फर्जी वीजा छाप कमाए 300 करोड़, दिल्ली पुलिस ने गैंग के 7 सदस्यों को किया गिरफ्तार
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फर्जी वीजा छाप कमाए 300 करोड़, दिल्ली पुलिस ने गैंग के 7 सदस्यों को किया गिरफ्तार

पुलिस का दावा है कि ये गैंग हर महीने 30 से 60 फर्जी वीजा बनाते थे. महज 20 मिनट में एक फर्जी वीजा स्टिकर तैयार कर लेता था. प्रत्येक फर्जी वीजा कथित तौर पर 8-10 लाख रुपये में बेचा जाता था. इस गैंग ने 5 साल में 5000 वीजा छाप कर कम से कम 300 करोड़ रूपये कमाए हैं.


Fake Visa Racket : दिल्ली पुलिस ने फर्जी वीजा छपने वाली प्रिंटिंग प्रेस का भंडाफोड़ किया है. इस फर्जीवाड़े का खुलासा उस समय हुआ जब दिल्ली के इंदिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर 2 सितंबर को हरियाणा के एक युवक को फर्जी वीजा के मामले में गिरफ्तार किया गया और इसी मामले की जांच करते हुए पुलिस उस प्रिंटिंग प्रेस तक पहुंची, जहाँ फर्जी वीजा छपे जा रहे थे. पुलिस का दावा है कि इस गिरफ्तारी से राष्ट्रीय राजधानी में करोड़ों रुपये के फर्जी वीजा रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है. पुलिस ने इस मामले में सात लोगों को गिरफ्तार किया है.

दिल्ली पुलिस के अनुसार ये गैंग पिछले पांच सालों से पश्चिमी दिल्ली के तिलक नगर में प्रेस चला रहा था. पुलिस के दावे के अनुसार इस गैंग ने इन पांच सालों में 4 से 5 हजार जाली वीजा तैयार किये और इस गोरखधंधे से 300 करोड़ रुपये कमाए.

हवाई अड्डे पर गिरफ्तारी
डीसीपी (आईजीआई एयरपोर्ट) उषा रंगनानी ने बताया कि संदीप नाम का युवक 2 सितंबर की रात को भारतीय पासपोर्ट के साथ आईजीआई एयरपोर्ट के डिपार्चर इमीग्रेशन काउंटर पर पहुंचा. उसके पास इटली के रोम का टिकट था. जब उसके दस्तावेजों की सावधानीपूर्वक जांच की गयी तो पता चला कि उसके पासपोर्ट पर नकली स्वीडिश वीजा लगा हुआ था. इमीग्रेशन ने दिल्ली पुलिस को इस मामले की शिकायत की, जिसके बाद संदीप को तुरंत गिरफ्तार कर लिया गया.

नेट पर ट्रैवल एजेंट
डीसीपी उषा रंग्नानी के अनुसार पूछताछ के दौरान संदीप ने खुलासा किया कि उसे विदेश जाना था. उसने इन्टरनेट के माध्यम से आशिफ अली नामक एक ट्रेवल एजेंट से संपर्क किया. संदीप ने पुलिस के सामने ये भी बताया कि उसके गाँव के ही कई लड़के इसी तरह से वीजा लगवा कर विदेश गए थे.

अली व उसके दो साथियों को किया गिरफ्तार
पुलिस ने आशिफ अली की तलाश शुरू की, जिसके बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया. संदीप ने पुलिस को बताया था कि अली ने उससे 10 लाख रूपये मांगे थे जबकि उसने अली के दो बैंक खातों में 7 लाख रूपये जमा किये थे और 50 हजार रूपये नकद उसे दिए थे. अली ने संदीप के पासपोर्ट पर यूरोप का वीजा लगवाने की बात कही थी.
डीसीपी के अनुसार अली और उसके साथियों - नवीन राणा (25) और शिव गौतम (42) ने संदीप की रोम यात्रा के लिए टिकट और स्वीडिश वीज़ा का इंतज़ाम किया था. पुलिस ने अली की निशानदेही पर नविन राणा और शिव गौतम को सबसे पहले गिरफ़्तार कर लिया.
इन तीनों ने पूछताछ के दौरान गिरोह के दो और सदस्यों, बलबीर सिंह (65) और जसविंदर सिंह (55) के बारे में बताया, जिसके बाद इन दोनों को भी गिरफ्तार किया गया. जब इन दोनों से पूछताछ हुई तो फिर इस गैंग का मास्टरमाइंड भी सामने आया, जो वीजा छापने का काम करता था. पुलिस ने उसे भी गिरफ्तार किया, जिसकी पहचान मनोज मोंगा के रूप में की गयी. वो ग्राफ़िक डिज़ाइनर है, जो नकली स्टिकर बनाने और डिजाइन करने में माहिर है.

एक और डिज़ाइनर का नाम आया सामने
पुलिस के अनुसार जब मनोज मोंगा से पूछताछ की गयी तो खुलासा हुआ कि तिलक नगर में फर्जी वीजा छापने की प्रिंटिंग प्रेस चलायी जा रही है. कई देशों के फर्जी वीजा छापे जाते हैं. इस फैक्ट्री का संचालन मोंगा ही करता था. मोंगा ने पुलिस के सामने खुलासा किया कि उसके पास ग्राफिक डिजाइनिंग का डिप्लोमा है. मोंगा की मुलाक़ात करीब पांच साल पहले जयदीप सिंह नाम के एक व्यक्ति से हुई थी. बताया जाता है कि जयदीप ने उसे अपने ग्राफ़िक डिज़ाइनिंग का इस्तेमाल करके नकली वीज़ा बनाने के लिए उकसाया और इसके लिए ज़रूरी उपकरण भी मुहैया कराए.
डीसीपी ने बताया कि बाद में मोंगा ने अपने ग्राहकों को फर्जी नियुक्ति पत्र भी देने शुरू कर दिए ताकि उनके वीजा वैध लगें.

उपकरण, पासपोर्ट जब्त
पुलिस ने बताया कि मोंगा के घर से सभी उपकरण, 14 नेपाली और दो भारतीय पासपोर्ट जब्त कर लिए गए हैं. जब्त की गई सामग्री में अलग अलग व्यक्तियों के नाम से जारी 30 फर्जी स्टीकर वीजा, विभिन्न देशों के 23 रबर स्टैम्प, इटली के तीन फर्जी स्थायी निवास (पीआर) कार्ड, विभिन्न दूतावासों के तीन लकड़ी के रंग और विभिन्न देशों के चार धातु रंग शामिल थे.

20 मिनट में तैयार हो जाता था फर्जी वीजा
पुलिस के अनुसार जालसाजों ने कथित तौर पर हर महीने 30 से 60 फर्जी वीजा बनाए. एक वीजा तैयार करने में महज 20 मिनट का समय लगता था. प्रत्येक फर्जी वीजा कथित तौर पर 8-10 लाख रुपये में बेचा जाता था.
इस रैकेट में कथित तौर पर विभिन्न क्षेत्रों के स्थानीय एजेंटों का एक जटिल जाल भी शामिल था, जो विदेशों में नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को फंसाया करते थे और फिर यहाँ से फर्जी वीजा तैयार करवाते थे.
पुलिस का खेना है कि आगे की जांच जारी है तथा इस गिरोह से जुड़े अन्य लोगों की तलाश की जा रही है.


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