दस साल पुराने केस में गैंगस्टर विकास लगारपुरिया MCOCA में दोषी करार
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दस साल पुराने केस में गैंगस्टर विकास लगारपुरिया MCOCA में दोषी करार

द्वारका कोर्ट ने हथियारबंद अपराध सिंडिकेट चलाने का दोषी ठहराया, पुलिस के दस्तावेजी सबूतों ने गवाहों के मुकरने के बाद भी केस मजबूत रखा।


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Vikas Lagarpuriya Convicted : दक्षिण–पश्चिम दिल्ली की 10 दिसंबर 2025 की सुबह सामान्य नहीं थी। द्वारका कोर्ट परिसर में असामान्य सुरक्षा और पुलिस की हलचल इस बात का संकेत दे रही थी कि कुख्यात अपराधी विकास गुलिया उर्फ़ विकास लगरपुरिया के मामले में आज बड़ा फैसला आने वाला है। हुआ भी कुछ ऐसा ही। द्वारका कोर्ट में चल रहे दस साल पुराने संगठित अपराध के एक बड़े मामले में विशेष न्यायाधीश वंदना जैन ने कुख्यात गैंगस्टर विकास गुलिया उर्फ विकास लगरपुरिया को महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (MCOCA) की धारा 3 के तहत दोषी करार दिया। अदालत ने धारा 4 के आरोप से उसे बरी तो किया, लेकिन फैसला साफ दिखाता है कि पुलिस द्वारा पेश किया गया संगठित अपराध का ढांचा अदालत के सामने साबित हो गया। सबसे अहम बात ये रही कि इस मामले में जो गवाह थे वो टूट गए लेकिन पुलिस ने जिस कदर ठोस कागज़ी कार्रवाई की थी, उसे अदालत ने माना और उनकी महत्वता को ध्यान में रखते हुए दिल्ली के एक कुख्यात अपराधी को MACOCA के तहत दोषी करार दिया।


फिल्मी विलेन जैसी आपराधिक दुनिया

विकास लगरपुरिया का नाम दिल्ली–हरियाणा के कई इलाकों में डर का पर्याय माना जाता था। 2012 से 2015 के बीच चोरी,लूट, हत्या की कोशिश, फिरौती और अवैध वसूली जैसे 18 गंभीर आपराधिक मामलों में उसका नाम दर्ज हुआ। पुलिस रिकॉर्ड में वह एक डर पैदा करने वाले, हथियारबंद और संगठित गिरोह के मुखिया के रूप में जाना जाता था। वो फरार होकर देश के बाहर भी चला गया था और विदेश से ही गैंग चलाता था।

2022 में दुबई से गिरफ्तार कर लाया गया था भारत

विकास लगरपुरिया का नाम साल 2021 में गुरुग्राम के खेड़कीदौला टोल के नजदीक हुई कई करोड़ की लूट में भी सामने आया था। विकास लगरपुरिया ही इस वारदात का मास्टरमाइंड बताया गया था। इस वारदात के बाद वो दुबई फरार हो गया और लम्बे समय तक वहां छिपा रहा और वहीं से गैंग चलाता था। आखिरकार 2022 में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल उसे दुबई से गिरफ्तार कर भारत लाई थी। उसका साथी धीरजपाल उर्फ काना भी मनोज मोरखेरी-लगरपुरिया गैंग का सक्रिय सदस्य है और दिल्ली के छावला डबल मर्डर केस समेत कई संगीन वारदातों में वांछित था। दोनों को मकोका में दोषी ठहराए जाने से यह पुलिस और अभियोजन की बड़ी कामयाबी मानी जा रही है।


उसके अपराधों की लंबी फेहरिस्त :

कारोबारियों से लाखों की फिरौती मांगना

विरोध करने वालों के घर पर फायरिंग करवाना

जमीन कब्जाने की कोशिश

गैंग के जरिए धमकियां दिलवाना

उसका साथी धीरपाल उर्फ़ काना जेल से मोबाइल पर धमकाने में उसकी मदद करता था। कई गवाह कोर्ट में जाते ही डर के कारण मुकर जाते थे।

जांच अधिकारियों की लंबी लड़ाई

एसीपी जगजीत सांगवान और टीम के लिए यह केस बेहद कठिन था। गवाह टूटते जा रहे थे, लेकिन तकनीकी और दस्तावेज़ी सबूतों ने धीरे-धीरे पूरे गैंग का नेटवर्क उजागर कर दिया। कॉल रिकॉर्ड, बैंक स्टेटमेंट, गाड़ियों की बरामदगी, मोबाइल लोकेशन, FIR की प्रतियां और जेल मुलाकात रिकॉर्ड हर दस्तावेज़ एक–एक कड़ी जोड़ता गया। दिल्ली पुलिस की इसी मेहनत और तकनिक आधारित तफ्तीश ने काफी अहम भूमिका निभायी।
जांच में यह भी सामने आया कि विकास जेल के अंदर बैठकर ही मोबाइल फोन के जरिए गिरोह चला रहा था। यही वजह थी कि लोग उसके खिलाफ बोलने से घबराते थे।

संगठित अपराध का स्पष्ट पैटर्न

पुलिस ने अदालत में बताया कि लगरपुरिया गैंग कई वर्षों से

हिंसा

धमकी

फिरौती

जमीन कब्जाने

कारोबारियों से जबरन वसूली जैसे संगठित अपराधों में शामिल रहा है। इतना ही नहीं जेल में रहते हुए भी वो संगठित गिरोह चला रहा है।

यही वह पैटर्न था जो MCOCA लगाने का आधार बना। एक ऐसा कठोर कानून जो संगठित अपराध सिंडिकेट पर लागू होता है। दिल्ली में ऐसे मामले बहुत कम देखने को मिलते हैं।

वंदना जैन की अदालत का फैसला

द्वारका कोर्ट में 10 दिसंबर को सन्नाटा था, जब विशेष न्यायाधीश वंदना जैन ने फैसला सुनाया।

धारा 3 MCOCA—दोषी करार

धारा 4 MCOCA—बरी

अदालत ने कहा कि आरोपी का नेटवर्क लंबे समय से इलाके में भय और अवैध दबदबा बनाए रखे हुए था, जो कानून और समाज दोनों के लिए गंभीर खतरा था।

कानून की जीत और खौफ के अंत का संकेत

फैसला सुनते ही कोर्ट में मौजूद लोगों ने एक-दूसरे को देखा इस एहसास के साथ कि कानून भले धीमा चलता है, लेकिन अपराध का साम्राज्य आखिरकार टूट ही जाता है।

अब अगली सुनवाई में अदालत यह तय करेगी कि विकास लगरपुरिया को कितनी सजा दी जाएगी। यह केस दिल्ली में संगठित अपराध के खिलाफ बड़ी कार्रवाई समझा जा रहा है, जहां दस्तावेजी सबूतों ने गवाहों के मुकरने के बावजूद न्याय सुनिश्चित किया


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