परिवारवाद सिर्फ कहने सुनने की बात, आप, बीजेपी या कांग्रेस कोई पीछे नहीं
Delhi Assembly Election 2025 में आप, कांग्रेस या बीजेपी किसी भी दल को परिवारवाद से परहेज नहीं है। सवाल पूछे जाने पर अपने अंदाज में वे जवाब भी देते हैं।
Delhi Assembly Election 2025: भारत की राजनीति में नेता किसी भी दल का हो वो अपने विरोधियों के खिलाफ परिवारवाद का आरोप लगाता है। यह बात अलग है कि अलग अलग तरीकों से परिवारवाद की राजनीतिक दल व्याख्या कर अपने फैसले को जायज बताते हैं। दिल्ली की राजनीति भी इससे अछूती नहीं है। आप परिवारवाद के गुण दोष पर विवेचना कर सकते हैं। आप उसमें अच्छाइयां और कमियां भी ढूंढ सकते हैं लेकिन यह भारतीय राजनीति की कड़वी हकीकत है। इन सबके बीच दिल्ली की 70 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव होने जा रहा है, तीनों प्रमुख सियासी दलों की नजर इन सभी सीटों पर हैं क्योंकि दिल्ली विधानसभा में वही दल ट्रेजरी बेंच पर बैठेगा जिसके पास कम से कम 36 विधायक होंगे और उसके लिए हर तरह की रणनीति बनाई जा रही है जिसमें सियासी परिवारों से जुड़े चेहरों को टिकट देने में किसी भी दल ने कंजूसी नहीं की।
इस चुनाव में तीन पूर्व सीएम के बेटे चुनावी मैदान में हैं. पुराने नेताओं के परिवारों को तरजीह दी गई है। इसे आप इस लिस्ट से समझ सकते हैं।
- प्रवेश वर्मा का बीजेपी से नाता, भूतपूर्व सीएम साहिब सिंह वर्मा के बेटे
- हरीश खुराना का बीजेपी से नाता, भूतपूर्व सीएम मदन लाल खुराना के बेटे
- संदीप दीक्षित का कांग्रेस से रिश्ता, भूतपूर्व सीएम शीला दीक्षित के बेटे
- मुदित अग्रवाल-कांग्रेस, पूर्व सांसद जे पी अग्रवाल के बेटे
- आले इकबाल- आप, शोएब इकबाल पूर्व विधायक के पुत्र
- विकास बग्गा-आप, विधायक एस के बग्गा के पुत्र
- पूरणदीप सिंह साहनी- आप , एमएलए प्रह्लाद साहनी के बेटे
- जुबैर अहमद-आप,पूर्व एमएलए मतीन अहमद के बेटे
- पूजा बालियान- आप, नरेश बालियान की पत्नी
आप इस मामले में सबसे आगे
आम आदमी पार्टी ने 6 उम्मीदवारों को मौका दिया जिनका परिवार राजनीति में रहा है। चार मौजूदा विधायकों के बेटे को टिकट मिला है। चांदनी चौक, मटिया महल, कृष्णानगर, उत्तम नगर सीट से मौजूदा विधायकों के बेटे और पत्नी को टिकट दिया गया है। कांग्रेस ने संदीप दीक्षित, मुदित अग्रवाल के साथ साथ अरीबा खान को ओखला से टिकट दिया है, इस सीट से उनके पिता आसिफ खान विधायक रह चुके हैं।
इस मामले में जब राजनीतिक दलों से सवाल करिए तो जवाब भी दिलचस्प होता है। मसलन एक सामान्य सा तर्क कि डॉक्टर का बेटा डॉक्टर, इंजीनियर का बेटा इंजीनियर, शिक्षक का बेटा शिक्षक तो किसी राजनीतिक शख्सित का बेटा सियासत में क्यों नहीं। परिवारवाद पर बीजेपी का जवाब यह होता है कि हमारे यहां कोई सिर्फ इस वजह से टिकट नहीं पाता कि वो किसी बड़े नेता का बेटा है,वो जमीनी तौर पर संघर्ष करता है तब कहीं जाकर वो सियासत में अपनी जगह बना पाता है।