
तमिलनाडु में इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर तेजी से बढ़ा, लेकिन टेक्सटाइल छूटा पीछे
तमिलनाडु में इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर को मिला PLI का फायदा, लेकिन टेक्सटाइल छूटा पीछे
मिलनाडु पहले से ही एक बड़ा मैन्युफैक्चरिंग हब रहा है, लेकिन हाल के सालों में उसका इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर बहुत तेजी से बढ़ा है। भारत सरकार की पीएलआई (प्रोडक्शन-लिंक्ड इंसेंटिव) योजना के चलते, राज्य से इलेक्ट्रॉनिक्स का निर्यात 2021 में $1.6 बिलियन से बढ़कर 2024 में $11 बिलियन हो गया—यानि सात गुना बढ़त।
यह बढ़त इंजीनियरिंग और टेक्सटाइल जैसे दूसरे उद्योगों से कहीं ज्यादा थी। इससे यह साफ हो गया कि इलेक्ट्रॉनिक्स अब तमिलनाडु के मैन्युफैक्चरिंग की सबसे बड़ी ताकत बन चुका है।
अब सरकार PLI 2.0 लेकर आई है, जो आईटी हार्डवेयर (जैसे लैपटॉप, पीसी) बनाने वाली कंपनियों को प्रोत्साहन देती है। तमिलनाडु ने इस नए फेज में भी बढ़त बना ली है—27 में से 7 यूनिट्स को राज्य में मंजूरी मिल चुकी है। HP और Dixon Technologies जैसी बड़ी कंपनियां यहां निवेश कर रही हैं। इससे देशभर में 3.5 लाख करोड़ रुपये का उत्पादन और 47,000 नई नौकरियां बनने की उम्मीद है।
तमिलनाडु में इलेक्ट्रॉनिक्स क्यों तेजी से बढ़ा?
तमिलनाडु में यह सफलता सिर्फ पीएलआई स्कीम से नहीं मिली, बल्कि वहां पहले से ही एक मजबूत सिस्टम बना हुआ था।
राज्य के उद्योग मंत्री टीआरबी राजा ने कहा कि, "हमने सालों से शिक्षा, स्किल ट्रेनिंग (जैसे 'नान मुदलवन' योजना), अच्छी फैक्ट्रियां और ग्लोबल कंपनियों से रिश्ते बनाए हैं। पीएलआई योजना ने बस इस विकास को तेज़ कर दिया।" राज्य की नीतियां, बिज़नेस करने में आसानी और मजदूरों की भलाई पर ध्यान देने से निवेशकों का भरोसा बढ़ा।
तमिलनाडु पर दांव लगा रहीं विदेशी कंपनियां
HP कंपनी ने Dixon Technologies की मदद से ओरगडम में एक नई फैक्ट्री खोली है, जहाँ हर साल 20 लाख लैपटॉप और कंप्यूटर बनाए जाएंगे। इससे 1,500 लोगों को सीधी नौकरी मिलेगी। हालांकि, कुछ विशेषज्ञ सवाल उठा रहे हैं कि क्या ये पूरी तरह भारत में बना हुआ प्रोडक्शन है या सिर्फ पुर्जे बाहर से लाकर असेंबली की जा रही है। लेकिन फिर भी, इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे नए क्षेत्रों में पीएलआई के लक्ष्य पाना तुलनात्मक रूप से आसान है।
टेक्सटाइल (वस्त्र उद्योग) क्यों पीछे रह गया?
हालाँकि तमिलनाडु टेक्सटाइल का पारंपरिक गढ़ रहा है, लेकिन इस सेक्टर को पीएलआई से वैसा फायदा नहीं मिला। इसके कई कारण हैं। बांग्लादेश और वियतनाम जैसी जगहों से सस्ते श्रमिक मिलते हैं और उनकी नीतियाँ अधिक आक्रामक हैं।
टेक्सटाइल में निवेश बहुत महंगा है और मुनाफा जल्दी नहीं होता। बाजार पहले से भरे हुए हैं और मंदी के समय कपड़ों की मांग कम हो जाती है। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस कहते हैं, “अगर हम प्रोडक्शन करें भी, तो सवाल है कि बेचें कहां? मशीनें और लोग कहां से लाएं?”
निवेश की बड़ी रुकावट
टेक्सटाइल सेक्टर के लिए सबसे बड़ी रुकावट यह है कि पीएलआई योजना में शामिल होने के लिए कम से कम ₹100 करोड़ का निवेश और ₹200 करोड़ का टर्नओवर होना जरूरी है, जो ज़्यादातर छोटी टेक्सटाइल कंपनियों के लिए संभव नहीं है।
तिरुपुर एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन के ए. सक्तिवेल ने कहा, “हमने सरकार से कहा है कि निवेश सीमा को ₹25 करोड़ और टर्नओवर को ₹50 करोड़ तक लाया जाए, ताकि छोटी कंपनियां भी योजना में शामिल हो सकें।”
इसके अलावा, योजना का फोकस अब कृत्रिम (मैन-मेड) फाइबर पर है, जबकि भारत की टेक्सटाइल इंडस्ट्री अभी भी कपास पर आधारित है। इससे उत्पादन प्रणाली में बदलाव करना होगा।
एक ही योजना, दो नतीजे
इलेक्ट्रॉनिक्स और टेक्सटाइल—दोनों क्षेत्रों में पीएलआई योजना के अलग-अलग परिणाम यह दिखाते हैं कि हर उद्योग के लिए अलग रणनीति चाहिए। मंत्री राजा भी मानते हैं, “PLI अकेले किसी भी इंडस्ट्री को नहीं बदल सकता। यह तभी असरदार होता है जब पहले से स्किल और सिस्टम तैयार हो।” अगर सरकार टेक्सटाइल के लिए पीएलआई में निवेश की सीमा कम करे और नीतियों को आसान बनाए, तो यह सेक्टर भी तेजी पकड़ सकता है। अगर यह बदलाव होते हैं, तो तमिलनाडु भारत का सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक्स हब ही नहीं, बल्कि एक संतुलित और मजबूत मैन्युफैक्चरिंग राज्य बन सकता है।तमिलनाडु में इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर तेजी से बढ़ा, लेकिन टेक्सटाइल सेक्टर छूटा पीछे