मोदी सरकार के लिए गोल्ड उतना खरा नहीं! यह स्कीम क्यों बन रही है मुसीबत
सोने की आयात कम करने के लिए नरेंद्र मोदी सरकार सॉवरन गोल्ड बांड स्कीम लेकर आई थी। निवेशकों ने भरोसा भी जताया। लेकिन सोने की बढ़ती कीमत ने सरकार को उलझन में डाल दिया है।
Sovereign Gold Bond Scheme: मोदी 3.0 के लिए लग रहा है कुछ भी अच्छा नहीं चल रहा है। उसका हर फैसला यू टर्न वाला साबित हो रहा है। चाहे लैटर एंट्री हो, वक्फ बोर्ड संशोधन बिल, ब्रॉडकास्टिंग संशोधन बिल या फिर क्रीमी लेयर का मामला हो, मोदी सरकार के लिए तीसरा कार्यकाल चुनौतीपूर्ण बनता दिख रहा है। और इस दौरान उसकी छवि पहले दो कार्यकाल से बेहद अलग दिख रही है। और इसी रवैये को देखते हुए ऐसी खबरें आ रही हैं कि सरकार एक अहम योजना से हाथ खींच सकती है। जी हां सही सुना आपने मोदी सरकार अपनी एक हिट योजना को बंद करने की तैयारी में हैं। और इस बार उसकी परेशानी का सबब बना है गोल्ड।
सॉवरेन गोल्ड बांड स्कीम से दूरी !
गोल्ड मोदी सरकार को इस तरह परेशान कर रहा है कि वह अपनी 8 साल पुरानी सॉवरेन गोल्ड बांड स्कीम से दूरी बनाने जा रही है। क्योंकि आरबीआई के पास जितना गोल्ड है उसका 17 फीसदी हिस्सा कागज के रुप में आरबीआई के पास आ गया है। देश में इस समय आरबीआई के पास 822 टन फिजिकल गोल्ड है। और 139 टन यानी 17 फीसदी बांड के रुप में आ गया है। अगर निवेशक इसे भुनाने लगे तो सरकार के लिए कैश का संकट खड़ा हो सकता है। क्योंकि उसके पास फिजिकल बैकिंग नहीं है तो उसे अपने कैश रिजर्व से ही पैसा देना होगा।आयात रोकने के लिए लाई गई स्कीम
असल में सरकार ने गोल्ड के आयात को कम करने के लिए साल 2015 डिजिटल गोल्ड को बढ़ावा देने की रणनीति अपनाई । और नवंबर 2015 में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम की शुरुआत की। इसके जरिए निवेशक फिजिकल गोल्ड खरीदने के बजाय डिजिटल गोल्ड खरीदता है। और इस बॉन्ड में निवेश करने पर निवेशक को गोल्ड की कीमतों में हुई वृद्धि के साथ ब्याज का लाभ भी मिलता है। इसका मतलब है कि निवेशकों को दोहरा लाभ होता है।
असल में सरकार ने गोल्ड के आयात को कम करने के लिए साल 2015 डिजिटल गोल्ड को बढ़ावा देने की रणनीति अपनाई । और नवंबर 2015 में सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम की शुरुआत की। इसके जरिए निवेशक फिजिकल गोल्ड खरीदने के बजाय डिजिटल गोल्ड खरीदता है। और इस बॉन्ड में निवेश करने पर निवेशक को गोल्ड की कीमतों में हुई वृद्धि के साथ ब्याज का लाभ भी मिलता है। इसका मतलब है कि निवेशकों को दोहरा लाभ होता है।
सरकार की गारंटी की वजह से निवेशकों ने इस स्कीम पर जमकर पैसा लगाया। लेकिन यही सरकार से एक चीज समझने में चूक हो गई। साल में 2016 में गोल्ड की कीमत जहां 28,623 रुपये प्रति 10 ग्राम थी, वह 2024 में चढ़कर 71,510 रुपये के पार पहुंच गई। ऐसे में जिन लोगों ने उस समय सॉवरेन बांड खरीदा था। उनकी चांदी हो गई। और नवंबर 2024 में गोल्ड बॉन्ड की पहली सीरीज मैच्योर होने वाली है। बॉन्ड के मैच्योर होने से निवेशक जहां मालामाल होंगे, वहीं सरकार के लिए यह घाटे का सौदा बन रहा है। इससे सरकारी खजाने पर बोझ बढ़ने का अंदेशा है।
सोने की कीमतों में उछाल का असर
सरकार को उम्मीद थी कि एसजीबी में उन्हें रिटर्न पर ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा। इसकी एक ही सूरत थी कि गोल्ड का भाव धीरे-धीरे और लंबी अवधि में बढ़े। लेकिन, साल 2015 के बाद से सोने की कीमतों में भारी उछाल आया है। ऐसे में साल 2015 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पहली सीरीज में 2684 रुपये प्रति ग्राम के हिसाब से बॉन्ड जारी किया था। इस सीरीज के जरिये सरकार ने करीब 245 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि जुटाई थी। जिन निवेशकों ने 8 साल तक बॉन्ड को अपने पास रखा, उनके लिए रिडेम्पशन प्राइस यानी भुनाने वाली कीमत 6,132 रुपये प्रति ग्राम हो गई। बॉन्ड की कीमतों में तेजी आने की वजह से सरकार निवेशकों को करीब 560 करोड़ रुपये चुकाएगी। इसके अलावा लगभग 49 करोड़ रुपये ब्याज भी देना होगा। यानी 245 करोड़ रुपये के बदले 364 करोड़ रुपये एक्स्ट्रा चुकाने होंगे।
सरकार को उम्मीद थी कि एसजीबी में उन्हें रिटर्न पर ज्यादा पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा। इसकी एक ही सूरत थी कि गोल्ड का भाव धीरे-धीरे और लंबी अवधि में बढ़े। लेकिन, साल 2015 के बाद से सोने की कीमतों में भारी उछाल आया है। ऐसे में साल 2015 में भारतीय रिजर्व बैंक ने पहली सीरीज में 2684 रुपये प्रति ग्राम के हिसाब से बॉन्ड जारी किया था। इस सीरीज के जरिये सरकार ने करीब 245 करोड़ रुपये से ज्यादा की राशि जुटाई थी। जिन निवेशकों ने 8 साल तक बॉन्ड को अपने पास रखा, उनके लिए रिडेम्पशन प्राइस यानी भुनाने वाली कीमत 6,132 रुपये प्रति ग्राम हो गई। बॉन्ड की कीमतों में तेजी आने की वजह से सरकार निवेशकों को करीब 560 करोड़ रुपये चुकाएगी। इसके अलावा लगभग 49 करोड़ रुपये ब्याज भी देना होगा। यानी 245 करोड़ रुपये के बदले 364 करोड़ रुपये एक्स्ट्रा चुकाने होंगे।
सरकार को इस बात की चिंता
अब सरकार को डर यह है कि जिस तरह गोल्ड की कीमतों में तेजी है। ऐसे में सॉवरेन गोल्ड बांड स्कीम में निवेश बढ़ेगा और अगर बड़ी संख्या में निवेशक एकसाथ अपना बॉन्ड भुनाने आते हैं, तो सरकार के लिए नकदी प्रवाह बनाए रखना मुश्किल हो सकता है। इसके कारण सरकार को अपनी अन्य योजनाओं और वित्तीय प्राथमिकताओं में कटौती करनी पड़ सकती है। यहीं नहीं अभी तक जारी हुई सीरिज को देखे तो सरकार पर निवेशकों का 85,000 करोड़ रुपये देनदारी है, जो मार्च 2020 के अंत में बकाया 10,000 करोड़ रुपये से लगभग नौ गुना है। यही नहीं करीब 30 बांड सीरिज ऐसी हैं जो कि अगले छह महीने में भुनाने के लिए पात्र हो जाएंगी। जो सरकार के लिए देनदारी का बोझ बढ़ा सकती हैं। अब तक सरकार ने केवल 67 सीरिज जारी की है और उसमें से केवल 4 ही भुनाई गई हैं। ऐसे में सरकार को स्कीम को बंद करने के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा है। यानी बिन बैठाए एक नया संकट खड़ा होने का अंदेशा है।
अब सरकार को डर यह है कि जिस तरह गोल्ड की कीमतों में तेजी है। ऐसे में सॉवरेन गोल्ड बांड स्कीम में निवेश बढ़ेगा और अगर बड़ी संख्या में निवेशक एकसाथ अपना बॉन्ड भुनाने आते हैं, तो सरकार के लिए नकदी प्रवाह बनाए रखना मुश्किल हो सकता है। इसके कारण सरकार को अपनी अन्य योजनाओं और वित्तीय प्राथमिकताओं में कटौती करनी पड़ सकती है। यहीं नहीं अभी तक जारी हुई सीरिज को देखे तो सरकार पर निवेशकों का 85,000 करोड़ रुपये देनदारी है, जो मार्च 2020 के अंत में बकाया 10,000 करोड़ रुपये से लगभग नौ गुना है। यही नहीं करीब 30 बांड सीरिज ऐसी हैं जो कि अगले छह महीने में भुनाने के लिए पात्र हो जाएंगी। जो सरकार के लिए देनदारी का बोझ बढ़ा सकती हैं। अब तक सरकार ने केवल 67 सीरिज जारी की है और उसमें से केवल 4 ही भुनाई गई हैं। ऐसे में सरकार को स्कीम को बंद करने के अलावा कुछ सूझ नहीं रहा है। यानी बिन बैठाए एक नया संकट खड़ा होने का अंदेशा है।
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