इससे पहले, कार्की ने साफ कर दिया था कि वह तभी अंतरिम सरकार का नेतृत्व करेंगी यदि उन्हें ऊंचे पदों पर फैले भ्रष्टाचार और पुलिस की बेकाबू ताकत के इस्तेमाल, जिससे कम से कम 20 प्रदर्शनकारियों की मौत हुई—की निष्पक्ष जांच करने की अनुमति दी गई।
उन्होंने कहा था, “अगर मेरे हाथ-पैर बांध दिए जाएंगे और मैं पूरी तरह से पंगु बना दी जाऊंगी, तो मुझे इस पद में कोई दिलचस्पी नहीं होगी।”
कार्की की यह टिप्पणी राष्ट्रपति पौडेल द्वारा बुलाई गई उच्च स्तरीय बैठक में सामने आई, जिसमें नेपाल की तीन बड़ी राजनीतिक पार्टियों के नेता शामिल थे, सीपीएन (यूएमएल) के ओली, नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा और माओवादी सेंटर के पुष्पकमल दहल ‘प्रचंड’।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, ये तीनों बड़े नेता कार्की की उस शर्त को मानने के पक्ष में बहुत उत्साहित नहीं थे, क्योंकि भ्रष्टाचार और पुलिस की ज्यादतियों की उच्चस्तरीय जांच उनके राजनीतिक दलों को बदनाम कर सकती थी, जो देश की लोकतंत्र की मुख्य आधारशिला माने जाते हैं।