वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर मंडराया संकट, भारत निभाएगा नेतृत्व की भूमिका?
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वैश्विक व्यापार व्यवस्था पर मंडराया संकट, भारत निभाएगा नेतृत्व की भूमिका?

प्रोफेसर मावरोइडिस ने कहा कि अगर अब भी भारत, यूरोप और अन्य देश मिलकर कोई नया मंच नहीं बनाते तो WTO का अस्तित्व सिर्फ नाम का रह जाएगा। भारत के लिए यह सिर्फ एक संकट नहीं, बल्कि वैश्विक व्यापार में नेतृत्व का मौका है।


अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की व्हाइट हाउस में वापसी के बाद वैश्विक व्यापार व्यवस्था दशकों के सबसे बड़े संकट का सामना कर रही है। ट्रंप ने 10 जुलाई को भारत के निर्यातों पर 25% का एकतरफा टैरिफ (आयात शुल्क) लगाया, जिसके तुरंत बाद दक्षिण कोरिया और ब्राज़ील के खिलाफ भी इसी तरह की कार्रवाई की गई। इस घटनाक्रम ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) की भूमिका और भविष्य पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रसिद्ध व्यापार कानून विशेषज्ञ प्रोफेसर पेट्रॉस सी. मावरोइडिस ने एक विशेष बातचीत में बताया कि यह समय वैश्विक व्यापार के लिए अभूतपूर्व संकट का है।

अनजाना और अस्थिर रास्ता

प्रो. मावरोइडिस कहते हैं कि WTO की स्थापना व्यापार में स्थिरता और निष्पक्षता लाने के लिए हुई थी। लेकिन अब, खासतौर पर 20 जनवरी के बाद से, यह स्थिरता टूट गई है। भारत के साथ जो हुआ, वह WTO के अन्य सदस्य देशों के साथ भी हुआ है। उन्होंने बताया कि अमेरिका द्वारा घोषित टैरिफ WTO के नियमों के अनुरूप नहीं हैं। ये समझौते द्विपक्षीय और भेदभावपूर्ण हैं। जैसे, भारत से बासमती चावल पर 25% शुल्क लगाया गया है, जबकि यूरोपीय संघ से आने वाले चावल पर 15% और ब्रिटेन से आने वाले पर 10%। यह WTO की आत्मा और नियमों के खिलाफ है।


बातचीत या विरोध?

प्रो. मावरोइडिस कहते हैं कि यह कहना कठिन है कि आगे क्या होगा। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने भी हाल में कहा कि अमेरिका और यूरोप के बीच स्थिरता है, लेकिन अभी तक कोई लिखित समझौता नहीं हुआ है। ऐसे में कोई नहीं जानता कि आगे क्या होगा। उनका मानना है कि भारत, चीन, ब्राजील और यूरोपीय संघ को 3 अप्रैल को ही एक साथ खड़े होकर अमेरिका के खिलाफ मोर्चा खोल देना चाहिए था। लेकिन हुआ इसके उलट — सभी देश अपने-अपने सौदे करने में जुट गए, जिससे सामूहिक विरोध की संभावना खत्म हो गई।

द्विपक्षीय समझौता

प्रोफेसर का मानना है कि भारत, यूरोप, चीन और ब्राजील को मिलकर एक एंटी-यूनिलैटरल कोएलिशन (एकतरफा फैसलों के विरोध में गठबंधन) बनाना चाहिए था। लेकिन ऐसा कोई प्रयास नहीं किया गया। जैसा कि बेंजामिन फ्रैंकलिन ने कहा था — अगर हम एक साथ खड़े नहीं हुए तो अलग-अलग फांसी पर चढ़ेंगे। हम उसी स्थिति में हैं।

चीन का रुख अलग

चीन ने अमेरिकी कार्रवाई के जवाब में WTO में शिकायत दर्ज कराई और खुलकर अमेरिकी दबाव का विरोध किया। विडंबना यह है कि अब WTO की बची-खुची साख चीन के कंधों पर टिक गई है। प्रो. मावरोइडिस ने चिंता जताई कि अमेरिका, यूरोप, जापान, कोरिया और ब्रिटेन जैसे बड़े देश अमेरिका से द्विपक्षीय सौदे कर रहे हैं, जिनमें WTO का कोई जिक्र नहीं है। ऐसा लग रहा है जैसे WTO अब अस्तित्व में ही नहीं है।

ट्रंप से राहत की उम्मीद

मावरोइडिस ने साफ कहा कि “बिलकुल नहीं” । USMCA (कनाडा और मैक्सिको के साथ ट्रंप का औपचारिक समझौता) के बावजूद ट्रंप ने उन पर भी टैरिफ लगा दिए। अगर लिखित समझौते का यह हाल है तो मौखिक आश्वासन पर क्या भरोसा किया जा सकता है?

भारत को कूटनीतिक नेतृत्व संभालना चाहिए था

उनका मानना है कि भारत को ट्रंप से “रियायत मांगने” की बजाय बाकी देशों को साथ लेकर सांविधानिक व्यापार व्यवस्था की रक्षा करनी चाहिए थी। यह सिर्फ भारत की चूक नहीं है, बल्कि यूरोपीय संघ, ब्राजील और चीन भी जिम्मेदार हैं।

WTO का भविष्य

मावरोइडिस का मानना है कि WTO दो मुख्य काम करता है – गैर-भेदभावपूर्ण व्यापार को बढ़ावा देना और समझौतों को लागू कराना। आज दोनों ही काम ठप हैं। टैरिफ समझौते भेदभावपूर्ण हो गए हैं और WTO की न्यायिक प्रणाली पूरी तरह से पंगु हो चुकी है — कोई अपीलीय संस्था नहीं बची है। यदि अमेरिका WTO के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन करता है तो फिर दोनों का सह-अस्तित्व असंभव है। आप एक साथ नियम-आधारित व्यवस्था और उसके विरुद्ध आचरण नहीं कर सकते।

नया वैश्विक व्यापार संगठन

मावरोइडिस ने कहा कि हो सकता है यही एकमात्र रास्ता बचा हो। यूरोपीय नेताओं द्वारा CPTPP जैसे प्रशांत देशों के साथ नए व्यापार गठबंधन की बात भी इसी दिशा की ओर इशारा करती है। भारत को ऐसे किसी नए, निष्पक्ष और बहुपक्षीय संगठन का हिस्सा बनना चाहिए।

क्या चीन को नेतृत्व करना चाहिए?

अब दुनिया बहुध्रुवीय (multipolar) हो चुकी है। अमेरिका अब अकेला वैश्विक नेता नहीं रहा। भारत के पास अब यह ऐतिहासिक मौका है कि वह चीन, ब्राजील और यूरोप के साथ मिलकर नियम-आधारित व्यवस्था की रक्षा में नेतृत्व करे।

टैरिफ ने नई बहस छेड़ी

ट्रंप ने हाल में ब्राजील पर 50% टैरिफ लगा दिया, जबकि ब्राजील अमेरिका के साथ व्यापार में घाटे में है। यह टैरिफ पूरी तरह राजनीतिक था — सिर्फ इसलिए लगाया गया क्योंकि ट्रंप को लगा कि राष्ट्रपति बोल्सोनारो के साथ ‘अन्याय’ हुआ। अगर WTO को राजनीतिक हथियार बना लिया गया तो पूरी प्रणाली खतरे में पड़ जाएगी।

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