दिल्ली में पहली पसंद AAP, क्या यह अखिलेश यादव की है प्रैक्टिकल सियासत
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दिल्ली में पहली पसंद AAP, क्या यह अखिलेश यादव की है प्रैक्टिकल सियासत

Delhi Election 2025: इंडिया गठबंधन में आप, कांग्रेस और सपा तीनों हैं। लेकिन दिल्ली में सुर और तान अलग। सपा ने तर्क देते हुए अरविंद केजरीवाल को समर्थन दिया है।


Akhilesh Yadav Politics: सियासत में अगर विचारधारा ही सर्वोच्च होता तो सिर्फ मेल वाले गठबंधन बनते। लेकिन हिंदुस्तान की राजनीति में तरह तरह के प्रयोग हो रहे हैं। जैसे महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे (Uddhav Thackeray) ने कांग्रेस और एनसीपी के संग मिलकर 2019 में बेमेल गठबंधन किया। अगर इतिहास में जाएं तो समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष रहे मुलायम सिंह यादव (Mulayam Singh Yadav) और बीजेपी से निष्कासित रहे कल्याण सिंह के बीच गठबंधन हुआ था। अगर आप इन दोनों गठबंधन को देखें तो विचारधारा से अधिक खुन्नस और इगो की झलक थी। खैर सियासत में अगर राजनीतिक दलों के लिए कुर्सी ही अंतिम मंजिल हो तो जनता के नाम पर गठबंधन बनते, टूटते और बिखरते हैं और सियासी दल जनता के हित को विचारधारा से ऊपर दर्जा दे देते हैं। यहां पर सियासी पंडित गच्चा खा सकते हैं और खाते भी हैं। यहां हम बात सपा के मौजूदा अध्यक्ष अखिलेश यादव द्वारा दिल्ली विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को समर्थन देने की करेंगे।

वैसे तो इंडिया गठबंधन (India Alliance) में कांग्रेस, आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) और समाजवादी पार्टी तीनों हैं। लेकिन अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) का समर्थन कांग्रेस की जगह आप को है। आप भी हैरत में पड़ सकते हैं कि फिर गठबंधन काहे का। इस सवाल का जवाब राजनीति में चाणक्य के नाम से मशहूर शरद पवार (Sharad Pawar) ने जवाब देकर अखिलेश यादव की नैतिक परेशानी को कम कर दिया। शरद पवार ने कहा था कि देखिए हमारा इंडिया गठबंधन राष्ट्रीय स्तर पर है, राज्यों के स्तर पर नहीं। ऐसे में सवाल उठता है कि इंडिया गठबंधन विरोध किससे है, बीजेपी से या नरेंद्र मोदी से। अब शरद पवार के बयान से आप यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि विरोध बीजेपी से कम नरेंद्र मोदी से अधिक है। लेकिन अभी भी मूल सवाल यही है कि अखिलेश यादव ने अरविंद केजरीवाल की पार्टी को समर्थन देने का फैसला क्यों किया।

इसके लिए हम आपको साल 2024 में लेकर चलते हैं। हरियाणा विधानसभा (Haryana Assembly Election 2024) के साथ साथ महाराष्ट्र-झारखंड में विधानसभा का चुनाव होना था। पहला चुनाव हरियाणा में था। यह चुनाव इस वजह से दिलचस्प था कि चाहे कांग्रेस जीतती या बीजेपी रिकॉर्ड बनता। रिकॉर्ड बना और बीजेपी के नाम रहा। हरियाणा के चुनावी समर में कांग्रेस को यह लगने लगा था कि वो अपने बलबते गद्दी पर काबिज हो सकती है, लिहाजा उसका नजरिया अपने सहयोगियों को लेकर बदल गया। कांग्रेस के नेता दीपेंद्र हुड्डा ने कहा कि ना तो समाजवादी पार्टी और ना ही आप का यहां आधार है, लिहाजा उनकी मांग के हिसाब से टिकट नहीं दे सकते। इसमें दो मत भी नहीं कि हरियाणा में समाजवादी पार्टी या आप की मजबूत राजनीतिक जमीन है, लेकिन गठबंधन का धर्म तो यही कहता है कि सबको लेकर चलेंगे। लेकिन कांग्रेस को वो विचार पसंद नहीं आया। लिहाजा जब यूपी के उपचुनाव की बारी आई तो अखिलेश यादव ने इसी तर्क का सहारा लिया।

हरियाणा के बाद बारी महाराष्ट्र (Maharashtra Assembly Election Result) के चुनाव की आई। महाराष्ट्र प्रदेश समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अबू आजमी ने 25 सीटों की मांग कर दी। लेकिन कांग्रेस की तरफ से फिर यही तर्क कि आप यहां मजबूत नहीं है। इस तरह के बयान पर समाजवादी पार्टी की तरफ से भी बयान आया कि हरियाणा में कांग्रेस मजबूत होने के बाद क्या कुछ कर पाई वो तो जनता के सामने हैं। वाद विवाद के बीच महाराष्ट्र में कांग्रेस और सपा (Samajwadi Party) ने गठबंधन में रहते हुए भी अलग अलग सफर किया। अब जब बात दिल्ली में समर्थन देने की आई तो अखिलेश यादव के पास पहले से ही वो सभी तर्क मौजूद थे जिसे अतीत में कांग्रेस इस्तेमाल कर चुकी थी। इससे भी बड़ी बात यह कि यूपी में अगर समाजवादी पार्टी, कांग्रेस को स्पेस देगी तो उसका खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ेगा। लिहाजा वो जनता को खासतौर से अपने वोटर्स को संदेश दे रहे हैं कि देखिए उनकी असली लड़ाई तो बीजेपी है, लिहाजा जो दल जहां मजबूत होगा, जो दल नरेंद्र मोदी और बीजेपी (BJP) की नीतियों का मुखालफत करेगा वो उनके साथ रहेंगे।

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