुआ है और ज्यादातर एशियाई मुद्राओं से खराब प्रदर्शन कर रहा है। कमजोर मुद्रा आमतौर पर कमजोर आर्थिक बुनियाद का संकेत होती है मजबूत अर्थव्यवस्थाओं की मुद्रा मजबूत रहती है।

आगे की राह

अब नजर MPC (मौद्रिक नीति समिति) की दिसंबर बैठक पर है कि वह इस गिरते रुपये पर कैसी प्रतिक्रिया देती है। लेकिन इतना स्पष्ट है कि CEA और नीति-निर्माताओं को यह जांचने की जरूरत है कि—

“मजबूत GDP ग्रोथ, खासकर FY26 की पहली दो तिमाहियों की रिकॉर्ड वृद्धि के बावजूद, रुपया लगातार क्यों फिसल रहा है?” यह सवाल भारत की आर्थिक सेहत का असली परीक्षण है।

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