शेयर मार्केट में तगड़ी गिरावट, हिल गया बाजार; ये रहीं प्रमुख वजह
सोमवार को मार्केट खुलने के साथ ही शुरुआती कारोबार से ही भारी गिरावट देखी गई. इससे सेंसेक्स 1272 अंक तक टूट गया.
share market decline: सोमवार को मार्केट खुलने के साथ ही शुरुआती कारोबार से ही भारी गिरावट देखी गई. इससे सेंसेक्स 1272 अंक तक टूट गया. वहीं, निफ्टी में 356 अंक से ज्यादा की गिरावट देखी गई. ऐसे में बाजार बंद होने तक सेंसेक्स 84,299 लेवल पर बंद हुआ. वहीं, 50 शेयरों वाला निफ्टी 25,822.25 अंक पर क्लोज हुआ. बाजार में गिरावट की वजह से बीएसई पर लिस्टेड सभी कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 3.55 लाख करोड़ रुपये घटकर 474.38 लाख करोड़ हो गया.
बाजार में स्मॉल कैप से लेकर लार्ज कैप के शेयरों में भारी गिरावट देखी गई. BSE सेंसेक्स के टॉप 30 शेयरों में से 25 शेयर लाल निशान पर कारोबार कर रहे थे. सबसे ज्यादा गिरावट AXIS बैंक के शेयरों में देखी गई. इसके शेयरों में 3.15 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई. इसके बाद 3 फीसदी से ज्यादा की गिरावट रिलायंस इंडस्ट्रीज के शेयरों मे देखी गई. वहीं, HDFC Bank, टेक महिंद्रा, महिंद्रा एंड महिंद्रा, आईसीआईसीआई बैंक और बजाज फाइनेंस के शेयरों में गिरावट देखने को मिली.
रिलायंस इंडस्ट्रीज, आईसीआईसीआई बैंक, एचडीएफसी बैंक और एक्सिस बैंक के शेयरों में 730 अंकों की कमी देखी गई. वहीं, इंफोसिस, एमएंडएम, भारती एयरटेल, एसबीआई और आईटीसी में भी गिरावट में देखने को मिली. निफ्टी के बैंक, ऑटो, फाइनेंशियल सर्विसेज, फार्मा, पीएसयू बैंक 1-2% कम होकर बंद हुए. हालांकि, इंडिया VIX 6.9% उछलकर 12.8 पर पहुंच गया.निफ्टी मेटल में 1.3% की बढ़ोतरी देखी गई. इंडेक्स में एनएमडीसी, एपीएल अपोलोट्यूब्स, वेलस्पन कॉर्प और जेएसडब्ल्यू स्टील सबसे ज्यादा फायदे में रहे.
गिरावट की वजह
चीनी बाजार
विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) चीनी बाजारों का रुख कर रहे हैं. क्योंकि चीनी सरकार ने आर्थिक प्रोत्साहन उपायों की घोषणा की है. इस वजह से ब्लू-चिप सीएसआई300 इंडेक्स में 3.0% की वृद्धि हुई और शंघाई कंपोजिट में 4.4% की बढ़ोतरी देखी गई. इसके अलावा चीन के केंद्रीय बैंक ने मौजूदा होम लोन के लिए दरों को कम करने की योजना की घोषणा की, जिससे निवेशकों का विश्वास बढ़ा है. वहीं, विदेशी पोर्टफोलियो को प्रभावित करने वाला एक महत्वपूर्ण कारण चीनी शेयरों का बेहतर प्रदर्शन भी है.
राजनीतिक तनाव
लेबनान में इजरायली हमलों की वजह से वैश्विक बाजारों में अनिश्चितता को बढ़ा दिया है. हालांकि, अभी फिलहाल तेल की कीमतों को नियंत्रित रखा गया है. लेकिन मिडिल-ईस्ट में चल रहे संघर्ष ने ऊर्जा आपूर्ति को लेकर चिंता बढ़ा दी है. कच्चे तेल की बढ़ती कीमतों, जैसे ब्रेंट क्रूड वायदा 0.71% और यूएस वेस्ट टेक्सास इंटरमीडिएट 0.63% बढ़ा है. ऐसे में भारत की तेल आयात पर निर्भरता के कारण भारतीय इक्विटी बाजार पर दबाव पड़ा है.
फेडरल रिजर्व
फेडरल रिजर्व बाजार मौद्रिक नीति पर बारीकी से नजर रख रहा है. वहीं, नौकरी के अवसर, निजी भर्ती संख्या, मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज पर आईएसएम सर्वेक्षण सहित प्रमुख डेटा बिंदु भी आने वाले हैं. सप्ताह का समापन अमेरिकी पेरोल रिपोर्ट के साथ होगा, जो इस बात को प्रभावित कर सकता है कि फेडरल रिजर्व नवंबर में ब्याज दर में एक और महत्वपूर्ण कटौती का विकल्प चुनता है या नहीं. उपभोक्ता खर्च में मध्यम वृद्धि और मुद्रास्फीति के दबाव को कम करने वाले हालिया आंकड़ों ने फेड की आगामी बैठक में ब्याज दर में बड़ी कटौती की उम्मीदों को और बढ़ा दिया है. वायदा संकेत देते हैं कि 7 नवंबर को फेड द्वारा 50 आधार अंकों की राहत दिए जाने की लगभग 53% संभावना है.
बैंक ऑफ जापान
जापान के सत्तारूढ़ लिबरल डेमोक्रेट्स द्वारा शुक्रवार देर रात पूर्व रक्षा मंत्री शिगेरू इशिबा को प्रधान मंत्री फूमियो किशिदा का उत्तराधिकारी चुनने के बाद सोमवार को बाजार भी दबाव में आ गए, जो मंगलवार को पद छोड़ने वाले हैं. इशिबा ने ब्याज दरों को उनके लगभग शून्य स्तर से बढ़ाने के लिए बैंक ऑफ जापान के संभावित कदमों के लिए समर्थन व्यक्त किया है. वह अन्य नीतियों का भी समर्थन करते हैं. जैसे कि संभवतः कॉर्पोरेट करों को बढ़ाना, जिन्हें शीर्ष पद के लिए उनके मुख्य प्रतिद्वंद्वी, आर्थिक सुरक्षा मंत्री साने ताकाइची की तुलना में कम बाजार अनुकूल माना जाता है, जिन्हें उन्होंने रन-ऑफ वोट में हराया था. बता दें कि पिछली बार जब बैंक ऑफ जापान ने अगस्त में ब्याज दरें बढ़ाई थीं.
एफआईआई
विदेशी संस्थागत निवेशक (एफआईआई) शुद्ध विक्रेता बन गए. 27 सितंबर को 1,209 करोड़ रुपये के शेयर बेचे. इसके बावजूद, सितंबर के लिए उनका कुल निवेश मजबूत रहा, जो महीने के लिए 57,000 करोड़ रुपये से अधिक रहा. एफआईआई भारत में बिक्री जारी रख सकते हैं और बेहतर प्रदर्शन करने वाले बाजारों में अधिक पैसा लगा सकते हैं. हालांकि, इस बिक्री से भारतीय बाजार पर कोई खास असर पड़ने की संभावना नहीं है. क्योंकि भारी घरेलू पैसा आसानी से एफआईआई द्वारा बेची जा रही हर चीज को सोख सकता है.