
GST 2.0: टैक्स में कटौती से किन राज्यों पर पड़ेगा सबसे ज्यादा असर?
GST 2.0 Reforms: जहां एक ओर दरों में कटौती से सस्ती वस्तुएं, तेज उपभोग और अर्थव्यवस्था को गति मिल सकती है. वहीं, दूसरी ओर यह कई राज्यों के लिए वित्तीय संतुलन का संकट बन सकता है.
GST Council Meeting 2025: देश में जीएसटी (GST) व्यवस्था में बड़े बदलाव की तैयारी चल रही है. आगामी जीएसटी काउंसिल की बैठक में कर (TAX) प्रणाली को सरल बनाने, स्लैब की संख्या घटाने और आम उपभोक्ताओं एवं कारोबारियों को राहत देने वाले सुधारों पर चर्चा होगी. यह सुधार 'GST 2.0' के नाम से चर्चा में है, जिसका मकसद कर दरों को कम करके वस्तुएं सस्ती करना और बाजार में खर्च को बढ़ावा देना है. इससे अर्थव्यवस्था को नया बल मिल सकता है. लेकिन इसका राज्यों की राजस्व आय पर गंभीर असर पड़ने की आशंका जताई जा रही है.
सस्ता होगा सामान, बढ़ेगा खर्च
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, केंद्र और राज्यों को कुल मिलाकर हर साल ₹70,000 करोड़ से ₹1.8 लाख करोड़ तक का नुकसान हो सकता है. रिपोर्ट के अनुसार, यह कदम सरकार की 'राजकोषीय प्रोत्साहन नीति' (fiscal stimulus) का हिस्सा माना जा सकता है, जो हालिया इनकम टैक्स कटौती के बाद दूसरा बड़ा आर्थिक बूस्टर होगा. अगर कीमतों में गिरावट का लाभ सीधे उपभोक्ताओं तक पहुंचता है तो इससे GDP में 20–50 आधार अंकों (basis points) की बढ़ोतरी हो सकती है.
किन राज्यों पर पड़ेगा सबसे ज्यादा असर?
उपभोग प्रधान राज्य जैसे कर्नाटक और तमिलनाडु को इस कदम से लाभ हो सकता है. इन राज्यों में खपत ज़्यादा होने के कारण कर संग्रह में तेज़ी संभव है.
संकट में कौन?
पंजाब, बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे लोन से दबे राज्य, जिनकी 40% से अधिक टैक्स आय जीएसटी पर निर्भर है, उनके लिए यह एक गंभीर चुनौती होगी. महाराष्ट्र, जहां पहले से बजट घाटा बड़ा है, वहां भी तत्काल राजस्व घाटा हो सकता है. अगर दर में कटौती रोज़मर्रा की वस्तुओं पर होती है तो बड़ी जनसंख्या वाले उपभोग राज्य जैसे यूपी, बिहार, महाराष्ट्र और गुजरात पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा.
GST योगदानकर्ता राज्य और अनुपातिक दबाव
महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु और हरियाणा– भारत के सबसे बड़े GST योगदानकर्ता हैं और इन राज्यों को सर्वाधिक वास्तविक नुकसान हो सकता है. वहीं केरल, पंजाब, उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जैसे छोटे राज्य अनुपात में अधिक प्रभावित हो सकते हैं, क्योंकि GST उनकी कुल टैक्स आय का 30–40% हिस्सा है.
GST मुआवजा cess भी होगा समाप्त
सितंबर-अक्टूबर 2025 तक GST मुआवजा cess समाप्त होने की संभावना है. यह cess पहले राज्यों को राजस्व नुकसान से बचाने के लिए लगाया गया था, लेकिन अब इसका उपयोग कोविड-काल के कर्ज की भरपाई में हो रहा है. इसके समाप्त होने के बाद राज्यों के पास राजस्व पूर्ति के लिए सीमित विकल्प बचेंगे.
राज्य कैसे करेंगे राजस्व की भरपाई?
उम्मीद की जा रही है कि दर कटौती से उपभोग में बढ़ोतरी होगी, जिससे अप्रत्यक्ष रूप से कर संग्रह भी बढ़ेगा. Sin goods (जैसे तंबाकू, शराब) पर 40% तक की टैक्स दर लगाने का प्रस्ताव भी इस भरपाई का एक तरीका हो सकता है. राज्य ईंधन और शराब पर अतिरिक्त टैक्स लगाकर भी कुछ नुकसान की भरपाई कर सकते हैं. टैक्स चोरी रोकने के लिए सख्त निगरानी और प्रवर्तन की संभावना भी जताई जा रही है.
क्या कुछ राज्य विरोध करेंगे?
3–4 सितंबर को होने वाली GST काउंसिल की बैठक बेहद अहम मानी जा रही है. GST पर अधिक निर्भर राज्य इस प्रस्तावित दर कटौती का विरोध कर सकते हैं या फिर अतिरिक्त मुआवजे की मांग कर सकते हैं. GST काउंसिल में वोटिंग का वेटेड सिस्टम लागू होता है:
⦁ केंद्र का वोट — 1/3 वेटेज
⦁ सभी राज्यों का कुल वोट — 2/3 वेटेज
⦁ प्रस्ताव पारित करने के लिए 75% वेटेड वोट की आवश्यकता होती है.
इसका मतलब है कि अगर केंद्र सरकार और पर्याप्त संख्या में राज्य समर्थन करते हैं तो प्रस्ताव पारित हो सकता है, भले ही कुछ राज्य असहमत हों. लेकिन अगर प्रमुख राज्य विरोध करते हैं और केंद्र भी साथ नहीं देता तो GST 2.0 की लॉन्चिंग टल सकती है, जिससे उपभोक्ताओं और कारोबारियों के बीच अनिश्चितता बनी रह सकती है.