जायबत्सू-चायबोल ने जापान- कोरिया को संवार दिया, क्या भारत भी उसी राह पर ?
जापान और कोरिया दोनों मुल्कों ने औद्योगिक विकास के लिए अलग अलग कालखंड में जायबत्सू और चायबोल मॉडल अपनाया था. क्या भारत भी उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है.
What is Zaibatsu and Chaebol Model: दुनिया में आर्थिक विकास को लेकर तीन तरह की धारणा है. पहली धारणा कैपिटलिज्म, दूसरी धारणा कम्यूनिज्म और तीसरी धारणा दोनों का मिला जुला रूप. अगर आप इन तीनों धारणा को देखें तो नतीजे एकतरफा नहीं रहे हैं. यानी हर किसी के फायदे और नुकसान. अगर बात भारत की करें तो 1947 में आजादी मिलने के बाद चर्चा शुरू हुई कि हमें कैसी व्यवस्था को अपनाना चाहिए. भारत ने पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर पर जोर दिया हालांकि 1991 के बाद हम वैश्वीकरण और उदारीकरण की दिशा में आगे बढ़ गए. हालांकि विपक्ष के अलग अलग धड़ों से आरोप भी लगते रहे कि यह सब कुछ खास वर्ग को फायदा पहुंचाने के लिए है. इन सबके बीच उस तरह के आरोप आज की मौजूदा सरकार पर भी लगते हैं. मसलन यह सरकार क्रोनी कैपिटलिज्म को बढ़ावा दे रही है. कुछ लोगों को फायदा मिल रहा है. ऐसी सूरत में चायबोल और जायबत्सू मॉडल का जिक्र करना जरूरी हो जाता है.
जायबत्सू का जापान और चायबोल का कोरिया से नाता
चायबोल मॉडल को कोरिया और जायबत्सू मॉडल को जापान ने अपनाया था. जायबत्सू और चायबोल दोनों का अर्थ बड़े बड़े औद्योगिक समूहों से है जिन्हें आगे बढ़ाने के लिए सरकार रियायते देती हैं. 1900 से 1940 के दौरान जापान ने जायबत्सू मॉडल पर काम किया और उसका फायदा सेकेंड वर्ल्ड वॉर के समय दिखाई दिया जब जापान खुलकर यूके और यूएस के खिलाफ लड़ सका. नागासाकी और हिरोशिमा पर एटम बम के गिराए जाने का असर हुआ. लेकिन जापान उससे बाहर जल्दी ही निकल भी गया. इसी तरह अगर आप कोरिया को देखें तो तो 1960 के बाद ओद्योगिक क्रांति आई. कोरिया ने जापान के मॉडल पर आगे बढ़ने का फैसला किया जिसे चायबोल नाम दिया. इसके तहत देवू को छोड़कर ह्यूंडई,सैमसंग, लकी गोल्डस्टार ने सफलता के झंडे भी गाड़े हैं. इन्हें क्रोनी कैपिटलिस्ट भी कहा जाता है. बाद में चायबोल और जायबत्सू की कामयाबी को औद्योगिक नीति का नाम दे दिया गया.इसमें सरकार की तरफ से मिलने वाली सब्सिडी के तौर पर मदद के साथ साथ कुछ अतिरित्क सहयोग की बात आती है. क्या भारत भी उसी दिशा में आगे बढ़ रहा है. उसे समझने की कोशिश करेंगे.
यह है भारत की तस्वीर
अगर भारत की बात करें तो इस समय तीन बड़े औद्योगिक घरानों अंबानी, अडानी और टाटा की चर्चा होती है.इसके बाद कुमार बिड़ला, जिंदल स्टील वर्क्स के सज्जन जिंदल, भारती एयरटेल के सुनील मित्तल और वेदांता के अनिल अग्रवाल आते हैं. कांग्रेस, खासतौर से राहुल गांधी की ओर से आरोप लगाया जाता है कि इन औद्योगिक घरानों पर सरकार मेहरबान है. लेकिन यदि आप जमीनी हकीकत देखें तो भारत में प्रतिस्पर्धा अधिक है. आपने बड़े औद्योगिक घरानों के पराभव को देखा होगा भले ही उनके राजनीतिक दलों या शख्सियतों से पुख्ता संबंध क्यों ना रहे हों. हिंदुस्तान मोटर्स(सी के बिड़ला ग्रुप), प्रीमियर ऑटोमोबाइल्स (वालचंद), जे के सिंथेटेक्स, द थापर्स या डीसीएम उसके उदाहरण है.
भारत में प्रतिस्पर्धा अधिक
यह बात सच है कि सभी ओद्योगिक घराने राजनीतिक चंदा देते हैं, अपने पक्ष में गोलबंदी कर कुछ फायदा भी हासिल करते हैं. लेकिन बिना बुद्धिमता और क्षमता के आगे नहीं बढ़ सकते इसका भी उदाहरण देश के सामने है. 1989 तक लाइसेंस परमिट राज में जिसे औद्योगिक लाइसेंस हासिल हुए उसका एकाधिकार था इस सच्चाई को नकारा नहीं जा सकता. लेकिन 1989 के बाद जब लाइसेंस राज समाप्त हुआ तो हम सबने देखा है कि कैसे बड़े औद्योगिक घराने ढह गए. राहुल गांधी अक्सर अनिल अंबानी पर क्रोनी कैपिटलिज्म का आरोप लगाते हैं हालांकि अंबानी की तरफ कड़ी प्रतिक्रया भी आई है. लेकिन एक सच यह भी था कि सबसे ज्यादा फायदा यूपीए सरकार के दौरान मिला. लेकिन जो अनिल अंबानी दुनिया के अमीरों में शुमार किए जाते थे मौजूदा समय में उनकी स्थिति कैसी है. जबकि उनके भाई मुकेश अंबानी की तरक्की जबरदस्त तरीके से हो रही है.
इसका अर्थ यह हुआ कि फेवर बहुत मतलब नहीं रखता. जापान के जायबत्सू और कोरिया के चायबोल की तरह भारत में ये मुकेश अंबानी, गौतम अडानी और टाटा ग्रुप अलग अलग क्षेत्रों में कारोबार कर रहे हैं. अब यदि पश्चिम में औद्योगिक घरानों की बात करें तो उनकी हालत खराब है. हालांकि विकासशील देशों में अच्छे प्रबंधन का मिलना दुर्लभ है. अगर बात टाटा ग्रुप की करें तो आईटी,स्टील, ऑटो, पॉवर और केमिकल्स में इनका नाम है, जबकि अडानी ग्रुप ने पोर्ट, सीमेंट, एयरपोर्ट सोलर पार्क्स में ध्यान केंद्रित किया है. राहुल गांधी फेवर की बात तो करते हैं लेकिन अकेले सिर्फ इस एक शब्द से कोई भी समूह इतनी तरक्की नहीं कर सकता जैसे सिर्फ फेवर की वजह से आप मित्सबिशी या ह्यूंडई की तरक्की की व्याख्या नहीं कर सकते हैं.