
Wintrack के भारत से बाहर जाने से 'ईज ऑफ डूइंग बिजनेस' पर बहस, रैंकिंग और ज़मीनी हकीकत उजागर
Wintrack का मामला दिखाता है कि कई कंपनियों के लिए रोज़मर्रा का अनुभव अब भी रुकावटों, अप्रत्याशित क्लीयरेंस और मनमाने प्रवर्तन के खतरे से भरा हुआ है।
अमेरिका स्थित लॉजिस्टिक्स कंपनी Wintrack Inc ने 1 अक्टूबर से भारत में अपने सभी आयात-निर्यात परिचालन बंद करने का ऐलान किया है। कंपनी ने आरोप लगाया कि चेन्नई कस्टम्स द्वारा “उत्पीड़न” और प्रतिशोधी कार्रवाई ने उसका व्यवसाय ठप कर दिया। इस घोषणा के बाद कई उद्यमियों ने अपने अनुभव भी साझा किए, जिससे यह बहस छिड़ गई कि भारत में कारोबार चलाने में अब भी ढांचागत बाधाएं बनी हुई हैं, जबकि सरकार दावा करती है कि कारोबारी माहौल सुधरा है।
Wintrack का बाहर निकलना क्यों हुआ?
कंपनी ने X पर लिखा, “1 अक्टूबर 2025 से Wintrack Inc भारत में सभी आयात और निर्यात परिचालन बंद कर देगा। यह कठिन फैसला बीते 45 दिनों में चेन्नई कस्टम्स अधिकारियों द्वारा लगातार और अनुचित उत्पीड़न के बाद लिया गया है। इस साल की शुरुआत में जब हमने रिश्वतखोरी के उदाहरण उजागर किए, तो प्रतिशोधी कार्रवाई की गई जिसने हमारे व्यवसाय को बुरी तरह प्रभावित किया। हमारी पूरी कोशिशों के बावजूद, यह दबाव इतना बढ़ गया कि काम जारी रखना असंभव हो गया।”
यह पोस्ट वायरल हो गई 58 लाख व्यूज़, 7,900 रीट्वीट और 2,000 कमेंट्स के साथ। कई उद्यमियों ने इसमें अपने अनुभव साझा किए जिनमें कस्टम्स में देरी और कथित भ्रष्ट मांगों की शिकायतें शामिल थीं।
Ease of Doing Business: रैंकिंग बनाम हकीकत
भारत ने कारोबारी माहौल सुधारने में कुछ प्रगति की है, लेकिन गहरी ढांचागत दिक्कतें अब भी कायम हैं। वर्ल्ड बैंक की लॉजिस्टिक्स परफॉरमेंस इंडेक्स (LPI) 2023 में भारत 139 देशों में 38वें स्थान पर रहा (2018 से 6 पायदान ऊपर)। हालांकि यह सुधार अधोसंरचना और तेज़ शिपमेंट को दर्शाता है, भारत अब भी चीन (19वें स्थान) और उन्नत अर्थव्यवस्थाओं से पीछे है।
भारत सरकार बिज़नेस रिफॉर्म्स एक्शन प्लान (BRAP) 2024 का हवाला देती है, जिसके तहत 39,000 से अधिक अनुपालन आवश्यकताओं को हटाने और 3,400 से अधिक प्रावधानों को अपराध-मुक्त करने का दावा है। अधिकारियों के अनुसार, यह कदम उत्पीड़न कम करने और निवेशकों के लिए पूर्वानुमेय माहौल बनाने के लिए उठाए गए हैं।
लेकिन Wintrack प्रकरण दिखाता है कि कंपनियों का रोज़मर्रा का अनुभव अब भी बाधाओं, अप्रत्याशित क्लीयरेंस और मनमाने प्रवर्तन में फंसा है।
2020 में भारत वर्ल्ड बैंक के Ease of Doing Business Index में 190 अर्थव्यवस्थाओं में 63वें स्थान पर था। 2014 से 2019 के बीच भारत ने 79 स्थानों की छलांग लगाई थी। लेकिन हाल के वर्षों में, डिजिटलीकरण के बावजूद, कारोबारी जगत का कहना है कि ज़मीनी स्तर पर अब भी रोज़मर्रा की रुकावटें बनी हुई हैं।
जुलाई 2025 की CII (कॉन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री) रिपोर्ट बताती है कि कंपनियाँ अब भी 1,536 अधिनियमों, 69,233 अनुपालन शर्तों और 6,600 से अधिक फ़ाइलिंग के जाल में फँसी हैं। CII ने मंज़ूरी के लिए बाध्यकारी समयसीमा, एक राष्ट्रीय सिंगल विंडो सिस्टम, जोखिम-आधारित निरीक्षण और पूरी तरह डिजिटलीकृत कस्टम्स क्लियरेंस (AI आधारित, ज़ीरो-पेपर सिस्टम) की सिफारिश की।
वित्त मंत्रालय की प्रतिक्रिया
वायरल विवाद के बाद वित्त मंत्रालय ने बयान जारी किया। इसमें कहा गया कि राजस्व विभाग (DoR) का एक वरिष्ठ अधिकारी “निष्पक्ष, पारदर्शी और तथ्य-आधारित जांच” करेगा। मंत्रालय ने करदाताओं के लिए Taxpayer Charter, Faceless Customs और अपील निकायों जैसी सुधार पहलों का हवाला देते हुए दोहराया कि सरकार “Ease of Doing Business को बढ़ावा देने के लिए प्रतिबद्ध” है।
लेकिन 1 अक्टूबर को ही चेन्नई कस्टम्स ने Wintrack के आरोपों को “झूठा और सोचा-समझा” बताते हुए खारिज कर दिया। एजेंसी ने दावा किया कि Wintrack ने सामान की गलत वर्गीकरण किया, USB चार्जिंग केबल्स जिनमें बैटरियां थीं, उन्हें घोषित नहीं किया, और गलत दस्तावेज़ दिए। अधिकारियों का आरोप था कि जब उन्हें प्रक्रिया समझाई गई तो आयातक ने “मीडिया में एक्सपोज़ और आत्महत्या की धमकी देकर वरिष्ठ अधिकारियों को डराने की कोशिश की।”
कस्टम्स ने लिखा, “हम स्पष्ट रूप से कहते हैं कि की गई हर कार्रवाई कानूनी रूप से आवश्यक, प्रक्रियात्मक रूप से सही और जाँच के दौरान पाए गए दस्तावेज़ी उल्लंघनों पर आधारित थी। किसी भी प्रकार की रिश्वत की मांग नहीं की गई।”
हालांकि कुछ ऑनलाइन टिप्पणियों ने कहा कि Wintrack की वेबसाइट में पर्याप्त जानकारी और क्लाइंट नेटवर्क नहीं दिखते, फिर भी अधिकांश लोगों का मानना था कि असली मुद्दा यही है – कस्टम्स अधिकारी लंबे समय से रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार से कारोबार में बाधा डालते रहे हैं।
राजनीतिज्ञ और उद्योग जगत की प्रतिक्रिया
इस घटना ने राजनीतिक और कारोबारी जगत में कड़ी प्रतिक्रियाएँ पैदा कीं। कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने X पर लिखा, “यह बेहद निराशाजनक है। भ्रष्टाचार पूरे सिस्टम में फैला है और ज्यादातर कंपनियाँ इसे ‘doing business की कीमत’ मानकर स्वीकार करती हैं। ऐसा होना ज़रूरी नहीं है, और यदि देश को आगे बढ़ना है तो ऐसा होना नहीं चाहिए।”
इंफोसिस के पूर्व CFO और स्टार्टअप निवेशक मोहनदास पाई ने सरकार पर हमला बोला, “मैडम @nsitharaman यह स्वीकार्य नहीं है। आप हमारे बंदरगाहों में फैले तंत्रगत भ्रष्टाचार को खत्म करने में नाकाम रही हैं… 30 लाख करोड़ रुपये कर विवादों में फंसे हुए हैं। हमें बेहतर नियमों के साथ एक रिश्वत-मुक्त, झंझट-मुक्त सिस्टम चाहिए।”
बाद में पाई ने मंत्रालय की त्वरित प्रतिक्रिया को स्वीकार किया, लेकिन यह भी कहा कि “मुद्दा वर्गीकरण (classification) का नहीं, बल्कि भ्रष्टाचार और रिश्वत का है।”
उद्योगपति और पीण्य इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन के सदस्य जैकब क्रास्टा ने The Federal से कहा, “Ease of doing business में सुधार की ज़रूरत है। उद्योगपति खराब बुनियादी ढांचे, अंतहीन देरी और भ्रष्टाचार का खामियाजा भुगत रहे हैं।”
ज़मीनी कहानियाँ
Wintrack प्रकरण ने उद्यमियों की गवाही की बाढ़ ला दी, जिन्होंने कहा कि व्यवस्था उनके खिलाफ खड़ी है। पशुचिकित्सक और Augie Pets के संस्थापक रवि पचैयप्पन ने X पर लिखा, “एक शिपमेंट को कस्टम्स और AQCS क्लियरेंस में 9 महीने से ज़्यादा लग गए… AQCS प्रमुख ने मुझे कहा, ‘तो क्या?’ जबकि हमने सभी प्रक्रियाओं का पालन किया था।”
एक अन्य उद्यमी योगेश गोयल ने पोस्ट किया, “यही होता है जब आप रिश्वत का पर्दाफाश करते हैं। सभी विभाग मिलकर सुनिश्चित करते हैं कि आप फँसें। भारत में असली ease of doing business तो रिश्वत है।”
विक्टर, जिन्होंने एक रक्षा PSU शिपमेंट पर काम किया था, ने सीधा लिखा, “कस्टम्स इतने बेशर्म और भ्रष्ट हैं कि उन्होंने रक्षा शिपमेंट तक रोक दिया! क्लीयरेंस पाने के लिए हमें PMO के हस्तक्षेप की धमकी देनी पड़ी।”
एक निर्यातक ने निजी तौर पर कहा, “कागज़ात पूरी तरह सही होने पर भी आपका माल तब तक अटका रह सकता है जब तक आप भुगतान न करें। और अगर विरोध करें, तो वे देरी करने के और तरीके निकाल लेंगे।”
सरकार के सुधार प्रयास
सरकार ने बड़े पैमाने पर डिजिटलीकरण किया है। कस्टम्स फ़ाइलिंग अब ऑनलाइन की जा सकती है। Faceless assessments मानक बन चुके हैं। कम-जोखिम वाले कार्गो के लिए Green Channel क्लियरेंस बढ़ाया गया है।
Time Release Study (TRS) के अनुसार कार्गो क्लियरेंस का औसत समय 2017 में 80 घंटे से ज़्यादा था, जो 2023 तक घटकर लगभग 44 घंटे रह गया। फिर भी, जैसा कि CII चेतावनी देता है, अंतिम चरण का प्रवर्तन अब भी अप्रत्याशित है।
मंज़ूरी प्रणालियाँ केंद्र और राज्य संस्थाओं में बंटी हुई हैं। शिकायत निवारण अपारदर्शी है। अनुपालन व्यवस्थाएँ बेहद भिन्न हैं।
CII की रिपोर्ट ने सुझाव दिया है कि, Self-certification और third-party audits को बढ़ावा दिया जाए। विवेकाधिकार कम करने के लिए पर्यावरण, बैटरी वेस्ट और मेट्रोलॉजी नियमों को एकीकृत ढाँचे में समाहित किया जाए।
बढ़ता व्यापार और जोखिम
भारत का निर्यात-आयात व्यापार तेज़ी से बढ़ रहा है। FY 2023–24 में माल निर्यात $778 अरब डॉलर रहा, एक दशक में लगभग 67% की वृद्धि। लक्ष्य है कि 2030 तक इसे $2 ट्रिलियन तक पहुँचाया जाए। लेकिन लॉजिस्टिक्स और कस्टम्स की अक्षमताएँ अब भी बाधाएँ हैं जो प्रतिस्पर्धा को कमजोर कर सकती हैं।
Wintrack का बाहर निकलना शायद तुरंत व्यापार मात्रा को प्रभावित न करे, लेकिन यह एक अहम समय पर भारत की छवि को चोट पहुँचाता है। जब वैश्विक सप्लाई चेन चीन से हटकर विकल्प तलाश रही हैं, तब भारत को एक भरोसेमंद ठिकाने के रूप में दिखना चाहिए। उत्पीड़न और भ्रष्टाचार की घटनाएँ उलटा संकेत भेज सकती हैं।
जैसा कि शशि थरूर ने चेतावनी दी, “ऐसा होना ज़रूरी नहीं है। और अगर देश को आगे बढ़ना है, तो ऐसा होना बिल्कुल नहीं चाहिए।”