सुरेश चंद्राकर: रसोइये से करोड़ों के ठेकेदार से पत्रकार की हत्या का आरोपी
छतीसगढ़ के बीजापुर इलाके में हुई पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के आरोपी सुरेश चंद्राकर की कहानी किसी फ़िल्मी कहानी से कम नहीं। कभी रसोइये से सफ़र शुरू करने वाला सुरेश करोड़ों का ठेकेदार बन गया।
Mukesh Chandrakar Murder Case : छत्तीसगढ़ का बीजापुर जिला, जो माओवादी गतिविधियों के लिए कुख्यात है, एक बार फिर सुर्खियों में है। इस बार मामला सुरेश चंद्राकर, एक मामूली रसोइये से करोड़पति ठेकेदार बने व्यक्ति का है, जिसे पत्रकार मुकेश चंद्राकर की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है।
रसोइये से ठेकेदार तक का सफर
42 वर्षीय सुरेश चंद्राकर ने अपने करियर की शुरुआत माओवाद प्रभावित बासागुड़ा में एक रसोइये और सरकारी मिलिशिया सलवा जुडूम के एक विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) के रूप में की थी। 2011 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा सलवा जुडूम को भंग किए जाने के बाद, सुरेश ने निर्माण क्षेत्र में कदम रखा। शुरुआत में सुरेश ने छोटे-मोटे ठेके लिए, लेकिन 2015 में उसे 54 करोड़ रुपये की लागत वाली नेल्सनार-गंगालूर सड़क परियोजना का ठेका मिला। यह उसके जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हुआ।
शादी से लगा सुरेश की दौलत का अंदाजा
जब ठेकेदार सुरेश चंद्राकर ने 2021 में शादी की, तो माओवाद प्रभावित बीजापुर में यह चर्चा का विषय बन गया। यह एक ऐसा विवाह था, जो शहर ने पहले कभी नहीं देखा था, जिसमें सुरेश की दुल्हन को जगदलपुर से लाने के लिए एक निजी हेलीकॉप्टर किराए पर लिया गया था और इस समारोह में विदेशी नर्तकियों को नचवाया गया था। इस भव्य विवाह ने सुरेश के असाधारण विकास को उजागर किया - और यह सब 10 वर्षों के भीतर हुआ।
सुरेश का राजनीतिक और सामाजिक प्रभाव
सुरेश की असाधारण सफलता ने उसे स्थानीय राजनीति और प्रशासन में एक मजबूत व्यक्ति बना दिया। कांग्रेस और भाजपा दोनों से जुड़े रहने के कारण, उसने अपनी राजनीतिक पकड़ मजबूत की। वे 2022 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में "चुनाव पर्यवेक्षक" भी बनाए गए थे।
सड़क परियोजनाओं में भ्रष्टाचार का आरोप
सुरेश को तीन प्रमुख सड़क परियोजनाओं का ठेका मिला था, जिनकी कुल लागत 170 करोड़ रुपये से अधिक थी। इनमें से सबसे बड़ी परियोजना नेल्सनार-कोडोली-मिरतुर-गंगालूर सड़क की थी। इस परियोजना की लागत में लगातार वृद्धि और समयसीमा में देरी ने कई सवाल खड़े किए।
पत्रकार मुकेश चंद्राकर ने इन भ्रष्टाचार के आरोपों को उजागर किया। 25 दिसंबर 2024 को उसकी एक रिपोर्ट ने परियोजना में हो रहे घोटालों की ओर इशारा किया। सरकार ने रिपोर्ट पर जांच शुरू की, लेकिन इसके कुछ दिनों बाद 3 जनवरी 2024 को मुकेश का शव सुरेश की छत्तनपारा स्थित संपत्ति में बने सेप्टिक टैंक में पाया गया। पुलिस के अनुसार मुकेश की हत्या 1 जनवरी को सुरेश की एक प्रॉपर्टी में की गयी थी।
हत्या और गिरफ्तारी
पुलिस के अनुसार, सुरेश ने अपने भाइयों रितेश और दिनेश के साथ मिलकर हत्या की साजिश रची। संपत्ति पर काम करने वाले उसके कर्मचारी महेंद्र रामटेके ने भी इस हत्या में कथित रूप से मदद की। सुरेश ने हत्या के बाद सबूत मिटाने के लिए शव को छिपाने और अपराध स्थल को साफ करने की कोशिश की।
प्रशासनिक कार्रवाई
सुरेश चंद्राकर की गिरफ्तारी के बाद प्रशासन ने उनके खिलाफ कई कदम उठाए:
उसके छह बैंक खाते फ्रीज कर दिए गए।
चार वाहन, जिनमें अपराध में इस्तेमाल हुआ एक सीमेंट मिक्सर शामिल है, जब्त किए गए।
उसकी तीनों सड़क परियोजनाओं को रद्द कर दिया गया।
उसके ठेकेदार लाइसेंस को निलंबित कर दिया गया।
उसकी अवैध संपत्ति को ध्वस्त कर दिया गया।
मामले का व्यापक प्रभाव
यह मामला केवल हत्या तक सीमित नहीं है। यह छत्तीसगढ़ में माओवाद प्रभावित इलाकों में चल रही विकास परियोजनाओं में भ्रष्टाचार, राजनीतिक प्रभाव और अपराध के गठजोड़ की ओर इशारा करता है। सुरेश का राजनीतिक जुड़ाव और तेजी से आर्थिक उन्नति यह दर्शाती है कि कैसे प्रभावशाली लोग नियमों को तोड़कर अपनी स्थिति मजबूत करते हैं।
माओवादी प्रभाव वाले क्षेत्र में सड़क निर्माण का ठेका बना सुरेश की सफलता की कहानी: सूत्र
सूत्रों के मुताबिक, सुरेश ने 2011 में सलवा जुडूम के भंग होने के बाद निर्माण क्षेत्र में कदम रखा। शुरुआती दिनों में छोटे ठेके लेने वाले सुरेश को 2015 में एक बड़ा ठेका मिला, जो उसकी किस्मत बदलने वाला साबित हुआ।
सूत्रों के अनुसार सुरेश को नेलेसनार-गंगालूर सड़क के 32.4 किलोमीटर हिस्से के निर्माण का ठेका मिला, जिसकी लागत 54 करोड़ रुपये थी। इस परियोजना को 2010 में मंजूरी मिली थी, लेकिन माओवादी खतरों के कारण इसे शुरू नहीं किया जा सका। एक सूत्र ने कहा, "इस क्षेत्र में माओवादी गतिविधियों के चलते कोई भी क्लास ए ठेकेदार यहां काम करने को तैयार नहीं था। ऐसे में सुरेश और चार अन्य क्लास बी ठेकेदारों को इस परियोजना का अवसर मिला।"
लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) के सूत्रों के अनुसार, यह परियोजना जुलाई 2016 तक पूरी होनी थी, लेकिन कई बार समय सीमा बढ़ाई गई। अब तक इसकी लागत 141 करोड़ रुपये तक पहुँच चुकी है। पीडब्ल्यूडी के एक अधिकारी ने कहा, "सुरेश ने 32.4 किलोमीटर में से 24.9 किलोमीटर सड़क का निर्माण पूरा कर लिया है।"
अन्य ठेके और राजनीतिक जुड़ाव:
सूत्रों के मुताबिक, सुरेश ने बीजापुर में दो अन्य सड़क निर्माण परियोजनाएँ भी हासिल की हैं। इनमें जैगुर-तुमनार सड़क (13 करोड़ रुपये) और कुटरू-फरसेगढ़ सड़क (19.50 करोड़ रुपये) शामिल हैं। एक सूत्र ने बताया, "दिसंबर 2022 में सुरक्षित की गई इन परियोजनाओं में से एक पूरी हो चुकी है, जबकि दूसरी लगभग पूरी हो चुकी है।"
सुरेश के राजनीतिक सफर पर भी चर्चा हो रही है। सूत्रों ने बताया कि वह 2010 के दशक में कांग्रेस में शामिल हुआ था और प्रदेश से कांग्रेस की सरकार जाने के बाद वो हाल ही में भाजपा में शामिल हो गया था। कांग्रेस ने उसे एक सक्रिय कार्यकर्ता बताया था, लेकिन भाजपा में उसके शामिल होने का दावा भी किया है।
सुरेश के परिचितों का कहना है कि सुरेश की यह सफलता उसकी मेहनत और जोखिम उठाने की क्षमता का परिणाम है। हालांकि, इन परियोजनाओं के लिए बार-बार बढ़ाई गई समय सीमा और बढ़ती लागत ने सरकारी तंत्र की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाए हैं।
पत्रकारों की सुरक्षा पर सवाल
मुकेश चंद्राकर की हत्या ने पत्रकारिता पर होने वाले खतरों को उजागर किया है। यह घटना इस बात पर जोर देती है कि भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने वाले पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना कितना जरूरी है। सुरेश चंद्राकर का यह मामला माओवादी प्रभावित क्षेत्रों में प्रशासनिक लापरवाही, भ्रष्टाचार और कमजोर न्याय प्रणाली की गंभीर तस्वीर पेश करता है। यह जरूरी है कि इस मामले में निष्पक्ष जांच हो और दोषियों को कड़ी सजा दी जाए, ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
Next Story