
चावल पर ट्रम्प के अतिरिक्त टैरिफ की धमकी का भारतीय निर्यातक पर नहीं कोई असर
भारत के बासमती और नॉन-बासमती चावल पर अतिरिक्त शुल्क की चेतावनी के बावजूद विशेषज्ञों का कहना है कि इसका न असर पड़ेगा, न निर्यात घटेगा; महंगाई का बोझ अमेरिकी उपभोक्ताओं पर ही बढ़ेगा
Extra Tariff On Indian Rice : रूस के राष्ट्रपति पुतिन के भारत दौरे के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने एक बार फिर से टैरिफ का हथियार उठाते हुए भारत पर हमला किया है। ट्रम्प ने भारत, वियतनाम और थाईलैंड से आने वाले चावल पर नए अतिरिक्त टैरिफ लगाने की धमकी दी है, जिससे दुनिया भर में हलचल मच गयी है। लेकिन ट्रम्प की इस धमकी से भारतीय चावल निर्यातक चिंतित नहीं है। इसकी वजह है अमेरिकियों का भारतीय चावल को पसंद करना। चावल निर्यातकों का कहना है कि अतिरिक्त टैरिफ का भारत की निर्यात व्यवस्था पर कोई ख़ास असर नहीं पड़ेगा। उलटे, अगर ट्रम्प अपनी धमकी पर अमल करते हैं, तो सबसे ज्यादा झटका अमेरिका की जनता को लगेगा, जो भारत के चावल को पसंद करते हैं।
ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन का कहना है कि ट्रम्प ने अपने बयान में तीन देशों का नाम एक साथ लेकर साफ संकेत दिया है कि निशाना नॉन-बासमती चावल है, क्योंकि वियतनाम और थाईलैंड अमेरिका को केवल नॉन-बासमती चावल ही बेचते हैं। बासमती का मामला इससे अलग है। अमेरिका में भारत का बासमती निर्यात नॉन-बासमती की तुलना में पांच गुना ज्यादा होता है। अब देखना होगा कि ट्रम्प किस श्रेणी पर कितनी ड्यूटी लगाते हैं।
अमेरिका को भारत कितना चावल भेजता है?
वित्त वर्ष 2024–25 (अप्रैल–अक्टूबर)
बासमती चावल निर्यात:
मूल्य: 337.10 मिलियन डॉलर
मात्रा: 2,74,213 MT
अमेरिका भारत का चौथा सबसे बड़ा बासमती बाजार
नॉन-बासमती निर्यात:
मूल्य: 54.64 मिलियन डॉलर
मात्रा: 61,341 MT
अमेरिका भारत का 24वां सबसे बड़ा नॉन-बासमती बाजार
कुल मिलाकर भारत का अमेरिका को चावल निर्यात मूल्य लगभग 390 मिलियन डॉलर (करीब ₹3,510 करोड़) बैठता है।
पहले से लग रही भारी ड्यूटी लेकिन नहीं रुका निर्यात
टैरिफ विवाद नया नहीं है। पहले भारतीय चावल पर 10% शुल्क लगता था। ट्रम्प प्रशासन ने इसे बढ़ाकर 50% तक किया, जिसके बाद वास्तविक शुल्क 40% हो गया। इसका परिणाम ये हुआ कि भारत से चावल का निर्यात नहीं घटा,
बढ़ी लागत अमेरिकी रिटेल मार्केट ने उपभोक्ताओं पर डाल दी, जिसकी वजह से वहां की जनता पर महंगाई की मार पड़ी है।
भारत के किसानों और निर्यातकों की कमाई पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। IREF के अनुसार, अमेरिका में चावल एक आवश्यक उत्पाद है, इसलिए महंगाई का बोझ सीधे उपभोक्ताओं की जेब पर गया।
‘भारतीय बासमती का कोई विकल्प नहीं’ अमेरिकी बाजार में मजबूत पकड़
देव गर्ग, इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स के वाइस प्रेसिडेंट का कहना है कि अमेरिकी बाजार में भारतीय बासमती की मांग स्थिर ही नहीं, बल्कि लगातार बढ़ रही है, क्योंकि गुणवत्ता, खुशबू, लंबाई, टेक्सचर, फ्लेवर प्रोफाइल का स्थानीय अमेरिकी चावल कोई मुकाबला नहीं कर पाता। इसलिए ये कहना कि भारत अमेरिका में चावल डंप कर रहा है तो बिलकुल गलत है।
अमेरिका में इसका बड़ा उपभोक्ता आधार खाड़ी देशों और दक्षिण एशियाई समुदायों का है। साथ ही, अमेरिकी युवाओं में बिरयानी और भारतीय व्यंजनों की बढ़ती लोकप्रियता ने बासमती को लगभग ‘नॉन-रीप्लेसेबल’ बना दिया है।
भारतीय चावल उद्योग मजबूत और विविधीकृत
विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत का चावल निर्यात तंत्र पिछले कुछ वर्षों में बेहद मजबूत हुआ है। अमेरिका महत्वपूर्ण है, लेकिन भारत का चावल निर्यात किसी एक देश पर निर्भर नहीं। सरकार के सहयोग से हम लगातार नए बाजार खोल रहे हैं।
यानी किसी एक देश की टैरिफ नीति भारत के व्यापक निर्यात ढांचे को हिला नहीं सकती।
ट्रम्प की शिकायत: ‘डंपिंग कर रहे हैं ये देश’
व्हाइट हाउस में किसानों के लिए नए राहत पैकेज की घोषणा करते हुए ट्रम्प ने आरोप लगाया कि भारत, वियतनाम और थाईलैंड अमेरिकी बाजार में सस्ता चावल बेचकर स्थानीय किसानों को नुकसान पहुंचा रहे हैं।
ट्रम्प ने कहा कि “वे ऐसा नहीं कर सकते। मुझे बताया गया है कि वो डंपिंग कर रहे हैं। हम इसका ख्याल रखेंगे।” कुछ अमेरिकी किसानों ने भी शिकायत की है कि विदेशी चावल के चलते स्थानीय कीमतें गिर रही हैं।
भारत के लिए खतरा नहीं, अमेरिकी उपभोक्ता सबसे बड़ी मार झेलेंगे
विशेषज्ञों की राय एक जैसी है। उनका कहना है कि भारत का चावल निर्यात अलग अलग तरह का है। बासमती का अमेरिका में कोई असली विकल्प नहीं है।
बढ़ा शुल्क अंततः अमेरिकी उपभोक्ताओं की जेब ढीली करेगा।
भारतीय किसान और निर्यातक फिलहाल सुरक्षित हैं। यानी ट्रम्प की धमकी भले ही सुर्खियां बटोर ले, लेकिन भारत के चावल व्यापार पर इसका असर मामूली ही रहेगा।

