कोर्ट में चल रही थी अग्रिम जमानत पर सुनवाई पुलिस कर रही थी गिरफ्तारी की कार्रवाई
बिभव की अग्रिम जमानत का मामला सस्पेंस के बीच कोर्ट को गिफ्तारी का पता चला और अग्रिम जमानत याचिका हो गयी निष्प्रभावी
राज्य सभा सांसद स्वाति मालीवाल के साथ कथित तौर पर मारपीट के आरोपी बिभव कुमार की गिरफ्तारी पर उस समय तक सस्पेंस जारी रहा, जब तक की अदालत के सामने खुद सरकारी वकील ने मजिस्ट्रेट के सामने इस बात की सुचना नहीं दे दी. यही वजह रही कि अदालत में 45 मिनट तक अग्रिम जमानत पर बचाव पक्ष के वकील एक के बाद एक दलील देते रहे और स्वाति मालीवाल के आरोपों को झुठलाते रहे. इस बीच मीडिया में भी भ्रम की स्थिति बनी रही कि आखिर बिभव को थाने में लाने के बाद पुलिस ने उसकी गिरफ्तारी की अनौपचारिक जानकारी साझा की थी, वो सच है या झूठ.
टाइम लाइन से समझते हैं कि बिभव को थाने लाने के बाद कोर्ट में चली अग्रिम जमानत की सुनवाई तक क्या क्या हुआ?
सबसे पहले बात करते हैं बिभव के पकडे जाने की. पुलिस दोपहर लगभग 12 बजे बिभव को सिविल लाइन थाने में लेकर आई. यहाँ लाने के बाद थाने के गेट बंद कर लिए गए. इस बीच बिभव के वकील थाने पहुंचे. लेकिन उन्हें भी शुरुआत में थाने के गेट पर ही रोका गया. उन्हें यही जानकारी रही कि बिभव को हिरासत में लिया गया है.
पुलिस की हिरासत से पहले ईमेल के जरिये बिभव ने जांच में सहयोग करने की बात कही थी
पुलिस द्वारा बिभव को हिरासत में लेने से पहले एक ईमेल दिल्ली पुलिस को भेजा गया. ये मेल बिभव की तरफ से किया गया था, जिसमें ये लिखा गया कि उन्हें अपनी बात रखने का मौका मिलना चाहिए. मैं जाँच में सहयोग करने को तैयार हूँ, इसलिए गिरफ़्तारी जरुरी नहीं है. मैं जाँच में पूर्ण सहयोग करूँगा.
मेल के बाद ही लिया गया हिरासत में
शुक्रवार तक बिभव कुमार फरार की श्रेणी में ही था. शनिवार को जैसे ही ईमेल पुलिस को मिली, उसके कुछ ही देर बाद बिभव को थाने ले आया गया. इसके बाद भी बिभव के वकील ये ही कहते रहे कि बिभव को क़ानूनी तौर पर पुलिस बिभव को गिरफ्तार नहीं कर सकती क्यूंकि वो जाँच में सहयोग के लिए तैयार हैं.
तीस हजारी कोर्ट में लगायी अग्रिम जमानत की अर्जी
उधर बिभव की गिरफ्तारी न हो, इसके लिए बचाव पक्ष की ओर से तीस हजारी अदालत में अग्रिम जमानत की याचिका दायर की गयी. जिसकी सुनवाई 3 बजकर 55 मिनट पर की गयी. बिभव की तरफ से पेश वकील हरिहरन ने अदालत के समक्ष कहा कि जो भी आरोप बिभव पर लगाये गए हैं वो झूठे हैं. यही वजह है कि गिरफ्तारी से संरक्षण(बचाव) के लिए अग्रिम जमानत की मांग की जाती है. बचाव पक्ष के वकील ने कई दलीलें दी, जैसे कि स्वाति मालीवाल ने 3 दिन बाद पुलिस को शिकायत दी, जो एक साजिश लगती है.
ड्राइंग रूम का विडियो भी अदालत में दिखाया गया
बचाव पक्ष की तरफ से अदालत में दलील देते हुए सीएम हाउस के ड्राइंग रूम का वो विडियो भी दिखाया गया, जो शुक्रवार को वायरल हुआ था. जिसमें स्वाति मालीवाल सोफे पर बैठी दिख रही हैं. वकील हरिहरन ने अदालत से कहा कि स्वाति आराम से सोफे पे बैठीं हैं और पुलिस कर्मियों से जिस तरह से व्यवहार कर रही हैं, साफ़ देख सकते हैं. स्वाति एक राज्यसभा सदस्य हैं और दिल्ली महिला योग की अध्यक्ष भी रह चुकी हैं. बिभव एक पीए. वो इतनी हिम्मत रख पायेगा कि अपने से बड़े ओहदे की महिला पर हाथ उठा सके. ये आरोप झूठे हैं.
सरकारी वकील ने कहा की पुलिस का पक्ष जाने बगैर न सुनाये फैसला
कोर्ट रूम में मौजूद सरकारी वकील अडिशनल पब्लिक प्रासीक्यूटर एबी अस्थाना ने अदालत से कहा कि पुलिस का पक्ष सुने बिना किसी तरह की राहत न दी जाए.
अदालत ने भी बचाव पक्ष से पूछा कि दूसरे पक्ष को सुने बगैर कैसे राहत दे दें.
बचाव पक्ष के वकील ने कहा कि जो भी धाराएं बिभव पर लगाई गयी हैं, उन उनमें कोई भी ऐसी धारा नहीं है, जिसमें 7 साल से ज्यादा की सजा हो. हम जाँच में सहयोग करने के लिए तैयार हैं. इसलिए गिरफ्तारी से संरक्षण दिया जा सकता है. अदालत ने कहा कि हम थोड़ी देर में फैसला सुनायेंगे.
तब तक के लिए फैसला सुरक्षित रख रहे हैं. समय 4 बज कर 40 मिनट हो चुके थे. लगभग 5 मिनट बाद ही विडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के माध्यम से अडिशनल पुब्लिक प्रासीक्यूटर अतुल श्रीवास्तव ने अदालत को सूचित किया कि दिल्ली पुलिस ने 4 बज कर 15 मिनट पर बिभव को गिरफ्तार की प्रक्रिया को पूरा कर लिया है. यानि बिभव की गिरफ्तारी हो चुकी है.
ये सुनकर बिभव के वकीलो ने अदालत से शिकायत की कि अग्रिम अर्जी की कॉपी गिरफ्तार से पहले ही स्टेट एजेंसी को दे दी गई थी. थाने में मौजूद बिभव के वकील को भी पुलिस ने गिरफ्तारी की कोई जानकारी नहीं दी. जबकि वकील ने पुलिस को ये बताया था कि बिभव की ओर से अग्रिम ज़मानत की अर्जी दाखिल की जा चुकी है और अदालत में सुनवाई होने वाली है.
गिरफ्तारी की जानकारी का पता लगने के बाद अदालत ने कहा कि इस केस में याचिकाकर्ता पहले ही गिरफ्तार हो चूका है, इसलिए ये अदालत याचिका को निष्प्रभावी मानते हुए इसका निपटारा करती है.