₹10,000 करोड़ खर्च, नतीजा शून्य: CAG रिपोर्ट में स्किल इंडिया की पोल खुली
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कम अवधि के पाठ्यक्रम, अनुपयुक्त कौशल प्रशिक्षण और रोजगार के अवसरों की कमी को स्किल इंडिया मिशन को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारणों के रूप में देखा जा रहा है। (प्रतीकात्मक चित्र: X/@MSDESkillIndia)

₹10,000 करोड़ खर्च, नतीजा शून्य: CAG रिपोर्ट में स्किल इंडिया की पोल खुली

प्रशिक्षण, रोजगार और डेटा की विश्वसनीयता पर सवाल; CAG ने फर्जी खाते, संदिग्ध प्रमाणपत्र और राज्यों में कमजोर निगरानी का खुलासा किया


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2015 में शुरू की गई और उसके बाद तीन बार फिर से लॉन्च की गई स्किल इंडिया मिशन की प्रमुख योजना प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY) भारतीय वर्क फोर्स को कुशल बनाने में विफल रही है। इसके संकेत लंबे समय से अन्य आधिकारिक आंकड़ों में दिख रहे थे, लेकिन इस बार भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) ने 18 दिसंबर को संसद में पेश अपनी रिपोर्ट में इसकी चौंकाने वाली विफलताओं को स्पष्ट रूप से उजागर कर दिया है।

CAG रिपोर्ट के अनुसार, यह योजना उन्हीं कारणों से असफल रही जिन कारणों से यूपीए सरकार के कार्यकाल में इसका पिछला संस्करण भी विफल हुआ था। उस समय इसे नेशनल स्किल डेवलपमेंट मिशन कहा जाता था, जिसके क्रियान्वयन के लिए नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन (NSDC) की स्थापना 2008 में की गई थी।

2015 में इसका नाम बदलकर स्किल इंडिया रखा गया और इसे दोबारा लॉन्च किया गया। इस योजना का लक्ष्य 2022 तक 50 करोड़ लोगों को प्रशिक्षण देना था। हालांकि, CAG रिपोर्ट के अनुसार, योजना अब तक केवल 1.32 करोड़ लोगों को प्रशिक्षित करने का दावा करती है, जिनमें से 1.1 करोड़ को प्रमाणपत्र दिए गए।

रोजगार पाने वालों की संख्या इतनी अस्पष्ट है कि उसे गिनने लायक भी नहीं माना जा सकता। बल्कि, प्रशिक्षित और प्रमाणित लोगों की संख्या भी भरोसेमंद नहीं है।

तथ्य और निष्कर्ष

CAG की निष्कर्षों पर आने से पहले कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को ध्यान में रखना ज़रूरी है:

a) स्किल इंडिया के पहले दो चरण 2015 से 2020 के बीच चले, जबकि तीसरा चरण 2020 से 2022 के दौरान चला। CAG की रिपोर्ट केवल इन्हीं तीन चरणों को कवर करती है। चौथा चरण मार्च 2022 में शुरू किया गया।

b) स्किल इंडिया के तहत शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग (STT), उद्योग की विशेष ज़रूरतों के अनुसार स्पेशल प्रोजेक्ट (SP), और पूर्व अनुभव की मान्यता (Recognition of Prior Learning – RPL) जैसे प्रशिक्षण कार्यक्रम दिए जाते हैं। प्रमाणित उम्मीदवारों को प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT) के माध्यम से ₹500 का प्रोत्साहन दिया जाता है।

CAG ने 2015 से 2022 की अवधि के दौरान आठ राज्यों — असम, बिहार, झारखंड, केरल, महाराष्ट्र, ओडिशा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश — में योजना के प्रदर्शन की समीक्षा की।

योजना और नियोजन से जुड़े क्षेत्रों में CAG ने निम्नलिखित खामियां पाईं:

1. सूक्ष्म स्तर पर कौशल-अंतर (स्किल गैप) से संबंधित जानकारी का अभाव, दीर्घकालिक कार्यान्वयन रणनीति की कमी और राष्ट्रीय कौशल विकास योजना का न होना। इसके कारण, क्षेत्रवार और राज्यवार प्रशिक्षण स्किल गैप स्टडीज़ के अनुरूप नहीं पाए गए।

2. केंद्र और राज्यों के बीच समन्वय प्रभावी नहीं रहा, जबकि 2022 तक योजना के तीन चरण पूरे हो चुके थे।

3. कौशल गुणवत्ता आश्वासन और विनियमन के लिए शीर्ष स्तर का ढांचा, जिसे राष्ट्रीय व्यावसायिक शिक्षा एवं प्रशिक्षण परिषद (NCVET) के माध्यम से लागू किया जाना था, अब भी स्थापना की प्रक्रिया में ही था और यह केवल सीमित नियामक भूमिका ही निभा सका।

4. प्रशिक्षण से जुड़े अहम डेटा और सूचनाओं को सुरक्षित रखने के लिए कोई स्पष्ट नीति नहीं थी, जैसे प्रशिक्षण के फोटो/वीडियो साक्ष्य, शिक्षा और कार्य अनुभव के रिकॉर्ड। इसके अलावा, प्रशिक्षकों, मूल्यांकनकर्ताओं और उम्मीदवारों की इलेक्ट्रॉनिक पहचान, संपर्क और बैंक खाते के विवरण से जुड़े नियंत्रण भी प्रभावी नहीं थे। इसके परिणामस्वरूप निम्नलिखित कार्यान्वयन संबंधी समस्याएं सामने आईं:

5. नामांकन निर्धारित मानदंडों जैसे उम्र, शिक्षा और कार्य अनुभव की अनदेखी करते हुए किए गए। लक्षित लाभार्थियों, यानी बेरोजगार युवाओं और स्कूल/कॉलेज छोड़ चुके छात्रों की पहचान और सत्यापन के लिए कोई स्पष्ट व्यवस्था भी मौजूद नहीं थी।

6. शॉर्ट टर्म ट्रेनिंग और स्पेशल प्रोजेक्ट (STT/SP) के तहत 56.14 लाख उम्मीदवारों में से केवल 23.18 लाख, यानी 41 प्रतिशत को ही रोजगार मिला। केरल में उम्मीदवारों के रोजगार के सबूत के तौर पर गलत प्लेसमेंट दस्तावेज पेश किए गए। वहीं उत्तर प्रदेश में, स्किल इंडिया पोर्टल पर 12,616 उम्मीदवारों को रोजगार मिलने का दावा किया गया, लेकिन राज्य एजेंसी के पास इसका कोई रिकॉर्ड नहीं मिला।

7. RPL-BICE (बड़े और मध्यम उद्योगों में उनके परिसरों में ही कौशल का आकलन और प्रमाणन) के तहत एजेंसियों के चयन, प्रस्तावों की जांच, क्रियान्वयन और निगरानी प्रक्रिया में कई अनियमितताएं पाई गईं। NSDC द्वारा प्रशिक्षण और निगरानी से जुड़े दस्तावेज भरोसेमंद नहीं पाए गए।

8. प्रमाणन प्रक्रिया में 33 सेक्टर स्किल काउंसिल (SSC) शामिल थे, लेकिन RPL-BICE के तहत 34.93 प्रतिशत प्रमाणन मीडिया, मनोरंजन और ग्रीन जॉब्स सेक्टर में ही किए गए। कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) ने कहा कि मीडिया और अन्य SSCs ने छोटे नियोक्ताओं को शामिल किया, जिनकी प्रकृति अस्पष्ट थी और जिन्होंने अपने कर्मचारियों के बारे में संदिग्ध सबूत पेश किए। सर्वे के समय बिहार के 10 में से 3 प्रशिक्षण केंद्र और ओडिशा के 17 में से 1 प्रशिक्षण केंद्र बंद पाए गए।

9. धनराशि जारी करने में रसीद और भुगतान नियमों का उल्लंघन किया गया।

10. RPL यानी पूर्व सीख की मान्यता के तहत आधार से जुड़े उपस्थिति प्रणाली (AEBAS) का पालन नहीं किया जा रहा था। प्रशिक्षण केंद्रों के निरीक्षण में पाया गया कि 24 प्रशिक्षण केंद्रों में बायोमेट्रिक डिवाइस या तो लगाए ही नहीं गए थे या फिर वे काम नहीं कर रहे थे।

11. अलग-अलग प्रशिक्षण कार्यक्रमों के लिए एक ही तस्वीरों को सबूत के तौर पर पेश किया गया।

12. दूसरे चरण (2016–20) में प्रशिक्षण से ध्यान हटाकर RPL पर ज़्यादा जोर दिया गया और अत्यधिक प्रमाणपत्र जारी किए गए। वास्तविक प्रशिक्षण के लक्ष्य और फंडिंग को “वित्तीय बाधाओं” का हवाला देकर घटा दिया गया। प्रमाणित उम्मीदवारों को DBT के जरिए दिए जाने वाले 500 रुपये के भुगतान में भारी अनियमितताएं पाई गईं।

13. स्किल इंडिया पोर्टल (SIP) पर पंजीकरण के समय मोबाइल नंबर, बैंक खाता और ईमेल जैसी संपर्क जानकारियां देना “अनिवार्य” था। इसके बावजूद चरण 2.0 और 3.0 के दौरान 95.9 लाख में से 90.7 लाख यानी 94.53 प्रतिशत बैंक खातों में “शून्य”, “null”, “N/A” दर्ज था या वे खाली थे। शेष मामलों में 12,122 बैंक खाता नंबर 52,381 प्रतिभागियों के लिए दो या उससे अधिक बार दोहराए गए। जहां एक उम्मीदवार के लिए एक खाता दर्ज था, वहां भी स्पष्ट रूप से गलत खाता नंबर पाए गए, जैसे ‘11111111111…’, ‘123456……’, एक अंकीय खाता नंबर, या केवल टेक्स्ट, नाम, पता या विशेष चिह्न।

14. ऑनलाइन सर्वे के जरिए सत्यापन करने पर 36.5 प्रतिशत ईमेल में “डिलीवरी फेल्योर” पाया गया। जिन मामलों में ईमेल पहुंचा भी, वहां से केवल 3.95 प्रतिशत की ही प्रतिक्रिया मिली, और उनमें से 76.6 प्रतिशत प्रतिक्रियाएं या तो एक ही ईमेल आईडी से थीं या संबंधित प्रशिक्षण भागीदार/प्रशिक्षण केंद्र (TP/TC) की ईमेल आईडी से आई थीं।

ये निष्कर्ष दर्शाते हैं कि प्रशिक्षण, प्रमाणन और रोजगार को लेकर कौशल विकास और उद्यमिता मंत्रालय (MSDE) के दावे पूरी तरह काल्पनिक हैं और बहुत कम लोगों को, अगर किसी को भी, वास्तव में कौशल मिला। वरना जिन प्रमाणित उम्मीदवारों के खातों में DBT के जरिए नकद भुगतान किया गया, उन बैंक खातों में इतनी बड़ी संख्या में गड़बड़ियां कैसे हो सकती थीं, वह भी 94.53 प्रतिशत से कहीं ज़्यादा?

CAG का कहना है कि मंत्रालय ने भरोसा दिलाया है कि चौथे चरण (मार्च 2022 से) में उसने व्यवस्था दुरुस्त कर ली है। लेकिन यह तब ही पता चलेगा जब CAG दोबारा इसकी समीक्षा करेगा। यह व्यवस्था बहुत पहले दुरुस्त हो जानी चाहिए थी, न कि 14,450 करोड़ रुपये के कुल परिव्यय में से 9,261 करोड़ रुपये खर्च हो जाने के बाद (जिसमें से 10,194 करोड़ रुपये जारी किए गए थे)।

इसके बावजूद फरवरी 2025 में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मिशन के पुनर्गठन के लिए अतिरिक्त 8,800 करोड़ रुपये को मंजूरी दे दी, जबकि पुनर्गठन का स्वरूप अब भी स्पष्ट नहीं है। सवाल यह है कि क्या इस योजना ने किसी को वास्तव में कौशल दिया भी?

2017 में प्रेस सूचना ब्यूरो (PIB) की एक रिपोर्ट में कहा गया था, “अब तक भारत की कुल कार्यशक्ति में से केवल 4.69 प्रतिशत को ही किसी प्रकार का औपचारिक कौशल प्रशिक्षण मिला है।” वहीं 2024 में आर्थिक सर्वेक्षण 2023–24 में कहा गया, “15 से 29 वर्ष की आयु के युवाओं में से केवल 4.4 प्रतिशत को ही औपचारिक व्यावसायिक या तकनीकी प्रशिक्षण मिला है।” चूंकि बाद वाली रिपोर्ट में कुल कार्यशक्ति के संदर्भ में आंकड़ा नहीं दिया गया, इसलिए दोनों की तुलना कर वास्तविक प्रगति का आकलन करना संभव नहीं है।

शायद स्किल इंडिया की पूरी तरह विफलता के कारण ही कौशल विकास से जुड़े ठोस और विश्वसनीय आंकड़े सार्वजनिक नहीं किए जाते। CAG द्वारा उजागर की गई ये असफलताएं यूपीए दौर की विफलताओं से बहुत अलग नहीं हैं। वर्ष 2017 में शारदा प्रसाद समिति ने अपनी रिपोर्ट में निष्कर्ष दिए थे, लेकिन अब वे सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं हैं। उस रिपोर्ट में कहा गया था, “₹2,500 करोड़ की सार्वजनिक धनराशि निजी क्षेत्र को लाभ पहुंचाने में खर्च कर दी गई, जबकि न तो उद्योग की वास्तविक कौशल जरूरतें पूरी हुईं और न ही युवाओं को सम्मानजनक वेतन पर रोजगार मिला।”

बीते वर्षों में मीडिया रिपोर्टों ने यह भी उजागर किया है कि दिल्ली-एनसीआर जैसे क्षेत्रों में भी नियोक्ता कुशल या प्रमाणित श्रमिकों के लिए अतिरिक्त भुगतान करने को तैयार नहीं हैं। कार्यस्थलों पर शुरुआती वेतन में योग्यता स्तर के अनुसार बहुत मामूली अंतर पाया गया, जिससे कौशल प्रशिक्षण योजनाओं में रुचि कम हो गई। कई प्रतिभागियों ने भी अल्प अवधि के पाठ्यक्रमों, अनुपयुक्त कौशल प्रशिक्षण और रोजगार के अवसरों की कमी को स्किल इंडिया मिशन में बाधा डालने वाले प्रमुख कारण बताया।

पीपीपी से केंद्रीय योजना की ओर

17 मई 2025 को नीति आयोग के सीईओ बीवीआर सुब्रह्मण्यम ने सुझाव दिया कि “सरकार को कौशल प्रशिक्षण संस्थानों को निजी क्षेत्र को सौंपने पर विचार करना चाहिए।” यह केंद्र सरकार की नीति में एक बड़ा उलटफेर है। जब 2008 में एनएसडीसी की शुरुआत हुई थी, तब यह पीपीपी मॉडल पर आधारित था, जिसमें केंद्र सरकार की 49 प्रतिशत पूंजी हिस्सेदारी थी और शेष 51 प्रतिशत निजी क्षेत्र (उद्योग संगठनों) की थी।

लेकिन 2016 में जब स्किल इंडिया 2.0 की शुरुआत हुई, तो इसे बदलकर (a) केंद्र प्रायोजित, केंद्र द्वारा प्रबंधित योजना (CSCM) बना दिया गया, जिसमें 75 प्रतिशत फंड और लक्ष्य एनएसडीसी के माध्यम से कौशल विकास के लिए तय किए गए, और (b) केंद्र प्रायोजित, राज्य द्वारा प्रबंधित योजना (CSSM), जिसमें शेष 25 प्रतिशत फंड और लक्ष्य राज्य कौशल विकास मिशनों के जरिए आवंटित किए गए।

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