फर्जी BARC साइंटिस्टों का खुलासा; न्यूक्लियर रहस्य बेचने का कर रहे थे प्रयास
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फर्जी BARC साइंटिस्टों का खुलासा; न्यूक्लियर रहस्य बेचने का कर रहे थे प्रयास

मुंबई पुलिस ने जासूसी के आरोप में दो फर्जी साइंटिस्टो को पकड़ा था, खुलासा हुआ है कि वो फर्जी न्यूक्लियर रहस्य बेचने की फ़िराक में थे और ईरान भी गए थे.


Suspected ISI Agent: मुंबई क्राइम ब्रांच द्वारा पकड़े गए दो फर्जी BARC वैज्ञानिकों के मामले में रोज़ नए खुलासे हो रहे हैं। जांच में सामने आया है कि गिरफ्तार आरोपी अख़्तर हुसैनी कुतुबुद्दीन अहमद और उसका भाई आदिल हुसैनी, दरअसल ISI एजेंट हैं, जो भारत के परमाणु रहस्यों को अंतरराष्ट्रीय ग्रे मार्केट में बेचने की साजिश रच रहे थे।

दोनों आरोपी VPN और एन्क्रिप्टेड नेटवर्क का इस्तेमाल कर रहे थे और दावा कर रहे थे कि उनके पास लिथियम-6 फ्यूज़न रिएक्टर के डिज़ाइन और ब्लूप्रिंट हैं, जिन्हें वे विदेशी ख़रीदारों को बेच सकते हैं। पूछताछ में पता चला कि उन्होंने इस तकनीक का कुछ हिस्सा ईरान से जुड़े न्यूक्लियर पैनल्स के साथ साझा भी किया था।

ईरान में झूठे दावे, तेहरान यात्रा और नकली पहचान

जांच एजेंसियों के अनुसार, अख्तर और आदिल दोनों ने मार्च-अप्रैल 2025 में तेहरान की यात्रा की थी और ईरानी दूतावास के कुछ अधिकारियों से मुलाकात की थी।
उन्होंने खुद को BARC ( भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर) के वरिष्ठ वैज्ञानिक बताकर झांसा दिया और फर्जी क्रेडेंशियल्स, चार्ट्स और रिएक्टर ब्लूप्रिंट दिखाकर एक ईरानी डिप्लोमैट को विश्वास में लिया।
बताया जा रहा है कि उसी डिप्लोमैट की मदद से वे ईरान के सरकारी न्यूक्लियर रिसर्च कंसोर्टियम तक पहुंचे और वहां “फ्यूज़न ब्रेकथ्रू” का झूठा दावा पेश किया।

‘फ्यूज़न ब्रेकथ्रू’ और ‘लिथियम-7 रिएक्टर’; दोनों दावे फेल

दोनों ने दावा किया था कि उन्होंने लिथियम-6 बेस्ड फ्यूज़न रिएक्टर प्रोटोटाइप तैयार कर लिया है। एक ऐसी मशीन जो प्लाज़्मा तापमान और वॉल प्रेशर को खुद नियंत्रित कर सकती है।
उन्होंने दावा किया कि यह ट्रिटियम ब्रीडिंग और न्यूट्रॉन एब्ज़ॉर्प्शन तकनीक पर आधारित है।
लेकिन जांच एजेंसियों के वैज्ञानिकों ने इस दावे को सिरे से खारिज कर दिया। उनका कहना है कि अभी तक दुनिया की कोई भी प्रयोगशाला ऐसी तकनीक विकसित नहीं कर पाई है और जो डिजाइन आरोपी दिखा रहे थे, वह सिर्फ थ्योरी पर आधारित और बिना किसी प्रयोगात्मक प्रमाण के था।

दोनों ने यह भी कहा था कि उन्होंने लिथियम-7 पर आधारित एक दूसरा रिएक्टर बनाया था जो “प्लाज़्मा हीटिंग फेल्योर” के कारण असफल रहा — लेकिन वैज्ञानिकों के अनुसार, यह भी एक ग़लत और भ्रामक दावा था क्योंकि लिथियम-7 फ्यूज़न रिएक्शन के लिए उपयुक्त तत्व ही नहीं है।

विदेशी फंडिंग और संवेदनशील जानकारी लीक का शक

जांच में यह भी सामने आया कि दोनों भाइयों ने खुद को BARC वैज्ञानिक बताकर विदेशों से करोड़ों रुपये की फंडिंग ली थी। शक है कि यह रकम BARC और दूसरे न्यूक्लियर प्लांट्स के ब्लूप्रिंट्स के बदले में दी गई थी।
इससे पहले पुलिस ने फर्जी पासपोर्ट और दस्तावेज़ों का बड़ा जाल भी पकड़ा था। आदिल को दिल्ली से और अख्तर को मुंबई के वर्सोवा यारी रोड इलाके से गिरफ्तार किया गया था।
अख्तर के पास से पुलिस को फर्जी पासपोर्ट, आधार कार्ड, पैन कार्ड और BARC का नकली आईडी कार्ड मिला, जिस पर नाम लिखा था — अली रज़ा हुसैन।


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