
अमेरिका की सीमित छूट, लेकिन व्यापार, रोजगार और MSME पर भारी असर
अमेरिका ने रूस से संबंधों पर सज़ा नहीं दी, लेकिन 25% टैरिफ से भारत के निर्यात, MSME और परिधान उद्योग को भारी नुकसान का खतरा है
अमेरिका द्वारा घोषित टैरिफ में उस penalty का ज़िक्र नहीं किया गया है जिसकी धमकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 30 जुलाई को भारत को दी थी। इससे भारत को रूस के साथ अपने ऊर्जा और रक्षा संबंधों को लेकर अस्थायी राहत जरूर मिली है, लेकिन ट्रंप द्वारा लगाए गए 25% आयात शुल्क ने भारत के निर्यात क्षेत्र, विशेषकर परिधान उद्योग, को गहरे संकट में डाल दिया है।
राहत की बातें
ट्रंप की ओर से दी गई अस्पष्ट सज़ा की चेतावनी ने भारत की ऊर्जा सुरक्षा और रक्षा निर्भरता को खतरे में डाल दिया था। हालांकि फिलहाल उस पर कोई स्पष्ट कार्रवाई नहीं हुई है। रूस-यूक्रेन युद्ध से पहले जहां भारत का रूस से तेल आयात महज़ 0.2% था, वहीं जून 2025 में यह 45% तक पहुंच गया और जुलाई में घटकर 33% रह गया। यह गिरावट भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की तेल कंपनियों जैसे इंडियन ऑयल और हिंदुस्तान पेट्रोलियम द्वारा आयात में कटौती का नतीजा है। माना जा रहा है कि भारत सरकार ने ट्रंप की 1 अगस्त की डेडलाइन से पहले दबाव कम करने की रणनीति अपनाई थी।
हालांकि यह राहत स्थायी नहीं है। 25% टैरिफ का खतरा अब भी बना हुआ है और 1 अगस्त को ट्रंप द्वारा रूस के करीब परमाणु पनडुब्बियां भेजने का आदेश महज़ राजनीतिक चेतावनी नहीं, बल्कि रणनीतिक दबाव का संकेत भी है। इससे ऊर्जा लागत बढ़ सकती है और महंगाई पर असर पड़ सकता है।
एक्सिस बैंक के प्रमुख अर्थशास्त्री नीलकंठ मिश्रा के अनुसार, ब्रेंट और रूसी तेल के दामों में अब केवल $5 प्रति बैरल का अंतर रह गया है। इसका अर्थ है कि सस्ता रूसी तेल नहीं खरीदने पर भारत को सालाना $1-2 अरब का अतिरिक्त खर्च उठाना पड़ सकता है।
रक्षा निर्भरता भी बनी चिंता
रूस भारत का प्रमुख हथियार आपूर्तिकर्ता रहा है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, 2009-13 में रूस की हिस्सेदारी 76% थी, जो 2019-23 में घटकर 36% रह गई। हालांकि पाकिस्तान के खिलाफ ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में S-400 मिसाइल सिस्टम की भूमिका को देखते हुए भारत भविष्य में रूस से और S-400 खरीदने की योजना बना रहा है।
कुछ प्रमुख क्षेत्रों को छूट
अमेरिका ने भारत को कुछ श्रेणियों में टैरिफ छूट देना जारी रखा है। ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के मुताबिक, इनमें प्रमुख रूप से शामिल हैं:
तैयार दवाएं और API
कच्चा तेल, गैस, कोयला, बिजली
क्रिटिकल मिनरल्स
इलेक्ट्रॉनिक्स और सेमीकंडक्टर उत्पाद जैसे कंप्यूटर, टैबलेट, स्मार्टफोन, एसएसडी, और इंटीग्रेटेड सर्किट।
निर्यात क्षेत्र पर संकट के बादल
वाणिज्य मंत्रालय के अनुसार, अप्रैल-मई 2025 में भारत का अमेरिका को माल निर्यात 22% था, जो 2024 की इसी अवधि में 18.9% था। लेकिन अब निर्यात क्षेत्र बुरी तरह संकट में है। सभी प्रमुख क्षेत्रों पर टैरिफ 3.3% से बढ़कर 25% तक पहुंच गया है, जिससे भारत की वैश्विक प्रतिस्पर्धा पर असर पड़ा है।SBI के एक शोध के अनुसार, निम्नलिखित क्षेत्रों में टैरिफ इस प्रकार बढ़े हैं:
इलेक्ट्रॉनिक्स: 23% (US में 18% हिस्सेदारी)
रत्न और आभूषण: 22% (11.5% हिस्सेदारी)
फार्मा: 25% (11.3% हिस्सेदारी)
पेट्रोलियम उत्पाद: 21% (4.9%)
वस्त्र: 16% (3.4%)
ऑटो पार्ट्स: 24% (3%)
बांग्लादेश, वियतनाम को बढ़त, भारत पिछड़ा
1 अगस्त को ट्रंप ने बांग्लादेश पर टैरिफ को 37% से घटाकर 20% कर दिया जो भारत का प्रतिद्वंद्वी है। अन्य प्रतिस्पर्धी देशों जैसे वियतनाम और श्रीलंका को भी 20%, जबकि इंडोनेशिया, कंबोडिया और पाकिस्तान को 19% टैरिफ दर मिली है। चीन को 30% टैरिफ झेलना पड़ रहा है, लेकिन वह परिधान क्षेत्र का सबसे बड़ा निर्यातक है। इससे भारत की परिधान और वस्त्र निर्यात प्रतिस्पर्धा को गहरी चोट पहुंची है।
MSME और रोजगार को झटका
परिधान और रत्न-आभूषण जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्र और ऑटो-फार्मा जैसे पूंजी-प्रधान PLI समर्थित क्षेत्र संकट में हैं। MSME सेक्टर, जो बड़े पैमाने पर रोजगार देता है, को बैंकों की ओर से जोखिम से बचने की नीति का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में सरकार पर राहत पैकेज और 6 अगस्त को होने वाली RBI की मौद्रिक नीति बैठक में दरों में कटौती का दबाव बढ़ेगा।
ध्यान देने वाली बात यह है कि भारत का अमेरिका को कुल निर्यात FY24 में $119.7 बिलियन था जो GDP के 3.3% के बराबर है। 25% टैरिफ से व्यापार और नौकरियों दोनों में भारी गिरावट आ सकती है, जिससे बेरोजगारी बढ़ेगी और वेतन घटेगा। अंततः इसका असर अर्थव्यवस्था की मांग पर पड़ेगा।
जहां एक ओर भारत को रूस के साथ रणनीतिक संबंधों पर राहत मिली है, वहीं अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ का सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था, खासकर MSME और निर्यात-आधारित क्षेत्रों पर पड़ेगा। आने वाले दिन केंद्र सरकार और रिज़र्व बैंक के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो सकते हैं।