
मिडिल क्लास के सामने 'बेरोजगार भविष्य' का खतरा, एक्सपर्ट बोले- "मासिक वेतन को भूल जाइए"
एक्सर्ट ने अंदाजा लगाया कि पारंपरिक वेतनभोगी नौकरियों का ढांचा बहुत तेज़ी से ढह जाएगा और उसकी जगह एक बिखरी हुई गिग इकॉनमी ले लेगी, जहाँ ड्राइवर से लेकर कोडर, पॉडकास्टर और वित्तीय सलाहकार तक—हर कोई खुद के लिए काम करेगा यानी स्वरोज़गार अपनाएगा।
भारत में पारंपरिक नौकरियों का दौर अब खत्म हो चुका है — ऐसा कहना है मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के संस्थापक और मुख्य निवेश अधिकारी सौरभ मुखर्जी का। उनके मुताबिक, आने वाले सालों में स्थायी वेतन वाली नौकरियों की जगह गीग इकॉनमी (Gig Economy) ले लेगी — जहां हर व्यक्ति, चाहे वह ड्राइवर हो, कोडर, पॉडकास्टर या फाइनेंशियल एडवाइज़र, खुद का मालिक होगा।
मुखर्जी ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में कहा, “रोज़गार की वृद्धि लगभग रुक चुकी है। यह स्थिति अब साफ़ दिखाई दे रही है — और इसे पलटना बहुत मुश्किल है।”
उनका कहना है कि पिछले पांच सालों में व्हाइट-कॉलर (ऑफिस आधारित) नौकरियों में कोई बड़ी बढ़ोतरी नहीं हुई है, और आगे भी इसके बढ़ने की संभावना बहुत कम है।
बड़ी कंपनियाँ अब बिना कर्मचारियों के बढ़ रहीं हैं
मुखर्जी ने बताया कि आज की बड़ी और मुनाफ़े वाली कंपनियाँ — जैसे HDFC Bank, Bajaj Finance, Titan और Asian Paints — अब बिना नए कर्मचारियों को जोड़े अपने कारोबार को बढ़ा पा रही हैं।
मुखर्जी बोले, “ऑटोमेशन ने इन कंपनियों के लिए विस्तार आसान बना दिया है। इसलिए इनके ज़्यादा लोगों को नौकरी देने की संभावना बेहद कम है।”
लाखों नए ग्रेजुएट्स के लिए संकट
हर साल करीब 80 लाख नए ग्रेजुएट भारतीय प्रोफेशनल बाज़ार में आते हैं, लेकिन उनके लिए पर्याप्त नौकरी के अवसर नहीं हैं। मुखर्जी ने कहा, “देश को यह समझना होगा कि जब कॉर्पोरेट सेक्टर में पर्याप्त अवसर नहीं होंगे, तब इन नए लोगों को जीविका देने के नए रास्ते कैसे खोजे जाएँ।”
उन्होंने चेतावनी दी कि आने वाले कुछ साल भारत की “काम को फिर से परिभाषित करने” की क्षमता की असली परीक्षा होंगे।
"हम गिग नौकरियों की दुनिया में प्रवेश कर चुके हैं"
मुखर्जी के मुताबिक, पारंपरिक वेतन आधारित नौकरियों का पतन बहुत तेज़ी से हो रहा है, और उसकी जगह छोटे-छोटे स्वतंत्र कामों की दुनिया ले रही है — जिसे गिग इकॉनमी कहा जाता है।
उन्होंने कहा, “अब हम गिग नौकरियों की दुनिया में जा रहे हैं। स्थायी वेतन वाली नौकरी का युग अब बीत चुका है।”
भारत के पास है कुछ खास बढ़त
हालाँकि मुखर्जी मानते हैं कि भारत के पास इस बदलाव से निपटने के अनोखे साधन हैं —युवाओं की बड़ी आबादी (औसत आयु 29 वर्ष), दुनिया का सबसे सस्ता मोबाइल डेटा और डिजिटल सिस्टम जैसे आधार और UPI।
मुखर्जी ने कहा, “ये डिजिटल टूल्स वह गोंद हैं जो गिग वर्कर्स को एक साथ बाँधे रखेंगे।”
भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए चेतावनी
मुखर्जी ने कहा, “परंपरागत व्हाइट-कॉलर नौकरियाँ अब एक चुनौती बन चुकी हैं। हमें अपने बच्चों और खुद को इस भविष्य के लिए तैयार करना होगा, जहाँ हम अपने जीवन का बड़ा हिस्सा गिग वर्कर के रूप में बिताएँगे।”

