सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम की अब क्यों हो रही चर्चा, जानें-वजह?
x

सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड स्कीम की अब क्यों हो रही चर्चा, जानें-वजह?

सोने की जमाखोरी रोकने के लिए, दीवानगी कम करने के लिए 2015 में वित्त मंत्रालय की तरफ सॉवरेन गोल्ड स्कीम लांच की गई थी। लेकिन यह योजना अब गले की हड्डी बन चुकी है।


साल 2015 में भारत सरकार यानी वित्त मंत्रालय ने खास योजना बनाई थी। उस योजना के तहत जनता से सस्ता लोन लेना था। सस्ता कर्ज लेने के लिए सरकार ने सोचा कि सोने से जुड़े रिटर्न का वादा क्यों न किया जाए? योजना का मकसद लोगों को सोना खरीदने की लत से छुटकारा दिलाना था। वित्त मंत्रालय ने योजना को सावरन गोल्ड बांड स्कीम नाम दिया। इसके तहत भारतीय निवेशकों को सोने की भूख शांत करने का एक बेहतर मौका देना था। इस स्कीम की खास बात यह थी कि असल में बिना सोना खरीदे निवेशक कमाई कर सकते थे। लेकिन सरकार ने एक बुनियादी नियम भूल गई कि अगर कोई सौदा बहुत अच्छा लग रहा है, तो शायद वो सच ना हो। आज, सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड बड़ा सिरदर्द बन गया है।

भारत का 10 साल पुराना सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (SGB) कार्यक्रम सरकार के गले की हड्डी बन चुका है। सोने की आसमान छूती कीमतों के कारण यह ₹1.2 लाख करोड़ ($13 बिलियन) की देनदारी में बदल चुका है, जिसका बोझ अंत में टैक्सपेयर को ही चुकाना पड़ सकता है।

बॉन्ड पर पहले 2.75% का निश्चित ब्याज दिया गया। लेकिन बाद में इसे घटाकर 2.5% किया गया। निवेशकों की होल्डिंग ग्राम में मापी गई। यानी जिस समय बॉन्ड भुनाया जाएगा, उन्हें सोने के मौजूदा बाजार मूल्य के अनुसार पैसा मिलेगा। अगर 2015 में 2,500 रुपए प्रति ग्राम का बॉन्ड जारी हुआ और 8 साल बाद 3,750 रुपए पर भी रिडीम हुआ तो यह अब भी 8% सरकारी बॉन्ड की तुलना में सस्ता कर्ज होगा। कम लोग भौतिक सोना खरीदेंगे, जिससे भारत के महंगे सोने के आयात पर सालाना खर्च होने वाले $30 बिलियन की बचत होगी। लेकिन सरकारी अनुमान गलत साबित हुए। दरअसल सोने की कीमतों में उछाल की वजह से वित्त मंत्रालय के सामने मुश्किल खड़ी हो गई।

2019 में सोना $1,500 प्रति औंस था, आज यह $3,000 प्रति औंस पर पहुंच चुका है। पहला बॉन्ड जारी मूल्य से दोगुनी कीमत पर मैच्योर हुआ जिससे यह एक महंगा ऋण बन गया।सोना खरीदने की भारतीयों की दीवानगी कम नहीं हुई।पिछले 10 वर्षों में औसत वार्षिक सोना आयात $37 बिलियन पर बना रहा। सरकार ने 2022 में कस्टम ड्यूटी 15% तक बढ़ा दी ताकि आयात रुके। लेकिन इससे सोने के दाम और बढ़ गए। सरकार को 2023 में आयात शुल्क घटाकर 6% करना पड़ा। इसके अलावा अमेरिकी चुनाव और वैश्विक अनिश्चितता ने आग में घी डालने का काम किया।

डोनाल्ड ट्रंप की नीतियों के कारण महंगाई बढ़ने की आशंका से सोना सुरक्षित निवेश विकल्प बन गया। मार्च 2017 में जारी एक बॉन्ड की कीमत इस हफ्ते ₹8,600 प्रति ग्राम हो गई, यानी तीन गुना मुनाफा का मौका आया और सरकार पर आर्थिक बोझ बढ़ गया। अब तक 67 किश्तों में 147 टन सोने के बॉन्ड जारी किए गए। मार्च 2024 तक सरकार पर 132 टन (₹1.2 लाख करोड़) की देनदारी बाकी थी। अंतिम बॉन्ड फरवरी 2032 में परिपक्व होगा। तब तक सोने की कीमत कहां पहुंचेगीकोई नहीं जानता।

RBI के पास 879 टन सोने का भंडार है, जो उसके विदेशी मुद्रा भंडार का 11.5% बनाता है। लेकिन ये भंडार मुद्रा आपूर्ति को सुरक्षित करने के लिए रखे गए हैं, न कि सरकार के कर्ज चुकाने के लिए। अगर यह भंडार सरकारी देनदारियों को चुकाने में उपयोग हुआ, तो RBI की स्वतंत्रता पर सवाल उठेंगे।सरकार ने नए गोल्ड बॉन्ड जारी करने बंद कर दिए हैं, लेकिन मार्च 2024 तक ₹270 बिलियन की रिकॉर्ड राशि जुटाई।

भारत में सोने की लत संस्कृति और आर्थिक सुरक्षा दोनों से जुड़ी है। ग्रामीण परिवारों के लिए सोना एकमात्र संपत्ति है जिसे वे संकट के समय गिरवी रख सकते हैं।सरकार ने इस प्रवृत्ति को नियंत्रित करने की बहादुरी दिखाई। सोन अपनी चमक बढ़ाते हुए सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाला निवेश है। यह शेयर बाजार में भारी नुकसान के खिलाफ एक सुरक्षा कवच है। सरकार द्वारा सोने की जमाखोरी को रोकने की कोशिश बहादुरी वाली बात थी। लेकिन बिना किसी जोखिम के दांव लगाना उसकी लापरवाही थी।

Read More
Next Story