कभी सीएम फेस के नाम पर जीते जाते थे चुनाव, अब रेवड़ियों ने बिगाड़ा खेल
Delhi election: एक समय भारत की सियासत में प्रत्याशी का चेहरा काफी मायने रखता था. अब चुनाव की राजनीति रेवड़ियों तक सिमट कर रह गई है.
Delhi Assembly Election 2025: एक समय भारत की सियासत में प्रत्याशी का चेहरा काफी मायने रखता था. राजनीतिक दल अपने सबसे प्रमुख चेहरे को सामने रख चुनाव लड़ती थी और जीत भी हासिल करती थी. हालांकि, कहते हैं न कि दुनिया में कोई भी चीज ज्यादा समय तक टिकी नहीं रहती है और सबका एक वक्त होता है. यही बात अब धीरे-धीरे चेहरे पर भी लागू होने लगी है. हालांकि, अभी भी पीएम मोदी समेत कुछ राजनेता अपवाद हैं. लेकिन कुल मिलाकर अब चुनाव की राजनीति रेवड़ियों तक सिमट कर रह गई है. क्योंकि दिल्ली विधानसभा चुनाव में भी हर राजनीतिक दल फिर चाहे वह आम आदमी पार्टी (आप) हो या फिर बीजेपी और कांग्रेस, सबने भर भराकर रेवड़ियों की बरसात की है.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में मुख्य मुद्दा अब रेवड़ी बन गई है. हर कोई जनता पर रेवड़ियों की बरसात कर रहा है. वहीं, अन्य मुद्दे धरातल में जाते हुए दिख रहे हैं. इस चुनाव में इस बात पर अधिक जोर है कि कौन सी पार्टी लोगों को कितनी रेवड़ी दे सकता है. यही वजह है कि मुख्यमंत्री का चेहरा बीजेपी और कांग्रेस की तरफ से अभी तक साफ नहीं हो पाया है. हालांकि, आप की तरफ से मुख्यमंत्री के चेहरे के तौर पर अरविंद केजरीवाल को सामने किया जा रहा है.
अरविंद केजरीवाल का व्यक्तित्व आप पार्टी से काफी ऊपर नजर आता है. जैसे केंद्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर कोई भी उम्मीदवार आसानी से चुनाव जीत जाता है. वही बात दिल्ली में लागू होती है. दिल्लीवासी पार्टी को कम और केजरीवाल को अधिक पहचानते हैं. क्योंकि, आप के गठन से काफी पहले अन्ना आंदोलन के वक्त ही वह राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना चुके थे. यही वजह है कि दिल्ली में उनके नाम पर आसानी से वोट मिल जाते हैं. यह सिलसिला दिल्ली में साल 2013 से ही देखा जा रहा है.
आलम यह है कि अब प्रदेश की राजनीति हो या फिर केंद्र की चेहरे की धीरे-धीरे चुनाव में कम होती जा रही है. अब चेहरा स्थिति के अनुरूप बदलता रहता है. कर्नाटक से लेकर मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, महाराष्ट्र तक हर चुनाव में रेवड़ियां चेहरे पर भारी पड़ीं. हालांकि, राजनीति में प्रयोग समय के साथ होना भी स्वाभाविक ही है.
राष्ट्रीय स्तर की बात की जाए तो साल 2014 से लेकर अब तक चेहरे का दबदबा दिखा. साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मनमोहन सिंह और नरेंद्र मोदी का सीधा मुकाबला था. लेकिन उसके बाद के चुनाव में प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता के सामने विपक्ष ने कोई भी चेहरा सामने नहीं रखा. इसका ही असर था कि साल 2024 में भाजपा नीत एनडीए फिर से सरकार बनाने में कामयाब रही.
लेकिन प्रदेश स्तर पर तो रेवड़ी के सामने किसी का टिकना मुश्किल नजर आता है. लेकिन दिल्ली में केजरीवाल से सीधे मुकाबले के लिए विपक्ष के पास कोई चेहरा नहीं है. आप इसे भी मुद्दा बनाने की कोशिश कर भी रही है. अलग-अलग विधानसभाओं में आप की ओर से यह सवाल खड़ा किया जा रहा है. हालांकि, बीजेपी के पास इसका सटीक जवाब नहीं है. लेकिन वह बस दावा करती है कि कानूनी बंदिशों के कारण केजरीवाल मुख्यमंत्री बन ही नहीं सकते हैं. लेकिन वोटरों पर इसका असर पड़ते नहीं दिखता है.