AAP की सिंगल इंजन सरकार से दिल्ली पिछड़ी ? क्या कहते हैं आंकड़े
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AAP की सिंगल इंजन सरकार से दिल्ली पिछड़ी ? क्या कहते हैं आंकड़े

आप अक्सर डबल इंजन और सिंगल इंजन सरकार की बात सुनते होंगे। हम यहां बताएंगे कि इसमें फर्क क्या है और कौन सी सरकार में बेहतर काम होता है।


Delhi Assembly Election 2025: क्या जिन राज्यों में डबल इंजन की सरकार है वहां काम अधिक हो रहा। जिन राज्यों में सिंगल इंजन की सरकार है क्या वहां काम कम हो रहा। इस विषय पर सियासी दल तो चर्चा करते ही हैं आम जनता भी पीछे नहीं। सवाल यह है कि इसका अर्थ क्या है। दरअसल डबल इंडन की बात बीजेपी के नेता हर मंच पर करते हैं, इसका अर्थ यह है कि केंद्र और राज्य में एक पार्टी की सरकार। अगर आप मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था को देखें तो पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, दिल्ली, झारखंड, तमिलनाडु, तेलंगाना में सिंगल इंजन की सरकार है ( कहने का अर्थ ये कि इन राज्यों में एनडीए की सरकार नहीं है)। अगर पूर्वोत्तर राज्यों की बात करें तो या तो डबल इंजन (Double Engine Government) की सरकार है या एनडीए समर्थित दल सत्ता पर काबिज हैं। यहां हम तुलना करेंगे पिछले 10 साल में ऐसे राज्य जहां डबल इंजन और सिंगल इंजन की सरकार रही उनमें कौन आगे रहा।

यहां पर हम खासतौर से 2010-2024 के दौरान दिल्ली में सिंगल इंजन (Single Engine Government) और कुछ राज्यों में डबल इंजन सरकार के दौरान विकास की तुलना करेंगे। अब दिल्ली में चुनाव होने जा रहा है तो आपको जानने की उत्सुकता होगी कि दिल्ली में सिंगल इंजन और बीजेपी शासित डबल इंजन सरकार में किसने अच्छा काम किया है। अब इसे निर्धारित करने के लिए कोई एक फैक्टर जिम्मेदार नहीं है। बल्कि कई फैक्टर की चर्चा करेंगे। रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने 2014-15 से लेकर 2023-24 के बीच कुछ आंकड़े पेश किए हैं। इनमें पर कैपिटा आउटपुट (Per Capita Output) , महंगाई (Infaltion), राज्यों का राजकोषीय प्रबंधन, रोजगार की दर (Employment Rate), आधारभूत ढांचे (Physical Infrastructure) पर खर्च जैसे शिक्षा (Education Expenditure), स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर कितना खर्च किया गया है। गरीबी की रेखा से कितने लोग बाहर निकले, प्रति व्यक्ति बिजली की खपत शामिल है।

सुविधा के लिए गुजरात (Gujarat) - हरियाणा (Haryana) की डबल इंजन वाली सरकार और दिल्ली (Delhi)- पश्चिम बंगाल (West Bengal) की सिंगल इंजन वाली सरकार को लिया गया है। आंकड़े नीति आयोग, आरबीआई से लिए गए हैं।

  • अगर नेट स्टेट डोमेस्टिक प्रोडक्ट की बात करें तो दिल्ली 3.2, वेस्ट बंगाल 4 फीसद, जबकि गुजरात में 6.6 फीसद और हरियाणा में 4.5 फीसद है।
  • 2014 से 2024 के बीच महंगाई के स्तर को देखें को राष्ट्रीय औसत 64 फीसद का है, दिल्ली में 51 फीसद, पश्चिम बंगाल में 67 फीसद, गुजरात में 59 और हरियाणा में 64 फीसद है।
  • शहरी बेरोजगारी का राष्ट्रीय औसत 51 फीसद है, दिल्ली का 20, पश्चिम बंगाल में 33, गुजरात में 23 और हरियाणा में 40 फीसद है।
  • कार्यशील जनसंख्या का राष्ट्रीय आंकड़ा 37 फीसद है। दिल्ली का 32.8, पश्चिम बंगाल में 41.3 जबकि गुजरात में 40.5 और हरियाणा में 35.2 फीसद है।
  • आधारभूत ढांचे पर राष्ट्रीय आंकड़ा 4.6 फीसद है। दिल्ली में 4.6 पश्चिम बंगाल में 2 फीसद जबकि गुजरात में 6.3 फीसद और हरियाणा में 2.7 फीसद है।
  • एजुकेशन की बात करें तो राष्ट्रीय आंकड़ा 13.2 फीसद है। दिल्ली में 21 फीसद, पश्चिम बंगाल में 14 फीसद, गुजरात में 13,6 फीसद और हरियाणा में 10.3 फीसद है।
  • अगर बात हेल्थ की करें तो राष्ट्रीय आंकड़ा 5.6 का है। दिल्ली का खर्च 12 फीसद, बंगाल 6 फीसद जबकि गुजरात 5,9 फीसद और हरियाणा 4,5 फीसद है।
  • ग्रॉस फिस्कल डेफिसिट की बात करें तो दिल्ली .7 फीसद, पश्चिम बंगाल 3.5 फीसद, गुजरात 1.7 फीसद और हरियाणा 2.8 फीसद है।
  • आउट स्टैंडिंग लाइबिलिटी, दिल्ली 2 फीसद, बंगाल 38 फीसद, गुजरात 18 फीसद और हरियाणा 30 फीसद है।
  • प्रति व्यक्ति बिजली की उपलब्धता राष्ट्रीय औसत 5.4 फीसद, दिल्ली 2.9 फीसद, पश्चिम बंगाल 4.7 फीसद, गुजरात 5.1 फीसद और हरियाणा 4 फीसद है।

क्या दिल्ली का राजकोषीय घाटा अधिक है

क्या इसका मतलब यह है कि दिल्ली का राजकोषीय घाटा अधिक है। राजकोषीय घाटा वह राशि है जो राज्य सरकार को किसी विशेष वर्ष में अपने व्यय और आय के बीच के अंतर को पूरा करने के लिए उधार लेनी पड़ती है। विवेकपूर्ण मानदंडों के अनुसार राजकोषीय घाटा राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के 3% के भीतर होना चाहिए। वित्त वर्ष 23 में दिल्ली का राजकोषीय घाटा सिर्फ 0.7% था - इस तुलना में सबसे कम। गुजरात और हरियाणा भी विवेकपूर्ण मानदंडों के भीतर हैं हालांकि दिल्ली से अधिर । कम से कम वित्त वर्ष 23 के अंत में बिहार का राजकोषीय घाटा सबसे अधिक था।

दिल्ली में AAP की सरकार के शासन करने के तरीके में स्पष्ट रूप से एक पैटर्न है। शिक्षा और स्वास्थ्य पर बजटीय खर्च के मामले में सरकार एक बेंचमार्क बन गई है, जबकि यह अभी भी सबसे अधिक वित्तीय रूप से जिम्मेदार सरकार है। यह महंगाई को नियंत्रित करने में भी सबसे प्रभावी रही है, जिसका सबसे अधिक असर आम आदमी पर पड़ता है। हालांकि, जब बात आर्थिक उत्पादन की समग्र गति या भौतिक बुनियादी ढांचे पर खर्च या बिजली की उपलब्धता में सुधार की आती है, तो AAP का इंजन दम तोड़ देता है।

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