जोश-अनुभव पर आप, बीजेपी और कांग्रेस का खास जोर, टारगेट 70 का नजर 36 पर
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जोश-अनुभव पर आप, बीजेपी और कांग्रेस का खास जोर, टारगेट 70 का नजर 36 पर

दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए 4 फरवरी को मतदान होना है। दिल्ली के रण में सियासी दलों मे नए-पुराने चेहरों पर जोर लगाया है कि ताकि चुनावी जंग में जीत दर्ज हो सके।


Delhi Assembly Elections 2025: पांच साल बाद दिल्ली के राजनीतिक घमासान में अपने हथियारों या उम्मीदवारों के साथ आप, बीजेपी और कांग्रेस उतर चुके हैं। नामांकन के आखिरी दिन कांग्रेस और बीजेपी ने अपने शेष सियासी चेहरों को मैदान में उतार दिया। यानी कि सियासी लड़ाई का एक अंक पूरा हुआ। अगर तीनों दलों की उम्मीदवारों वाली सूची को देखेंगे तो कम से कम दो चीजों से किसी को परहेज नहीं रहा। पहला, दलबदलू और दूसरा परिवारवाद। यह दोनों बिंदु बहस के केंद्र में हो सकते हैं। लेकिन लड़ाई का असल मकसद तो जीत है और जीत दर्ज करने के लिए राजनीतिक दलों को खुद के लिए नीति बनाने का हक है।

2025 में दिल्ली की गद्दी पर कौन काबिज होगा उसका फैसला जनता को करना है। चार फरवरी को दिल्ली के वोटर्स जब मतदान केंद्र तक जाएंगे तो उनके पास विकल्प की कमी नहीं होगी। लेकिन बेहतर विकल्प कौन होगा चुनौती उसकी रहेगी। अब मतदाता खुले दिमाग से फैसला कर सकें इसके लिए आम आदमी पार्टी, बीजेपी और कांग्रेस का दावा है कि उन्होंने ऐसे कैंडिडेट चुनावी समर में उतारे हैं जिनमें लोगों को भरोसा और उम्मीद है। अगर आप तीनों दलों की सूची को देखें तो युवा, नए उम्मीदवार और पुराने चेहरों को एक बुके के तौर पर पेश किया है।

  • आम आदमी पार्टी ने सभी 70 सीटों पर उम्मीदवार उतारे हैं।
  • बीजेपी 68 सीट पर , एक एक सीट जेडीयू और एलजेपी को
  • कांग्रेस ने भी सभी 70 सीटों पर प्रत्याशी दिए हैं।

आम आदमी पार्टी

आम आदमी पार्टी ने 19 सीटों पर उम्मीदवारों में बदलाव किया है। सबसे खास बात यह है कि बीजेपी और कांग्रेस से आए चेहरों पर केजरीवाल ने दांव खेला है। नरेला से अंतिन समय में शरद चौहान को फिर मौका दिया है। इसके साथ ही गोपाल राय, अखिलेश पति त्रिपाठी, संजीव झा, दुर्गश पाठक, विनय मिश्रा को टिकट देकर पूर्वांचली मतदाताओं को साधने की कोशिश की है।

बीजेपी
अगर बात बीजेपी की करें तो दलबदलुओं से इन्हें भी परहेज नहीं है लेकिन संगठन से जुड़े लोगों को टिकट नहीं मिला है जबकि वो टिकट की मांग कर रहे थे। लोकसभा चुनाव के समय संगठन से जुड़े लोगों को टिकट दिया था जिसमें योगेंद्र चंदौलिया, कमलजीत सहरावत और बांसुरी स्वराज का नाम खास था। बीजेपी की लिस्ट देखें तो जाट और पूर्वांचली फैक्टर पर अधिक ध्यान दिया है।

कांग्रेस
अगर बात कांग्रेस की करें तो पार्टी ने ज्यादातर पुराने नेताओं पर ही भरोसा किया है, जैसे नई दिल्ली सीट पर शीला दीक्षित के बेटे संदीप दीक्षित को मौका मिलना। पटेल नगर से कृष्णा तीरथ को मौका। सुल्तानपुर माजरा से जयकिशन के रूप में बड़ा दलित चेहरा खास हैं। सियासी पंडित कहते हैं कि चुनावी लड़ाई का मकसद जीत है। अगर कोई भी सियासी दल जीत दर्ज करने में पीछे रहे तो उसके सामने चुनौती अधिक हो जाती है। जनता की समस्याओं का समाधान आप तभी कर सकते हैं जब आप किसी ना किसी रूप में सत्ता का हिस्सा बने। अगर कांग्रेस की बात करें तो सत्ता तो बहुत दूर पिछले 10 साल से विधानसभा में एक भी नुमाइंदा नहीं है।

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