लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद महाराष्ट्र की राजनीती के बदले समीकरण
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लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद महाराष्ट्र की राजनीती के बदले समीकरण

लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद महाराष्ट्र भी एक ऐसा राज्य है, जहाँ बीजेपी को काफी नुक्सान हुआ है. बीजेपी को खतरे की घंटी सुनाई दे चुकी है. वहीँ कांग्रेस ऐसी पार्टी है, जो लगभग जीरो से हीरो की भूमिका में आ गई है लेकिन बेहतर प्रदर्शन करने वाले महाविकास अघाड़ी के सामने भी चुनौती है.


Maharashtra Politics update: लोकसभा चुनाव के परिणाम के बाद महाराष्ट्र भी एक ऐसा राज्य है, जहाँ बीजेपी को काफी नुक्सान हुआ है. वहीँ कांग्रेस ऐसी पार्टी है, जो लगभग जीरो से हीरो की भूमिका में आ गई है. यही वजह भी रही कि बुधवार को महाराष्ट्र सरकार के उपमुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणविस ने आगामी विधानसभा चुनाव में पार्टी की स्थिति को मजबूत करने की बात कहते हुए और राज्य में पार्टी के कमजोर प्रदर्शन की ज़िम्मेदारी लेते हुए इस्तीफे की पेशकश की. महाराष्ट्र में लगभग 4 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं. यही वजह है कि महायुति गठबंधन की प्रमुख पार्टी बीजेपी को खतरे की घंटी सुनाई दे चुकी है. अब पार्टी प्रदेश में खुद को पुन:स्थापित करने की प्रक्रिया पर जोर दे रही है. महाराष्ट्र की राजनीती की अच्छी समझ रखें वाले वरिष्ठ पत्रकार और लेखक जीतेन्द्र दीक्षित से हुई बातचीत के आधार पर समझने की कोशिश करते हैं आने वाले समय में महाराष्ट्र की राजनीती में क्या समीकरण बन सकते हैं.

ऐसा नहीं है कि ये चुनौती सिर्फ महायुती तक ही सिमित है. महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने वाले महाविकास अघाड़ी के सामने भी चुनौती है. बस दोनों के बीच चुनौतियों की वजह अलग अलग हैं. समझते हैं कि आखिर किस गठबंधन के सामने किस चीज की चुनौती है और किसकी प्राथमिकता क्या रहने वाली है?

सबसे पहले बात करते हैं लोकसभा चुनाव 2024 के परिणामों की

इस चुनाव में समीकरण पिछले चुनाव से अलग था. गठबंधन का स्वरुप भी अलग था. एनडीए की जगह यहाँ महायुति और इंडिया की जगह महाविकास अघाड़ी. महायुती में बीजेपी के साथ शिवसेना(शिंदे), एनसीपी(अजीत पवार) शामिल हैं. वहीँ महाविकास अघाड़ी में कांग्रेस, शिव सेना(उद्धव ठाकरे), एनसीपी(शरद पवार) शामिल थे. परिणाम देखें तो 48 सीट में से महाविकास अघाड़ी को 30 सीट मिली और महायुति को सिर्फ 17 सीट. एक सीट निर्दलीय के पक्ष में गयी. इसमें कांग्रेस को 13, शिव सेना(यूटी) को 9 और एनसीपी(शरद पवार) को 8 सीट मिली हैं. वहीँ महायुती में बीजेपी को 9, शिवसेना(शिंदे) को 7 और एनसीपी(अजीत पवार) को सिर्फ 1 सीट ही मिली.

वहीँ अगर हम लोकसभा चुनाव 2019 के परिणाम देखें तो बीजेपी को 23 सीट मिली थीं. बीजेपी सिर्फ 25 सीटों पर जीती थी. शिव सेना उस समय एक ही थी और बीजेपी की घटक थी,जिसे 18 सीट मिली थीं. कांग्रेस को सिर्फ 1 सीट मिली थी, जबकि एनसीपी को 4 सीट मिलीं थीं, उस समय एनसीपी एक ही थी और कांग्रेस की घटक थी.

अब बात करते हैं कि महायुति ख़ास तौर से बीजेपी को किन बातों से ज्यादा नुक्सान हुआ

इस विषय पर बात करते हुए वरिष्ठ पत्रकार जीतेंद्र दीक्षित का कहना है कि कोई एक कारण नहीं है, जो बीजेपी की इस दुर्गति के लिए ज़िम्मेदार हो. इसके पीछे की वजह को सिलसिलेवार तरीके से समझना होगा.

1- जनता के बीच बीजेपी की छवि को करार झटका लगा है - बीजेपी ने पिछले समय में कई ऐसे निर्णय लिए जिसकी वजह से उसकी छवि जनता के बीच बेहद ख़राब हुई है. जब से मोदी सरकार सत्ता में आई, यानी 2014, तब से भ्रष्टाचार मुक्त भारत की बात की. लेकिन 2019 के बाद ख़ासतौर से महाराष्ट्र की बात करें तो पार्टी ने कई ऐसे नेताओं को शामिल किया जो भ्रष्टाचार के दाग को लगाये घूम रहे हैं, जैसे अजीत पवार, अशोक चव्व्हान. जनता के बीच इस बात का सन्देश अच्छा नहीं गया और जनता ने इसका जवाब चुनाव में दिया.

2- जोड़तोड़ की राजनीती से हुआ नुक्सान - महाराष्ट्र की जनता को जोड़तोड़ की राजनीती भी पसंद नहीं आई. जिस तरह से शिवसेना और एनसीपी में टूटफूट हुई, उससे भले ही बीजेपी को छनिक लाभ हुआ लेकिन अब उसका नुक्सान बेहद गंभीर निकल कर सामने आया है. जाहिर है कि जनता को ये कदम अच्छा नहीं लगा और इसका विपरीत परिणाम बीजेपी को झेलना पड़ा.

3 - सत्ता विरोधी लहर - इस चुनाव यानी 2024 की बात करें तो बीजेपी के खिलाफ प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर भी देखने को मिली. 2014 में जहाँ न केवल पूरे देश बल्कि प्रदेश में भी मोदी लहर थी. वहीँ 2019 में पुलवामा अटैक और सर्जिकल स्ट्राइक के चलते देश भर में राष्ट्र भक्ति की लहर थी, जो बीजेपी के समर्थन में रही. लेकिन इस बार ऐसी कोई लहर देखने को नहीं मिली.

4 - संविधान और आरक्षण बचाओ वाले नारे की काट नहीं तलाश पाए- बीजेपी के लिए सबसे ज्यादा नुकसानदेह विपक्ष का संविधान और आरक्षण बचाओ नारा रहा. इस एक नारे ने बीजेपी को जितना नुक्सान पहुँचाया शायद किसी ने नहीं पहुँचाया. इस एक नारे ने दलित और ओबीसी वोटर के मन में एक डर पैदा कर दिया और वो बीजेपी से बड़ी संख्या में छिटक गया.

5- सीटों पर उम्मीदवारों के चयन में देरी- बीजेपी के नुक्सान का एक कारण उम्मीदवारों का एलान देर से होना रहा. जहाँ महाविकास अघाड़ी ने काफी पहले उम्मीदवारों का एलान कर दिया था और उसके उम्मीदवारों ने प्रचार प्रसार भी काफी पहले से कर दिया था, वहीँ बीजेपी के उम्मीदवारों का चयन ही देर से हुआ, इसलिए प्रचार भी देर से हुआ.


बीजेपी अब संगठन में बदलाव करने में जुटेगी

इस परिणाम के बाद बीजेपी अपने संगठन के पुनर्गठन में जुट गयी है. इसका एक इशारा उप मुख्यमंत्री देवेन्द्र फडणविस बुधवार को ही दे चुके हैं. दूसरी बात ये है कि बड़े पैमाने पर कार्यकर्ताओं को संगठित करते हुए उनके अंदर जोश भरना और उन्हें उसी जोश के साथ जमीं पर सक्रीय करना होगा. एक तरह से कहें तो बीजेपी को राजनितिक पुनर्निर्माण करने की आवश्यकता है. दूसरी बात ये भी है कि लोकसभा चुनाव से पहले महायुती में राज ठाकरे को भी शामिल किया गया और उन्हें ये आश्वासन दिया गया कि विधानसभा चुनाव में मौका दिया जायेगा. यानी वो भी सीटों को लेकर मांग रखेंगे, जिसकी वजह से महायुती के सामने एक नयी चुनौती होगी.

वहीँ जो लोग उद्धव ठाकरे और शरद पावर का गुट छोड़ कर आये थे, उन्हें अपने साथ बांधे रखना भी टेडी खीर साबित होगी.


अब बात करते हैं कि महाविकास अघाड़ी को किन चीजों का लाभ मिला और किन चीजों का चैलेंज झेलना होगा

वरिष्ठ पत्रकार जीतेन्द्र दीक्षित का कहना है कि जो कारण महायुति के लिए नुक्सानदायक साबित हुए, वो महाविकास अघाड़ी के लिए फायदे मंद रहे. जिस तरह से महाविकास अघाड़ी ने जनता के सामने संविधान और आरक्षण के खतरे वाली बात पहुंचाई उससे मुस्लिम के साथ साथ दलित और ओबीसी वोट भी अपने पक्ष में कर लिया. इसके अलावा शिव सेना और एनसीपी में हुई टूट के प्रति जो सहानुभूति थी, उसका अंडर करंट भी महाविकास अघाड़ी को ही मिला. लेकिन अब जो सबसे बड़ी चुनौती महाविकास अघाड़ी के सामने है, वो गठबंधन के सभी घटकों को बांधे रखने का है. ऐसा नहीं है कि कहीं कोई जा रहा है, लेकिन अहम का टकराव इस गठबंधन के लिए खतरा बन सकता है.

कांग्रेस जो 2019 में सिर्फ 1 सीट लायी थी, वो अब 13 सीट लेकर सबसे बड़ा दल बन गया है. इसी वजह से बुधवार को कांग्रेस के नाना पटोले ने कहा कि कांग्रेस बड़े भाई की बड़ी भूमिका निभाएगी. उनकी ये बात कहीं न कहीं इस ओर इशारा करती है कि आगामी विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ना चाहेगी. वहीँ दूसरी ओर शिव सेना(उद्धव ठाकरे) की तरफ से संजय राउत ने अपने एक बयान में कहा है कि जो परिणाम आये हैं, उसमें शिव सेना की बड़ी भूमिका है. शिव सेना पूरे महाराष्ट्र में है. अगर शिव सेना सभी जगहों से लड़ती तो क्या ये परिणाम होते. इसलिए शिव सेना के बिना ऐसा परिणाम संभव नहीं था.

इन दोनों ही नेताओं के बयान इस ओर इशारा कर रहे हैं कि विधानसभा चुनाव के सीट बंटवारा काफी चुनौती पूर्ण रहने वाला है.

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