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ट्रंप टैरिफ शॉक भारत के MSME के लिए हो सकता है वरदान साबित, 100 अरब डॉलर के ट्रेड का है अवसर

अमेरिका के चीन पर लगाए गए टैरिफ भारत की लघु उद्योग आधारित एक्सपोर्ट में बढ़ोतरी को बढ़ावा दे सकता है. हालांकि इसके लिए सरकार के सपोर्ट की जरूरत होगी.


Trump Tariff Shock: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रेसिप्रोकल टैरिफ का झटका भले ही 90 दिनों के लिए टल गया हो लेकिन ये तलवार अभी भी लटक रहा है. 90 दिनों के बाद ट्रंप क्या फैसला लेंगे ये भविष्यवाणी करना मुश्किल है. लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक ट्रंप का टैरिफ शॉक भारत की छोटी मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिए वरदान साबित हो सकती है. ये शॉक भारत के लिए 100 अरब डॉलर के कारोबार का अवसर प्रदान कर रहा है.

रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका के चीन पर लगाए गए टैरिफ भारत की लघु उद्योग आधारित एक्सपोर्ट में बढ़ोतरी को बढ़ावा दे सकता है. हालांकि, इस अवसर को निर्यात में बदलने के लिए नीतिगत समर्थन और टेक्नोलॉजी अपग्रेड की आवश्यकता होगी. सवाल उठता है क्या भारत इस मौके को भूनाने के लिए तैयार है?

कहां है अवसर

जीटीआरआई (Global Trade Research Initiative) ने एक रिपोर्ट तैयार किया है. इस रिपोर्ट के मुताबिक चीनी सामानों पर अमेरिका द्वारा लगाए गए 125% के भारी इंपोर्ट ड्यूटी ने भारत के छोटे निर्माताओं के लिए एक दुर्लभ और अल्पकालिक निर्यात का अवसर खोल दिया है. रोजमर्रा के उपभोक्ता उत्पाद जो पहले चीन से सस्ते में मिलते थे, अब अमेरिकी बाजारों में बहुत महंगे हो जाएंगे. इससे भारतीय सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) को बाज़ार में प्रवेश करने का एक बड़ा मौका दे रहा है. 2024 में अमेरिका ने ऐसे उत्पादों के रूप में 148 अरब डॉलर से अधिक का आयात किया था, जिसमें चीन का हिस्सा 105.9 अरब डॉलर था जो कुल आयात का 72% है. भारत की हिस्सेदारी मात्र 4.3 अरब डॉलर, या 2.9% थी. चीनी सामानों के महंगे होने से अब अमेरिकी बाज़ार में एक बड़ा अंतर बन गया है.

जीटीआरआई के अजय श्रीवास्तव के मुताबिक, भारतीय उत्पादक पहले से ही कई ऐसे उत्पाद जैसे ताले, लैंप, और प्लास्टिक के बर्तन छोटे पैमाने पर बनाते हैं. यदि सरकार निर्यात प्रोत्साहन, प्रोडक्ट सर्टिफिकेशन और फाइनेंसिंग पर सही तरीके से काम करे, तो ये कंपनियाँ तेजी से विस्तार कर सकती हैं और इस 100 अरब डॉलर के अवसर का लाभ उठा सकती हैं. हालांकि, यह अवसर सीमित समय का है और हमेशा के लिए नहीं रहेगा.

जिन प्रोडेक्ट्स पर भारत की लघु इकाइयाँ थोड़ी योजना और सरकारी सहयोग के साथ तेजी से वृद्धि कर सकती हैं उसमें पटाखा इंडस्ट्री है. अमेरिका हर साल 581 मिलियन डॉलर के पटाखे आयात करता है, जिसमें चीन का हिस्सा 96.7% है. भारत का निर्यात मात्र 0.24 मिलियन डॉलर है. नए टैरिफ के चलते कीमतें $15 से $60 की बजाय $33.75 से $135 तक हो सकती हैं. तमिलनाडु के शिवकाशी क्लस्टर को सुरक्षा और अनुपालन मानकों में सहयोग देकर इस अवसर का लाभ दिलाया जा सकता है.

अमेरिका 4.97 अरब डॉलर का प्लास्टिक टेबलवेयर और किचनवेयर आयात करता है, जिसमें 80% चीन से आता है. भारत की हिस्सेदारी केवल 0.49% है। कीमतें $1.25–$16 से बढ़कर $2.81–$36 हो सकती हैं. दादरा नगर हवेली, दमण और गुजरात के क्लस्टर इस अंतर को भर सकते हैं. प्लास्टिक घरेलू और सैनिटरी उत्पाद जो हरियाणा के बहादुरगढ़, महाराष्ट्र के नासिक और भिवंडी में पहले से बनते आया है. अगर पैकेजिंग और मानकों में सुधार किया जाए, तो ये अमेरिका में प्रतिस्पर्धी बन सकते हैं. अमेरिका हर साल $1.196 अरब के ताले आयात करता है, जिनमें से 66.3% चीन से आते हैं. भारत का हिस्सा मात्र $30.7 मिलियन है. कीमतें $10–$50 से बढ़कर $22.50–$112.50 हो सकती हैं. अलीगढ़, उत्तर प्रदेश के निर्माता इस अवसर का फायदा उठा सकते हैं.

हैंड टूल्स का अमेरिका में $1.138 अरब का बाजार है. चीन का हिस्सा 52.9% है जबकि भारत पहले से 17.7% (202 मिलियन डॉलर) के साथ मजबूत स्थिति में है. लुधियाना और जालंधर इस क्षेत्र में तेजी से विस्तार कर सकते हैं. लोहे या स्टील की कीलें, पिन अमेरिका में $1.113 अरब का आयात होता है, जिसमें से 61.3% चीन से आता है. भारत की हिस्सेदारी 2.7% (30 मिलियन डॉलर) है। हावड़ा, पुणे और लुधियाना में उत्पादन की क्षमता है.

अमेरिका $924 मिलियन के हेयर क्लिपर आयात करता है जिसमें 82.8% चीन से आता है जबकि भारत का हिस्सा सिर्फ 0.83% ($7.7 मिलियन) है. नोएडा, भिवाड़ी और बद्दी के क्लस्टर इसका निर्माण कर सकते हैं.

अमेरिका $775 मिलियन का इलेक्ट्रिक लैंप और लाइटिंग फिटिंग्स आयात करता है, जिसमें से 74.2% चीन से आता है. भारत का हिस्सा $67 मिलियन (8.6%) है. मोरबी, पुणे, नोएडा और बेंगलुरु के एलईडी हब तेजी से सक्रिय हो सकते हैं.

अमेरिका हर साल $743 मिलियन के हेयर ड्रायर आयात करता है, जिसमें 87.1% चीन से आता है. भारत की हिस्सेदारी सिर्फ 0.18% ($1.35 मिलियन) है. बद्दी, हरिद्वार, और रुद्रपुर में उत्पादन संभव है. अमेरिका $1.065 अरब का स्पेस हीटर आयात करता है, जिसमें 90.5% चीन से आता है. भारत का हिस्सा 0.88% है. नोएडा और पुणे के क्लस्टर उत्पादन बढ़ा सकते हैं. इलेक्ट्रिक शेवर, वैक्यूम क्लीनर में भारत की उपस्थिति बहुत कम है, लेकिन ग्रेटर नोएडा, मानेसर और पुणे जैसे क्लस्टर इसमें क्षमता जोड़ सकते हैं. बजाज और उषा जैसी कंपनियाँ अनुबंध निर्माण के माध्यम से प्रवेश कर सकती हैं.

वॉटर हीटर (गैज़र, इमर्शन रॉड) भारत घरेलू और अफ्रीकी बाजारों के लिए पहले से बनाता है. बद्दी, रुद्रपुर और नीमराना के क्लस्टर इसमें सक्षम हैं. इलेक्ट्रिक पंखे की अमेरिका में कीमतें $20–$100 से बढ़कर $45–$225 हो सकती हैं. भारत पहले से वैश्विक स्तर पर पंखों का प्रमुख निर्यातक है. हैदराबाद, कोलकाता और फरीदाबाद जैसे क्लस्टर इस मांग को पूरा कर सकते हैं.

भारत इस मौके को कैसे भूना सकता है, इसे लेकर अजय श्रीवास्तव का मानना है कि, भारत की लघु उद्योग आधारित व्यवस्था को इस अवसर का लाभ उठाने के लिए गहराई, क्षमता और पैमाने की ज़रूरत है. इसके लिए सही रणनीतिक समर्थन और प्रोत्साहन आवश्यक है. इसके लिए एक्सपोर्ट को सपोर्ट बढ़ाना होगा. इनट्रंप टैरिफ शॉक भारत के MSME के लिए हो सकता है वरदान साबित, 100 अरब डॉलर के ट्रेड का मिल रहा अवसर उत्पादों के लिए RoDTEP और ड्यूटी ड्रा-बैक दरों को बढ़ाना होगा. टेक्नोलॉजी सपोर्ट में मदद करनी होगी.

उऩ्होंने कहा, DPIIT और MSME मंत्रालय को क्लस्टरों को अमेरिका के गुणवत्ता और अनुपालन मानकों के अनुसार आधुनिक बनाने में मदद करनी चाहिए. साथ ही एक्सपोर्ट क्रेडिट तक पहुंच को आसान बनाना होगा. छोटे उद्यमों के लिए ब्याज सब्सिडी योजना को फिर से शुरू करना चाहिए साथ ही अनुपालन को सरल बनाना होगा. और MSMEs को अमेरिकी बाजार में प्रवेश के लिए आवश्यक प्रक्रियाओं और प्रमाणपत्रों की जानकारी देने के लिए एक सशक्त ऑनलाइन सहायता केंद्र शुरू करना चाहिए.

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