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टैरिफ के चलते अनिश्चितता के साये में लटके भारतीय कपड़ा और खिलौना उद्योग

दोनों ही उद्योग से जुड़े लोगों का कहना है कि अमेरिका बहुत बड़ी मार्किट है, ऐसे में टैरिफ ने सालों की मेहनत पर तलवार लटका दी है. भारत सरकार से उम्मीद है की शायद कोई रास्ता निकालेगी.


Indo US Tariff War : अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए भारी भरकम टैरिफ की वजह से देश के कई उद्योग सेक्टर ऐसे हैं, जो चिंताजनक है. अनिश्चितता का माहौल है. कई उद्योग ऐसे हैं, जिनके एक्सपोर्ट के आर्डर अटके हुए हैं और मन में डर है कि कहीं आने वाले में समय में सालों की मेहनत पर पानी न फिर जाए.

ऐसे कुछ उद्योग जो अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ की वजह से अनिश्चितता के माहौल में हैं, उनमें गारमेंट्स और टॉयज इंडस्ट्री भी शामिल हैं.


अपैरल इंडस्ट्री

इस इंडस्ट्री का कुल एक्सपोर्ट 15 से 16 बिलियन डॉलर के करीब है. इसमें से लगभग 30 प्रतिशत एक्सपोर्ट सिर्फ अमेरिका को किया जाता है. इस आंकड़े से समझ सकते हैं कि अमेरिका भारत के इस उद्योग के लिए कितना महत्वपूर्ण है.

इस बारे में द फ़ेडरल देश के साथ बात की ललित ठुकराल, जो नॉएडा अपैरल एक्सपोर्ट क्लस्टर के अध्यक्ष हैं. ललित ठुकराल का कहना है कि टैरिफ की ये लड़ाई निजी ज्यादा लग रही है. जब ट्रम्प पाकिस्तान, चाइना, विएतनाम, कम्बोडिया जैसे देशों को राहत दी है लेकिन भारत के साथ ऐसा कर रहा है. समझ से बाहर है. फ़िलहाल की बात करें तो जो भी लोग सिर्फ अमेरिका के साथ बिज़नस कर रहे हैं, वो अधर में लटके हुए हैं. सिर्फ नॉएडा की ही बात करें तो यहाँ अपैरल या गारमेंट्स की लगभग 4500 फैक्ट्री हैं. लगभग 10 लाख लोग इन फक्ट्रियों में काम करते हैं. कई लोग ऐसे हैं, जिनकी पाच पांच सात सात फैक्ट्री हैं, जो सिर्फ अमेरिका के लिए काम कर रहे हैं. लेकिन अब उनके यहाँ काम रुके हुए हैं, क्योंकि बाएर ने फिलहाल आर्डर होल्ड करवा दिया है. काम रुकने की वजह से लाखों लोगों की नौकरी खतरे में पड़ गयी है.

ललित ठुकराल का कहना है कि लगभग 40 साल की मेहनत पर तलवार लटकी हुई है. बीते 40 सालों में भारत ने अमेरिका में एक ख़ास पहचान बनायी, उनका विशवास जीता और उनके जीवन की खुशियों में रंग भरने का काम किया है. लेकिन इस टैरिफ वार ने सब कुछ ख़त्म सा कर दिया है.

भारत सरकार को मदद करनी चाहिए

हम लोग भारत सरकार से उम्मीद करते हैं कि न केवल टैरिफ को लेकर कोई उचित रास्ता निकाला जाए बल्कि अभी जिस तरह से लोगों का काम रुका हुआ है, उसे लेकर भी फैक्ट्री वालों को कुछ राहत दी जाए ताकि वो अपने यहाँ काम करने वाले कर्मचारियों को राहत उपलब्ध करवा सके और उनकी नौकरी को बचा सकें.

कोरोना से बुरा हाल

आज जो परिस्थिति बनी है वो कोरोना काल से भी ज्यादा भयावह: है. कोरोना के समय में सरकार की तरफ से रियात मिली थी लेकिन इस बार अभी तक सरकार की तरफ से कोई राहत का एलान नहीं किया गया है.

टैरिफ कम होने की उम्मीद

ललित ठुकराल का कहना है कि हम सभी व्यापरियों को उम्मीद है कि टैरिफ कम होना चाहिए. लेकिन जब तक कम नहीं होता तब तक एक डर का माहौल है.

टॉयज इंडस्ट्री

अब दूसरे नम्बर पर बात करते हैं टॉय इंडस्ट्री पर. टॉय इंडस्ट्री की बात करें तो कुछ वर्ष पहले तक भारत की खिलौना इंडस्ट्री यानी टॉय इंडस्ट्री बहुत ज्यादा बड़ी नहीं थी. लेकिन अब 12 से 15 हजार करोड़ का उद्योग है और सिर्फ अमेरिका की बात करें तो उसके साथ 500 से 700 करोड़ का व्यापार है. सबसे अहम बात ये है कि ये इंडस्ट्री धीरे धीरे बढ़ रही है. ख़ासतौर से पिछले 3 – 4 साल में ये इजाफा हुआ है, जब से केंद्र सरकार ने खिलौनो पर BSI लागू किया है. इसके बाद से खिलौना इमोपोर्ट कम हुआ है और मैन्युफैक्चरिंग बढ़ी. पहले लगभग 80 प्रतिशत खिलौना भारत में इम्पोर्ट होता था, जो अब सिर्फ 25 से 30 प्रतिशत रह गया है.

इस वजह से विदेशी ब्रांड ने भारत में खिलौना बनवाने पर भरोसा जताया. लेकिन जब से ये टैरिफ वार शुरू हुई तब से इस इंडस्ट्री पर भी अनिश्चितता के बादल छा गए हैं.

भारत की एक प्रतिष्ठित टॉय कंपनी स्मार्टीविटी के सहसंस्थापक अश्विनी कुमार का कहना है कि टॉय इंडस्ट्री में जो लोग फॉरेन बायर्स के लिए मैन्युफैक्चरिंग करते हैं, उनके व्यापार बहुत ज्यादा प्रभाव पड़ा है. अभी सभी आर्डर होल्ड कर दिए गए हैं. नयी मैन्युफैक्चरिंग नहीं की जा रही है. बायर का कहना है कि 50 प्रतिशत टैरिफ की वजह से वहां टॉय की कीमत बढ़ेगी, इस वजह से वहां की जो कंपनियां हैं, वो अभी ये देखना चाह रही हैं कि टैरिफ कम होता है या नहीं. अगर टैरिफ कम नहीं होता तो फिर भारतीय टॉय इंडस्ट्री के लिए काफी नुक्सान हो सकता है, क्योंकि वहां के लिए जो टॉय बनाए जाते हैं, वो काफी बेहतर क्वालिटी के होते हैं और कीमत भी ज्यादा होती है, इसलिए डोमेस्टिक मार्किट यानी भारत में उनको खपाना उसी कीमत पर काफी मुश्किल होगा.

अगर मैं अपनी ब्रांड की बात करूँ तो हम DIY(डू ईट योरसेल्फ) यानी स्टेम टॉयज बनाते हैं. साइंस बेस्ड टॉयज होते हैं, जो एजुकेशनल भी होते हैं. हमारे टॉयज की अमेरिका में काफी अच्छी मांग है और हर साल उसमें बढ़ोतरी भी होती है. लेकिन हम वहां किसी डीलर के साथ नहीं बल्कि ऑनलाइन डायरेक्ट सेल करते हैं. अमेज़न के साथ मिल कर. ऐसे में टैरिफ का प्रभाव हमारे प्रोडक्ट पर दाम की कीमत में लगभग 10 प्रतिशत का इजाफा होगा, ये हमारा आंकलन है. ऐसे में कुछ डिमांड कम हो सकती है लेकिन ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ेगा.

दूसरी बात ये कि अब अमेरिका में अक्टूबर से लेकर दिसम्बर तक जम कर खरीदारी होती है, न्यू इयर और क्रिसमस को लेकर. इसलिए आने वाले समय में ये पता चलेगा कि वहां किस प्रोडक्ट की डिमांड पर क्या फर्क पड़ा है.

असल में अमेरिका की बात करे तो पूरे विश्व से लगभग 35 प्रतिशत टॉय अमेरिका में ही एक्सपोर्ट किये जाते हैं. इस एक्सपोर्ट में भारत का भी काफी अच्छा हिस्सा है, जो हर वर्ष बढ़ रहा है. लेकिन इस टैरिफ की वजह से सब कुछ अधर में लटक गया है. सभी को 27 अगस्त का इंतज़ार है, अगर टैरिफ कम होता है तो निश्चित सबके लिए अच्छा रहेगा नहीं तो फिर बड़ी मुश्किल होगी. क्योंकि अमेरिका जैसी मार्केट पूरे विश्व में दूसरी नहीं है. वहां काफी डिमांड है.

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