Delhi Election: 'एकला चलो की राह पर AAP', मजबूरी या फिर सियासी रणनीति!
AAP denied alliance with Congress: आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस के साथ दिल्ली में किसी भी तरह के गठबंधन से साफ इनकार कर दिया है.
Delhi Assembly Election: इंडिया गठबंधन (India Alliance) के विभिन्न सहयोगी दलों के बीच तकरार, एकजुटता के बयार आते जाते रहते हैं. लोकसभा चुनाव में प्रदर्शन के बाद जहां इंडिया ब्लॉक (India Block) गठबंधन गदगद दिख रहा था. वहीं, झारखंड और महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव आते-आते जीत का यह एहसास पानी भरने लगा. आलम यह है कि गठबंधन के अंदर से ही नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठने लगे हैं. इसकी बानगी पिछले दिनों ममता बनर्जी के बयान के रूप में देखने को मिली. अब जबकि दिल्ली विधानसभा चुनाव सिर पर हैं तो केंद्र शासित प्रदेश में इंडिया ब्लॉक के दोनों सहयोगियों (कांग्रेस और आप) में गठबंधन को लेकर चर्चा होनी लाजिमी है. लेकिन आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने यह कहकर गठबंधन के सभी मंसूबों पर पानी फेर दिया कि दिल्ली विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ किसी भी तरह का गठबंधन नहीं होगा. ऐसे में यह सवाल उठने लगे हैं कि आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि दिल्ली में लोकसभा चुनाव साथ लड़ने वाली AAP अब 'एकला चलो' की राह पर निकल पड़ी है.
आम आदमी पार्टी (AAP) ने कांग्रेस (Congress) के साथ किसी भी तरह के गठबंधन से साफ इनकार कर दिया है. ऐसे में अगले साल की शुरुआत में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए इंडिया ब्लॉक के दोनों सहयोगियों के फिर से एक साथ आने के सभी अटकलों पर विराम लग गया है. ऐसे में AAP की यह मजबूरी या है या फिर रणनीति, जो वह दिल्ली में लोकसभा चुनाव तो साथ में लड़ती है. लेकिन विधानसभा चुनाव में गठबंधन करने से कतरा रही है.
दिल्ली पूर्व मुख्यमंत्री और आप (AAP) के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल (Arvind Kejriwal) ने कहा कि पार्टी अपने दम पर चुनाव लड़ेगी. केजरीवाल ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि आम आदमी पार्टी दिल्ली में अपने दम पर यह चुनाव लड़ेगी. कांग्रेस के साथ किसी भी तरह के गठबंधन की कोई संभावना नहीं है. यह टिप्पणी एक तरह से स्पष्टीकरण के तौर पर देखी गई. क्योंकि ऐसी खबरें आई थीं कि दोनों पार्टियां दिल्ली चुनाव से पहले संभावित गठबंधन के लिए बातचीत कर रही हैं और कांग्रेस ने समझौते के तहत 15 सीटों की मांग की थी.
वहीं, अब केजरीवाल (Arvind Kejriwal) की टिप्पणी से पता चलता है कि बातचीत उसी तरह हुई, जिस तरह इस साल की शुरुआत में पंजाब और फिर हरियाणा में हुई थी. जहां आप ने पंजाब में लोकसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस को शामिल करने से इनकार कर दिया था. जहां वह सत्ता में है. वहीं, कांग्रेस ने हरियाणा में विधानसभा चुनावों के दौरान कांग्रेस को शामिल करने का वादा किया और यह सौदा कभी नहीं हो पाया.
पिछले कुछ सालों में कांग्रेस की कीमत पर बढ़ रही AAP के बीच कड़वाहट नई नहीं है और यह एक दशक से भी पहले अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के दिनों से चली आ रही है. भले ही इसकी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाओं ने इसे राष्ट्रीय स्तर पर और क्षणिक तौर पर कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के लिए मजबूर किया हो. लेकिन दोनों पार्टियों में भाजपा के रूप में एक साझा दुश्मन के अलावा कुछ खास समानता नहीं है.
AAP और कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में भी यह समानता की कमी साफ झलकती है. जब हरियाणा और पंजाब में दोनों पार्टियों के बीच बातचीत सकारात्मक रूप से आगे बढ़ती दिखी तो कांग्रेस के स्थानीय नेतृत्व ने AAP के साथ गठबंधन पर आपत्ति जताई (पंजाब में इसके विपरीत) और उस पार्टी को जगह देने में अपनी असहजता जाहिर की, जिसे वे केवल एक प्रतिस्पर्धी के रूप में देखते थे. लेकिन फिर दिल्ली कोई हरियाणा या पंजाब नहीं है और राजधानी में होने वाले चुनाव लोकसभा और विधानसभा चुनावों की तुलना में अलग-अलग विशेषताएं रखते हैं.
साल 2013 से दिल्ली की सत्ता में AAP
आम आदमी पार्टी (AAP) दिसंबर 2013 से राज्य में सत्ता में है. सिवाय राष्ट्रपति शासन के एक साल के कार्यकाल के. साल 2020 के चुनावों में AAP ने राजधानी की 70 विधानसभा सीटों में से 62 सीटें जीतीं. जो पिछली विधानसभा में उसके पास रही 67 सीटों से थोड़ी कम है. अपने पास मौजूद प्रचंड जनादेश और इस भरोसे के साथ कि वह आसानी से अपने दम पर राजधानी की सत्ता में वापस आ सकती है, गठबंधन केवल अपनी संगठनात्मक ताकत को कमजोर करने के बराबर होगा.
AAP सांसद राघव चड्ढा ने कहा कि मैं यह स्पष्ट कर रहा हूं कि AAP आगामी दिल्ली विधानसभा चुनाव अपने दम पर लड़ेगी. किसी भी गठबंधन का कोई सवाल ही नहीं है. AAP और कांग्रेस के बीच किसी भी तरह के गठबंधन की खबरें निराधार हैं. AAP ने पिछले तीन दिल्ली चुनाव अकेले अपने दम पर जीते हैं. चौथी बार भी, जब 2025 में विधानसभा चुनाव होंगे, तो AAP अपने काम और अरविंद केजरीवाल के नाम के आधार पर चुनाव लड़ेगी और जीतेगी.